डरता हूँ: की हमारे इस गुरूर की सजा लमबी न हो जाए



डरता हूँ: की हमारे इस गुरूर की सजा लमबी न हो जाए


 लेखक उर्दु औरैया मकबूल जान
  
 हिन्दी आसिम ताहिर आज़मी

 कितना अजीब मंजर है ...  दुनिया अपने सभी रंगों और सुंदरताऔ के साथ हमारे चारों ओर है, लेकिन मानवों से आनंद लेने की अपनी क्षमता छीन ली है। पिछले दो महीनों से, एक विचित्र जीवन  है जिसका केवल एक ही उद्देश्य है कब इस कैद से रिहाई नसीब होगी कई सौ वर्षों की कड़ी मेहनत और प्रयास के बाद मानव ने हवा में उड़ने का सपना देखा, पहिये के आविष्कार से लेकर तकनीक की ऊंचाई तक, और आरामदायक विमान आकाश की ऊंचाइयों तक उड़ान भरने लगे।  आज ये विमान हमारे सामने खड़े हैं,  जिन्हें कोई छूने की हिम्मत नहीं करता।  कारखाने हैं,  हर ब्रांड की बड़ी दुकानों पर सब कुछ अपनी पहली वाली आब व ताब के साथ सजे हुवे है, लोगों के घरों में हर नए साल का फैशन उनकी अलमारी में मौजूद है   लेकिन ऐसा लगता है कि उनसे पहनने का मज़ा छीन लिया गया है ना कोयी महफिल है और ना ही शम ऐ महफिल   नसीर काज़मी का नोहा गूँजता है " नए कपड़े बदल कर जाऊं कहाँ  और बाल बनाऊं किस के लिये   नासिर काज़मी ने अपनी इस कैफ़ियत को अगले मिस्र में इस स्थिति का कारण बताया:कि वो " व्यक्ति तो शहर ही छोड़ गया मैं बाहर जाऔं किस के लिये  लेकिन यहां  तो हर कोई इसी शहर  मेें मौजूद है मगर एक-दूसरे से लिए उतना ही अनिच्छुक है जैसे दूसरे कंधों पर जान निकालने के लिए खड़ा है चीन फ्रांस से लेकर न्यूयॉर्क तक , लंदन "सोहो" से लेकर एम्स्टर्डम और बैंकॉक"पोट पोंग" से लेकर मुंबई के "बांद्रा" तक, वे अब रंगों की सुंदरता और शाम की सुगंध नहीं दिख रही हैं। जैसा कि फैज़ ने कहा "वीराँ है मैकदा खम व सागर उदास हैं"।  लेकिन फैज़ का नौहा तो किसी के जाने से जन्म लेता है "तुम क्या गये की दिन रूठ दिन बहार के लेकिन यहां तो कोई  गया ही नहीं, 
हर कोई वहीँ मोजोद है  इंसानों की हालत  उन कवाडौँ जैसी हो चुकी है जिन्हें दीमक चाट गई हो  और वो हाथ लगाते ही जमीन पर गिर जाएं ।  ऐसा लगता है कि मनुष्य ने अपने लिए जो दुनिया बसा ली है, वह एक दम बे रूह हो गई है, जैसे कि किसी महत्वपूर्ण खिलौने की चाबी चली गई हो और पूंछ सीधी हो।  इस आधुनिक सभ्यता को सजाने और संवारने में कयी सौ सालौ की मेहनत लगी; सदियों से मानव ने खून और पसीना ऐक किया तब जाकर कहीँ ये चीजें बनी,  बस उस व्यवसाय की कल्पना करें जो इस दुनिया में लक्जरी से लक्जरी, आराम और आनंद के चारों ओर घूमता है जो आज बंद पड़ा है 
   (570 बिलियन) डॉलर, की होटल इंडस्ट्री है (890) बिलियन एयरलाइंस कारोबार,  (7,580) बिलियन डॉलर की पर्यटन मंडी है।  (3,400) बिलियन डॉलर  बर्गर, पिज्जा, चिकन, आदि से कमाया जाता है ये इस दुनिया के चंद कारोबार हैं जहां आज वीरानियों ने अपने ढेरे जमाऐं हैं

