रोज़ह दार का वज़ीफ़ा। Rozah Daar Ka Wazifa।चौथा रोज़ह चौथा पाठ


रोज़ह दार का वज़ीफ़ा। Rozah Daae Ka Wazifa
चौथा रोज़ह चौथा पाठ 

रोज़ह दारों के कुछ ख़ास नग्मे। कुछ वज़ीफ़े हैं। रोज़े दार सब से ज़्यादह अल्लाह को याद करते हैं।  कभी अल्लाह की तारीफ करके तो कभी तकबीर और माफ़ी मांग कर।  उनको जब दिन लम्बा मालूम होने लगता है तो अल्लाह को याद करके दिन को छोटा कर लेते हैं। और जब भूक की शिकायत होती है तो उसकी सख्ती कुछ ख़ास वज़ीफों के ज़रिये ख़तम कर देते है। मानो पाक परवरदिगार में उन्हें लुत्फ़ मिलता है।  उसकी हम्द में उन्हें नेक बख्ती नसीब होती है। रोज़े दार अल्लाह को याद करते हैं तो अल्लाह उनको याद करते हैं जैसा की पवित्र क़ुरान कहता है :
 فاذكروني أذكركم  
 (البقره ١٥٢) (सूरे बक़रह १५२ )
तर्जमा: मुझको याद रखो मैं तुमको याद रखूँगा (बयानुल क़ुरान जिल्द १/९४ ) 
और जब वह अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं तो अल्लाह उन्हें खूब इनाम से नवाज़ते हैं। जैसा की पवित्र क़ुरान में आया है :
 لئن شكرتم لأزيدنكم 
(إبراهيم : ٧ )  ( इब्राहीम ल ७ )
तर्जमा : अगर तुम शुक्र करोगे तो तुम को ज़्यादह नेमत दूंगा। (बायनल क़ुरान : जिल्द २/२९२ )
सच्चे रोज़े दार कभी खड़े होकर।कभी बैठ कर।  और कभी पहलु के बल, मतलब यह है की हर हाल में अल्लाह का ज़िक्र करते हैं। 
सच्चे रोज़े दारों को अल्लाह का ज़िक्र करके दिली सुकून मिलता है। उनकी आत्माएं पाक परवरदिगार की मोहब्बत से भर जाती हैं और उनके नुफ़ूस शौक़े खुदा में झूम उठते हैं। 
पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है : की अल्लाह का ज़िक्र  करने वाला ज़िंदह शखस की तरह है। और अल्लाह का ज़िक्र न करने वाला मुर्दाह शख्स की तरह। 
दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको ज़िक्र की "ज़ाल " का भी पता नहीं। जबकि वह इसी दुनिया में ज़िन्दगी गुज़रते हैं। खाते पीते ,टहलते ,घुमते हैं। 
एक मर्तबा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : तनहा रहने वाले आगे हो गए , तनहा रहने वाले आगे बढ़ गए, सहाबा ने पूछा की तनहा रहने वाले कौन लोग हैं।  ऐ अल्लाह के रसूल ! तो आप ने फ़रमाया : भारी मात्रा में  अल्लाह का ज़िक्र करने वाले मर्द और औरतें। 
ज़िक्र करने वाला रोज़ह दार , भलाइयों और जन्नत की तरफ बहुत तेज बढ़ता है, जहन्नम से दूर भागता है , उसका आमाल नामा नेकियों और अच्छी चीज़ों से भर जाता है। एक हदीस में है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से एक शख्स ने किसी ऐसे अमल के बारे में  पुछा जिस पर वह मज़बूती से क़ाएम रहे तो आप सल्लल्लाहु अलैहि ने फ़रमाया 
" لا يزال لسانك رطبا من ذ كر الله "  ला याज़ालु लिसानुक रतबन मिन ज़िकृल्लह। 
यानी तुुम्हेँ हर वक़्त  खुदा का ज़िक्र करना चाहिए।
सच्च में यह कितनी खूबसूरत , भावुक और अचंभित वाली बात है की रोज़े दार अल्लाह  का ज़िक्र करे और भूका रहे , रोज़े दार अल्लाह की मॉला जपे और प्यासा रहे। 
अल्लाह का ज़िक्र करने वाले ज़्यादह तर वह लोग हैं  जो हर सांस , हर बात ,और हर मिनट में अल्लाह को याद रखते हैं। 
