जानिए: रमजान में इस्लामी घरों का माहौल | Ramzan men islami gharon ka mahol |


जानिए: रमजान में इस्लामी घरों का माहौल | Ramzan men islami gharon ka mahol |



हिंदी :आसिम ताहिर आज़मी

अल्लाह सुभान'व'ताला फरमाते हैं कि
’’وَکَانَ یَأْمُرُ أَۂلَہُ بِالصَّلاَۃِ والزَّکَاۃِ وَکَانَ عِنْدَ رَبِّہ مَرْضِیًّا‘‘۔
(سورہ مریم: ۵۵)

 अनुवाद: और वह अपने रिश्तेदारों की नमाज और रोजा का हुक्म करते रहते थे, और वो अपने भगवान के नजदीक पसन्दीदा थे।  (बायन-उल-कुरान,

 एक इस्लामिक घर की सबसे बड़ी ज़रूरत एक अच्छे पिता और एक वफादार माँ का अस्तित्व है, बशर्ते दोनों अच्छी तरह से प्रशिक्षण प्राप्त करें।

 रमजान के महीने में, एक इस्लामिक घर में भगवान और पवित्रता का डर और स्मरण, नम्रता और श्रद्धा होनी चाहिए।

 सोने, जागने, उठने, बैठने और खाने-पीने आदि में एक इस्लामिक घर को पवित्र पैगंबर की सुन्नत (अल्लाह तआला का आशीर्वाद) से मामूर होना चाहिए।
एक इस्लामिक घर को हिजाब का सम्मान और देखभाल करना चाहिए। हिजाब को महिलाओं के लिए सम्मान और पुरस्कार का स्रोत माना जाना चाहिए।

 आज कई परिवार गाने बजाने की मुसीबत में मबतला हैं  इस कारण ऐसे लोगों का दिल भ्रष्ट हो चुके हैं है, और उन्होंने अपनी सारी शक्ति खो चुके हैं।
अल्लाह तआला फरमाते हैं कि
 ’’وَمِنَ النَّاسِ مَنْ یَّشْتَرِيْ لَہْوَ الْحَدِیْثِ لِیُضِلَّ عَنْ سَبِیْلِ اللّٰہِ بِغَیْرِ عِلْمٍ‘‘۔
(سورۃ لقمان:۶)

 अनुवाद: और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ऐसी चीज़ों को खरीदार बनते हैं, जो बिना पढ़े हैं, ताकि वे बिना समझे अल्लाह के रास्ते से (दूसरों को) गुमराह कर सकें।

 विद्वानों ने लहवल हदीस से गाने बजाने  का भी उल्लेख किया है, क्योंकि कई घटनाएं हैं जो बताती हैं कि गाने बजाने की वजह से लोगों के मूल्य प्रभावित हुए हैं और दिमाग नष्ट हो गए हैं।
एक इस्लामिक घर का इम्तियाज यह है कि उसकी सुबह और शाम की नींद और जागना अल्लाह की याद के साथ होना चाहिए, खेल और बकवास से दूर। ऐसे लोगों की प्रशंसा करते हुए, अल्लाह सर्वशक्तिमान कहता है:

’’وَالَّذِیْنَ ہُمْ عَنِ اللَّغْوِ مُعْرِضُوْنَ‘‘۔
(المؤمنون: ۳)
 अनुवाद: और जो लोग बकवास बातौं से बर किनार रहने वाले हैं।  (ब्यान-उल-कुरान, 2/533)

 इस्लामी घरों की एक विशेषता यह भी है कि वहाँ शर्म व हया बाकी रहती है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ''

’’یَا أَیُّہَا النَّاسُ اسْتَحْیُوْا مِنَ اللّٰہِ حَقَّ الْحَیَائِ وَالْاسْتِحْیَائُ مِنَ اللّٰہِ حَقَّ الْحَیَائِ أَنْ تَحْفَظَ الرَّأسَ وَمَا وَعٰی وَالْبَطْنَ وَمَا حَوَی وَمَنْ تَذَکَّرَالْبَلاَئَ تَرَکَ زِیْنَۃَ الْحَیَاۃِ وَالدُّنْیَا‘‘۔
 अनुवाद: ऐ लोगो!  अल्लाह से शर्म करो, क्योंकि उससे शर्मिंदा होने का हक है, और अल्लाह से सही शर्म की बात यह है कि आप अपने सिर, अपने पेट की रक्षा करते रहो और उनके आसपास क्या है।
कवि कहता है
अनुवाद: पवित्र लोगों के घरों में अल्लाह की याद के कारण एक बड़ी प्रतिध्वनि और ध्वनि होती है, उस याद की एक चमकदार रोशनी होती है और ऐसा लगता है कि इसकी किरणें छाती से बाहर आ रही हैं।

