तहरीर शफ़ी अल्लाह मुहम्मद पूरी।
बिसमिल्लाह अल रहमान अलरहीम
इन्ना नहनू नज़्ज़ालना अज़्ज़िक़्र व इन्ना लहू लहाफिज़ूँ (सूरह अल हजर 9)
इन अबी ेउरी कइल कइल रसूओलु अलल्ले-ए-सुले अलल्लेउ अली वसल्लम " थन अलल्ले तबअर्क ोतअअली किरण तय व यस क़ब॒ल णन यख़ अलस्समअवात-ए-वाल बिणल॒फ़-ए-एवम्, फ़लम्मअ समिअत-ए-अल अल कइलति तूओबय लिणुम्मऩ् यन् ेज़अ अली, वतूओबय लिणज॒वाफ़् तह ेज़अ, वतूओबय लिणल॒सिनऩ् ततकल्लमु बिएज़अ "
( सुंन दारमी , अलजज़-ए-रक़म 4، अलसफ़ह रक़म2147 उल््रकम अलहदीस3457.)
"अल्लाह तबारक विताली ने आसमान विज़मीन की तख़लीक़ से एक हज़ार साल क़बल सूरा ता और सूरा यसीन को पढ़ा। जब फ़रिश्तों ने इस पढ़े हुए को सुना, तो इस की (क़ुरआन-ए-करीम हलावत और शीरीनी से मुतास्सिर हो कर कहा कितनी बानसीब होगी वो उम्मत, जिसके लिए ये नाज़िल किया जाएगा ,कितने बा क़िस्मत होंगे वो सीने, जिनमें ये कलाम महफ़ूज़ होगा, कितनी मुबारक होंगी वो ज़बानें,जिन पर ये कलाम जारी होंगे
ख़ुदाए ज़ुल-जलाल वाला किराम ने जिस तरह इन्सानों की जिस्मानी ग़िज़ा का इंतिज़ाम फ़रमाया है , इसी तरह रुहानी ग़िज़ा का भी बेनज़ीर इंतिज़ाम इसी मज़कूरा बाला कलाम के ज़रीया किया। क़ियामत की सुबह तक उस की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी ख़ुद बारी तआला ने ली है। इरशाद रब्बानी है :"अना नहन नज़लना अलज़कर वाना ला लहा फ़ुज़ूँ, "कि हमने क़ुरआन-ए-करीम उतारा है और हम ही उस की हिफ़ाज़त करने वाले हैं
बहमद अल्लाह कलाम-ए-ख़ुदा वंद दुश्मनों की लाख कोशिशों के बावजूद अपनी असली शक्ल सूरत में महफ़ूज़ था , महफ़ूज़ है और महफ़ूज़ रहेगा । और उन दुश्मनाँ इस्लाम की इस्लाम और क़ुरआन के ख़िलाफ़ नाजायज़ कोशिशें कभी कारगर साबित ना होंगी इंशा-ए-अल्लाह
यही वजह है कि आज दुनिया के गोशा गोशा में एक हाफ़िज़-ए-क़ुरआन मिलता है जो क़ुरआन की हिफ़ाज़त करता रहता है। फिर भी अगर अल्लाह तबारक-ओ-तआला चाहते, तो तन-ए-तन्हा अपने कलाम की हिफ़ाज़त फ़रमाते ;लेकिन अल्लाह रब अलाज़त ने अपने फ़ज़ल से इस हिफ़ाज़ती नज़म में इन्सानों को शामिल फ़र्मा कर उन्हें ये शरफ़ और एज़ाज़ बख़्शा। आज बहमद अल्लाह हमारे नौनिहाल इस कलाम ख़ुदावंदी को अपने मुबारक सीनों में शब-ओ-रोज़ रिट रट कर अपने सीनों में महफ़ूज़ करर है हैं
कल को मैदान हश्र में जब ख़ुदा उन हुफ़्फ़ाज़ और उनके सरपरस्तों वाइ लिया-ए-की कामयाबी की ख़ुश-ख़बरी सुनाएगा , तो वहां मौजूद हज़रात ख़ाहिश करेंगे कि हमारा भी शुमार किसी हाफ़िज़-ए-क़ुरआन के वालिद , या किसी सरपरस्त के तौर पर होता कि काश हिफ़ाज़त क़ुरआन-ए-करीम की इस कड़ी में हमने भी किसी बच्चे के हिफ़्ज़ क़ुरआन-ए-करीम में तआवुन क्या होता, मदद की होती, तो आज हम भी इस कामयाबी से सरफ़राज़ होते
उल-ग़र्ज़ वक़्त मौऊद आने से पहले पहले ज़रूर हिफ़्ज़ क़ुरआन करें या कम अज़ कम एक बच्चे को हिफ़्ज़ कराने का तहय्या करें और इस की सरपरस्ती विरहनुमाई करें। अनशाइआलला कामयाबी वक़्क़ा मिरानी मुक़द्दर बनेगी और ऐसे लोगों का शुमार भी क़ुरआन-ए-करीम के मुहाफ़िज़ीन में होगा।
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