यही लोग अल्लाह की जानिब से बड़े बड़े इनाम और सवाब के मुस्तहिक़ होंगे। उसके उलट जो लोग अल्लाह की याद से हटने वाले हैं , ग़म मुसीबत के शिकार हो जाते हैं। उनके पास दवा तो होती है ; लेकिन वह कार्य में नहीं लाते , उनके पास इलाज तो होता है लेकिन वह समझ नहीं पाते।
 " ألا بذكر الله تطمئن القلوب " "अला बिजिकृल्लहि ततमईननुल क़ुलूब " 
एक हदीस में है की रसुल सल्लल्लाहु  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया : जो शख्स "
  سبحان الله و بحمده "
कहता है उसके लिए जन्नत में एक वृर्छ लगा दिया जाता है। इसलिए ज़िक्र से गाफिल लोग और बेकार कामों में व्यस्त लोग ऐसे बहोत से वृर्छ लगाने का औसर खो बैठते हैं।  
प्यारे नबी सल्लाल्ल्हू अलैहि वसल्लम का फरमान है : मेरे लिए
" سبحان الله  والحمدلله ولا إله إلا الله والله أكبر "
 कहना दिनिया की हर चीज़ से बेहतर है। 
जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु  अलैहि वसल्लम ने दुनिया की यह क़ीमत बता दी की :
 " سبحان الله  والحمدلله ولا إله إلا الله والله أكبر
की बराबरी इस पूरी ब्रह्माण्ड की कोई भी चीज़ नहीं कर सकती तो दुनिया के ख़ज़ाने , सोने चांदी , महल और घरों की क्या औक़ात होगी ? अब  कौन है वह शख्स जो हर पल इन शब्दों का जाप करे और  कल क़यामत में इकठ्ठा होने के  वक़्त अपने लिए रौशनी और ख़ुशी व लाभ के सामान तैयार करे।
एक मौके पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा से फ़रमाया : क्या मैं तुम्हें कोई ऐसा अमल न बाता दूँ जो तुम्हारे लिए सब से बेहतर और पाकीज़ह हो।  सोने चांदी से भी उम्दह हो। वह अमल तुम्हारे लिए शत्रु से मुक़ाबले में कामयाबी मिलने से भी बेहतर हो ? सहाबा ने अर्ज़ किया कियूं नहीं  ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ज़रूर बतलाइये ! तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसललम ने फ़रमाया : पाक परवरदिगार का ज़िक्र करना।
सलिहीन का यह आलम था की नामज़े फज्र से फारिग बैठ जाते और ज़िक्र करते रहते यहाँ तक की दिन काफी बलन्द हो जाता , कोई ऐसा करता की नामज़े फज्र से फारिग होने के बाद क़ुरान लेकर बैठ जाता , तिलावत करता , अल्लाह की निशानियों और आयतों में गौर करता , इस तरह अपनी छाती को नूर से और आमाल  नामा को अजर से भर लेता।
वह लोग मुकम्मल कोताही और नाकामी का शिकार होते हैं जो पूरा रमजान गुज़ार देते हैं लेकिन उन्हें अल्लाह के ज़िक्र की तौफीक नहीं मिलती।
 लेहाज़ा लोगों को अपनी इस ख़तम होने वाली ज़िन्दगी की क़दर करनी चाहिए।
इसी लिए शायर ने कहा है : इंसान के दिल की धड़कनें उस से यह कहती हैं की ज़िन्दगी तो सिर्फ मिनटों और सेकंडों का नाम है। इसलिए मौत से पहले अल्लाह का खूब ज़िक्र कर लो कियुँकि ज़िक्र इंसान के लिए दूसरी उम्र और ज़िन्दगी की हैसियत रखता है।

शेख आईज़ अल करनी  अरबी  किताब : रोज़ह दारों के ३० पाठ
 हिंदी : हामिद अख्तर













अपना कमेन्ट लिखें

Plz let me know about your emotion after reading this blog

और नया पुराने