इनके इलावा भी दुनिया के जाहिरी रंग वो रूप से वाबस्ता और जिंदगी को आनंद बनाने के बे शुमार धंधे बंद हो चुके हैं फैशन इंडस्ट्री से लेकर शोरूम तक सब ठिकाने विरान हैं मीडिया चैनल चल रहे हैं, मगर जब बाकी कारोबार ठप हो जाएंगे उन्की साँस भी टुठ जाएंगी कि उनको फिर कोन पालेगा। वो जिन्हें ईश्वर की तरफ से आता करदा तेल की दौलत पर नाज था जिन्हों ने मिल्लते इस्लामिया की इस दौलत को दुनिया के कुहबा खाने आबाद करने और जाती बादशाहतों को मुसतहकम करने के लिए इस्तेमाल किया, आज उनके उनके तेल की खपत इस कदर कम हो चुकी है कि अगर वो और तेल ना बेचें तो उन का खर्चा तक निकालना मुश्किल हो जायगा। वो सुदी बैंकारी का निज़ाम जिसे 1694 में बैंक ऑफ इंग्लैंड के कियाम से लेकर आज तक ऐक जाली कागजी करनसी के निफाज से मजबूत किया गया था ढडाम से गिरता हुवा नजर आ रहा है वो आसमान जिस पर रोजाना दो लाख से अधिक विमान उडा करते थे इस समय सब ठप हैं, चीन जो ऐक time में सब से अधिक गाड़ियां खरीदने वाला मुल्क था वहाँ गाड़ियों की संख्या में 90 फीसदी कमी आयी है. अमेरिका में इस समय 38 लाख से अधिक लोगों ने बेरोजगारी अलाउंस का क्लेम दाखिल किया है. आगे आगे देखिये होता है किया। पूरी दुनिया की डी जी पी काफी हद तक गिर चुकी है। जब कि जर्मनी, जापान, फ्रांस, बरतानिया और यूरोप के तमाम देशों में इस समय ऐक फीसदी से भी कम डी जी पी हो चुकी है 
यानी कारोबारी माईशत खत्म। लेकिन खौफनाक बात ये है कि लोगों की अकसरियत ये खियाल कर रही है कि ये ऐक आरजी वकफा है कुछ देर बाद खत्म हो जाएगा। सब कुछ ठीक हो  जाएगा । इंसान अजीम है सब पर काबू पालेगा। ये वो धोका है जो शैतान इंसान के दिल मे वसवसे के तोर पर डालता है, इंसान ऐसी स्थिति को अल्लाह की जानिब से डराने और ख़ाब गफलत से बेदार करने वाला अजाब ही नहीं मानते। जब इंसानों की ये हालत हो तो अल्लाह भी हरम पाक में भी दाखिल होने से रुक देता है मस्जिदें जहां से ईसतेगफार की आवाजैं बुलंद होना चाहिए थीं विरान हो जाती हैं। इस हादसे के बाद तो इंसान को अन्दाजा हो जाना चाहिए था कि इस दुनिया का सब सामाने जीस्त है जिसे अल्लाह ने मताऐ गुरुर यानी धोखे का समान बताया है
और दुनिया सिर्फ धोखे के समान के और कुछ नहीं है (الحدید)
आज इस धोखे के समान की हकीकत किस कदर वाजेह हो चुकी है लेकिन शायद इन्सान के संभलने का अभी वक्त नहीं आया पुरी दुनिया दो हिस्सों में बट चुकी है ज्यादा लोग वो हैं जो ये उम्मीद लगाये बैठे हैं कि ये बस चंद दिन का समय है इंसान ऐक दिन इस मुश्किल का हल निकाल लेगा और जिंदगी वापस आ जायगी। लेकिन बहुत कम ऐसे हैं कि जिन की आखें आंसुओं से तर हैं शर्मशारी चेहरौ पर सजी है और इलतेजा करते हैं कि ऐ अल्लाह हम तेरी कोयी भी आजमाइश बर्दाश्त नहीं कर सकते, हम पर से अपना ये अजाब टाल दे, हमें तोफिक आता फरमा कि हम इस पर काबू पासाकै कि सब आप की आता से मुमकिन है। लेकिन ऐसे लोग बहुत कम हैं, डरता हूं हमारे इस गुरूर की सजा का अर्सा लंबा ना होजाए

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