पवित्र कुरान और रमजान । Qur'an and Ramzan । तीसरा रोजा तीसरा पाठ



कुरान और रमजान । Qur'an and Ramzan । तीसरा रोजा तीसरा पाठ

  पवित्र कुरान और रमजान

 .
तीसरा रोजा तीसरा पाठ

पवित्र कुरान को रमजान से और रमजान को कुरान से खास मुनासबत है
अल्लाह तआला फरमाते हैं
"شهر رمضان الذي انزل فيه القرآن هدى للناس و بينات من الهدى و الفرقان" (الفرقان:١٨٥)

 अनुवाद: रमजान का महीना वह महीना है जिसमें पवित्र कुरान को भेजा गया है, जिसका वर्णन यह है कि लोगों के लिए एक स्पष्ट संकेत है, उन तमाम पुस्तकों के जो कि हिदायत और फैसला करने वाली हैं (ब्यान-उल-कुरान, 1/118)

 संपूर्ण पवित्र कुरान रमजान के महीने में दुनिया में भेजा गया। इस प्रकार, इस महीने को पवित्र कुरान के साथ सम्मानित किया गया। आप हजरत जिबरीईल के साथ कुरान को पढते गोर व फिक्र करते उस के मआनी में गोर करते और उस खजानौ में मुहब्बत की हथेली को आजाद छोड़ देते

 रोजा दार को चाहिए कि अपने रोजे में अल्लाह की इस महान पुस्तक के साथ रमजान और कुरान में बिताए
"كتاب انزلناه إليك مبارك ليدبرو آياته و ليتذكر أولواالالباب" (سوره ص:٢٩)

 अनुवाद: यह एक धन्य पुस्तक है, जिसको  हमने आप पर इस वास्ते  भेजा है ताकि आप इसकी आयतौं मैं  विचार कर सकें और ताकि समझ रखने वाले लोग ध्यान दें।  (ब्यान-उल-कुरान,  3/283)

 दूसरे स्थान पर यह कहा गया है:
" أفلا یتدبرون القرآن ام علی قلوب افقالہا" - (سورہ محمد :٢٤)

 अनुवाद: तो क्या ये लोग कुरान पर ध्यान नहीं देते हैं या उनके दिल बंद हैं?  (ब्यान-उल-कुरान, 3/ 414)

 एक अन्य अवसर पर, फरमाया:
"أفلا یتدبرون القرآن ولو کان من عند غیر اللہ لوجدوا فیہ اختلافا کثیرا"-(سورہ نسائ:٧٢)

 अनुवाद: क्या  फिर कुरान में गोर नहीं  करते  और अगर यह अल्लाह के अलावा अन्य की तरफ से होता, तो वे इसमें बहुत अधिक असंगति पाते।  (ब्यान-उल-कुरान, 1/385)

रमजान के महीने में पवित्र कुरान को पढने में एक विशेष आनंद और मजा होता है और अलग प्रकृति के कुछ विशेष निर्देश हैं।

 पवित्र कुरान,माह रमजान,
मानव आबादी की याद ताज़ा करता है, आत्मा को सुगंधित करता है और दिल को सुकून देता है।

 कुरान रमजान के महीने में अपने नुजूल की याद दिलाता है और सलफ के  दिलचस्प किससौ को खोलता है।  नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
"اقرؤا القرآن فانہ یاتی یوم القیامۃ شفیعا لاصحابہ"
“कुरान पढ़ो, क्योंकि यह कियामत के दिन तिलावत करने वालौं की सिफारिश करेगा।
 दूसरे स्थान पर पैगंबर ने बताया
"خير کم من تعلم القرآن وعلمہ"

 अनुवाद: आपके बीच सबसे अच्छा व्यक्ति वह है जो पवित्र कुरान सीखता है और फिर उसे सिखाता है।

 एक अन्य स्थान पर, उन्होंने कहा, "सुराह अल-बकरा और अल-इमरान को पढहा करो।"  क्योंकि ये दो सुराह एक बादल या पक्षियों के झुंड के रूप में कियामत के दिन आपके पास आएंगे और आपको छाया देंगे।

 पवित्र पैगंबर  ने आगे कहा कि जो कोई भी पवित्र कुरान का पाठ करता है और इसमें एक विशेषज्ञ है, उसका हशर अच्छे और शुद्ध लोगों के साथ होगा।

 कवि कहता है:

 अनुवाद: हे कुरआन, हमने तुझको
 रात के सन्नाटे में सुना है। तु तो दिलों को झनजोड देता है । पाक है वो जात जिसने पैगंबर को मेराज पर लेगया।   कुरान:आपकी वजह से हमने दुनिया को जीत लिया है और इसकी सुबह को रौशन करदिया, और आपकी वजह से हम कायनात के चारों ओर घूम चुके हैं और फिर पुरस्कार भी प्राप्त कर रहे हैं।

 हमारे असलाफ का ये हाल था कि  रमजान का महीना आते ही कुरआन को खोल खोल देते , अब कुरान ही उनका ओढ़ना बिछौना बन जाता।
यही हाल हमारे असलाफ के घरों का भी होता, इस मुबारक माह में उन के घरों में शहद की मखखियौ के मानिंद एक खास आवाज होती थी, ये घर रोशनी और नेक बखतियौ से भरे होते। इन में कुरान की तिलावत होती। दौराने तिलावत अजाएबात के तजकरे के समय रुक जाते। और उस की नसिहतौ में गर्क होकर रोने लगते। अवामिर पर अमल करते और नवाही से रुक जाते। हादीस में है कि इब्न मस्ऊद रजी अल्लाहु अनहु आप के पास कुरान की तिलावत कर रहे थे।
जभ इस आयत पर पहुंचे
"فکیف إذا جئنامن کل امۃ بشہید و جئنا بک علی ھؤلاء شہیدا"
तो फरमाया जरा ठेहरो! हजरत इब्न मस्ऊद फरमाते है कि आप आंखों से आसुओं की लडी जारी है यकिनन एक मुहिब अपने महबूब का कलाम सुन कर रो पड़ा।
इसी अवसर पर कवि कहता है कि
जब रुखसार पर आंसु नुमायां होते हैं तो हकीकत में रोने वाले और ब तकललुफ रोने वाले का फर्क वाजिह होजात है।
एक अन्य अवसर पर, आप अबू मूसा अशअरी की तिलावत को सुन रहे थे। तो अगले दिन, आप ने कहा: क्या  अच्छा होता कि तुम मुझे  देख लेते कि कल रात मैं तुम्हारी आवाज सुन रहा था। तुम्हे तो आल दाऊद का लेहजा नसीब हुवा है। अबू मूसा अशअरी ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल अगर मुझे पता होता कि आप मेरी तिलावत सुन रहे हैं तो मैं उसे और बेहतर तरीके से सुनाने की कोशिश करता।यानी में और बेहतर आवाज में पढ़ता। तो फिर कुरान की दिलकशी उस के जमाल और तासीर का कुछ और ही आलम होता।

 जब कभी सहाबा ए केराम का जमावड़ा होता,तो हज़रत उमर कहते: ऐ अबू मूसा!  अल्लाह को याद कराओ, फिर हज़रत अबू मूसा अपनी खूबसूरत आवाज़ में कुरान की तिलावत करना शुरू कर देते।

 कवि कहता है:

 मैं रोता हूं जब मैं उनके शब्दों को सुनता हूं, तो मेरी आंखों की दुनिया क्या आलम होगा जब वह साहिबे कलाम  को देखेगा, तिलावत करने वाले ने अल्लाह का तजकरह किया कि आरिफीन के दिल शौक में वजद करने लगे।

 यह तो पहले के लोगों काआलम था, लेकिन जब बाद के लोगों का ये हाल नही रहा, अब कुरान को पढ़ने में लोगों की रुचि कम हो गई, तो तरबियत का नेजाम फासिद होकर रह गया और जेहन व दिमाग मफलूज होकर रह गए।
 जब लोगों ने पवित्र कुरान का मकाम अन्य चीजों को दे दिया, तो दंगे भड़क उठे, मुसीबतें आम हो गईं, इरादे नाकाम हो गए।
  पवित्र क़ुरआन का काम लोगों को सीधे मार्ग पर लाना है।
  पवित्र कुरान नूर भी है, शेफा भी, इल्म व सकाफत भी और मअरिफत व बुरहान भी।
 पवित्र कुरान सरापा जीवन और आत्मा है, सखावत व नेक बखती है और पूजा भी।
 पवित्र कुरान ईश्वरीय शिक्षा, दिव्य संविधान और जीवित सनातन ज्ञान का नाम है।

 क्या हम में से कोई है जो हर समय पवित्र कुरान के साथ रमजान, गैर-रमजान में कुरान के साथ जीवन बिताए?  क्या हमें पवित्र कुरान की महानता का एहसास है? कि हम अपने जीवन को कुरान के माध्यम से खुशियों से भर लें, फिर प्रकाश और ज्ञान हमारे साथ हो।

   اللهم وقفنا لما تحب و ترضی_آمین

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