 • काश, इस्लामी घरों में शरिई ज्ञान की परंपरा होती, तो आज ये घर ज्ञान और क्षमा का बगीचा होते।

 मुस्लिम घर की कुछ महत्वपूर्ण आवश्यकताएं और समस्याएं हैं जो इस प्रकार हैं:

  विनम्रता, समर्पण और आध्यात्मिकता के साथ पांच दैनिक प्रार्थनाओं का पालन।

 * सुबह और शाम पवित्र कुरान का पाठ।
सुबह और शाम, अल्लाह की याद,

 * हर पल सुननतौं की रिआयत।

  खेल, बकवास और झूठ से पूर्ण परहेज अल्लाह कहते हैं :
إِنَّ الَّذِیْنَ قَالُوْا رَبُّنَا اللّٰہُ ثُمَّ اسْتَقَامُوْا تَتَنَزَّلُ عَلَیْہِمُ الْمَلاَئِکَۃُ أَلاَّ تَخَافُوْا وَلاَ تَحْزَنُوْا وَأَبْشِرُوْا بِالْجَنَّۃِ الَّتِيْ کُنْتُمْ تُوْعَدُوْنَ‘‘۔(سورۃ حم السجدۃ: ۳ 
 अनुवाद: जो लोग यह स्वीकार करते हैं कि हमारा भगवान अल्लाह है, फिर स्थिर रहें, फ़रिश्ते उन पर उतरेंगे, यह कहते हुए: न डरें और न ही दुखी हों, और स्वर्ग में आनन्द मनाएं जो आपसे वादा किया गया था।  (ब्यान-उल-कुरान, 3/330)

अन्य स्थान पर फरमाया
’’یُثَبِّتُ اللّٰہُ الَّذِیْنَ آمَنُوْا بِالْقَوْلِ الثَّابِتِ فِي الْحَیَاۃِ الدُّنْیَا وَفِي الْآخِرَۃِ وَیُضِلُّ اللّٰہُ الظَّالِمِیْنَ وَیَفْعَلُ اللّٰہُ مَا یَشَائُ‘‘۔
(سورۂ ابراہیم: ۲۷)
अनुवाद: अल्लाह तआला इस दुनिया में और उसके बाद विश्वासियों को मजबूत करता है, और गलत काम करने वालों को बचाता है, और अल्लाह तआला जो कुछ भी चाहता है उसे करता है।
रमजान के महीने के कारण, मुस्लिम घरों में आध्यात्मिकता और शांति और गरिमा प्रबल होती है। इस आध्यात्मिकता के कारण, लोग अल्लाह की पूजा करने, उसे याद करने और दिन में रोजा रखने में अतिरंजित होते हैं। अल्लाह कहते हैं:

’’إِنَّ الَّذِیْنَ یَتْلُوْنَ کِتَابَ اللّٰہِ وَأَقَامُوْا الصَّلاَۃَ وَأَنْفَقُوْا مِمَّا رَزَقْنَاہُمْ سِرًّا وَعَلانِیَۃً، یَرْجُوْنَ تِجَارَۃً لَنْ تَبُوْرَ، لِیُوَفِّیَہُمْ أُجُوْرَہُمْ وَیَزِیْدَہُمْ مِنْ فَضْلِہ إِنَّہُ غَفُوْرٌ شَکُوْرٌ‘‘۔
(فاطر: ۲۹، ۳۰)
 अनुवाद: जो लोग अल्लाह की किताब का पाठ करते रहते हैं और प्रार्थना करते रहते हैं और जो कुछ हमने उन्हें गुप्त रूप से और सार्वजनिक रूप से दिया है, उसमें से खर्च करते हैं, वे एक व्यापार की आशा है जो कभी असफल नहीं होंगे।  उन्हें उनकी मजदूरी पूरी दें, और उन्हें अपनी कृपा से अधिक दें। निश्चित रूप से, वह सबसे क्षमा करने वाला, और सबसे अधिक कदर दान है।  (ब्यान-उल-कुरान, 3/224)

 نسألک یا أرحم الراحمین أن تملأ بیوتنا بالإیمان والحکمۃ والسکینۃ۔ آمین

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