जानिये : आँखों के रोजे का क्या अर्थ है | Aankhon Ke Roze Ka Matlab |

जानिये : आँखों के रोजे का क्या अर्थ है | Aankhon Ke Roze Ka Matlab |

हिन्दी: आसिम ताहिर आज़मी

 आँखों के रोजे का क्या अर्थ है 

रोजह आँखों का भी होता है, लेकिन आँखों के रोजे का क्या अर्थ है?

 इसलिए आंख का रोजह आंखों को नीचा रखने, हराम और निषेध से सुरक्षित रखने का नाम है।

 अल्लाह का इरशाद है:

’’قُلْ لِلْمُؤْمِنِیْنَ یَغُضُّوْا مِنْ أَبْصَارِہِمْ وَیَحْفَظُوْا فُرُوْجَہُمْ ذٰلِکَ أَزْکٰی لَہُمْ، إِنَّ اللّٰہَ خَبِیْرٌ بِمَا یَصْنَعُوْنَ، وَقُلْ لِلْمُؤْمِنَاتِ یَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِہِنَّ وَیَحْفَظْنَ فُرُوْجَہُنَّ‘‘۔
 (النور: ۱۳، ۳۰)

 अनुवाद:  आप मुस्लिम पुरुषों से कह दिजीए कि वो अपनी निगाहें नीची रखैं और अपनी शर्म गाहों की हिफाजत करें। ये उन के लिए  महत्वपूर्ण बात है बेशक अल्लाह तआला सब खबर है  जो कुछ लोग क्या करते हैं। और मुस्लिम महिलाओं से कह दिजीए:  अपनी निगाहें नीची रखें और अपने निजी भागों की रक्षा करें।  (ब्यान-उल-कुरान, २/५४८)

 आंख दिल का मार्ग है और आत्मा का द्वार, कवि कहता है आंख को लेकर 

 अनुवाद: मैं मृत्यु की दाई हूं, कोई ऐसा व्यक्ति है जो मृत्यु की इच्छा रखता है और कोन है जो मरने और मारने के लिए तैयार है।
एक हदीस है कि पवित्र नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अली से कहा: अपनी नज़रों की हिफ़ाज़त करो, जो अपनी नज़रों की हिफ़ाज़त नहीं करेगा उसे चार तकलीफ़ें झेलनी पड़ेंगी।

 (२) दिली चिंता: दिली चिंता और बेचैनी का शिकार रहता है, शांति नहीं मिलती , नतीजतन मनुष्य अपनी आँखों की उलझन की शिकायत करता है।

 (२) मानसिक थकान: जब कोई व्यक्ति अपनी आंखों से जो कुछ भी देख पाता है उसे हासिल नहीं कर पाता है, तो वह अफसोस और हसरत में मुबतला हो जाता है।  कवि कहता है:

 जब तुम अपनी आंखों को मुक्त करते हो तो  नजर आने वाली चीजें तुम्हें थका देती हैं, आप जो कुछ भी देखते हैं,  जब उसे पूरी तरह से हासिल नहीं कर सकते हैं,तो न ही आप ऐसा करने में सक्षम हैं, और न ही कुछ पर सब्र होने वाला है। 

 (२) पूजा की मिठास का खत्म होजाना: आँखों को मुक्त छोड़ने से पूजा और आज्ञाकारिता की मिठास गायब हो जाती है। ऐसे लोग इमान के स्वाद से वंचित रह जाते हैं। इमान और निश्चितता का स्वाद उन्हीं को मिलता है जो अपनी निगाहौं की हिफाजत करते हैं।
(२) अन्य पापों से पीड़ित होना
 नजर बाजी की बसा औकात सजा यह मिलती है कि व्यक्ति उससे पाप में मुबतला होजाता है।
 لاحول ولا قوۃ إلا باللّٰہ العلي العظیم۔
 पूर्वजों में से किसी एक ने कहा: एक बार जब मैंने अपनी दृष्टि का दुरुपयोग किया, तो चालीस साल बाद मैं पवित्र कुरान को भूल गया, इसलिए जो कोई भी अपनी दृष्टि को कम करेगा, अल्लाह उसे विश्वास की ऐसी मिठास प्रदान करेगा।  कि वह अपने दिल में इसका आनंद महसुस करेगा है।

 हुकमा का कहना है: यदि आंख को छोड़ दिया जाए, तो यह शिकार करती रहती है, और यदि  बाध्य कर दिया जाए है, तो यह आज्ञाकारी  रहती है, और यदि इसे मुक्त कर दिया जाए तो यह दिल को भ्रष्ट कर देती है, और यदि इसकी रस्सी को छोड़ दिया जाए तो हलाक कर देती है।

 अल्लामा किरमानी कहते हैं: जो कोई भी अपने आंख को नीचे रखता है, अपने भीतर की पवित्रता  और बाहर को  सुन्नत का पालन करता है, तो उसको इमानी परास्त अता कर दी जाती है और उन्होंने ये आयत पढ़ी।
’’إِنَّ فِيْ ذٰلِکَ لَآیَاتٌ لِلْمُتَوَسِّمِیْنَ‘‘۔
निगाहों को नीचे रखने के पाँच लाभ हैं:

 (१) अल्लाह के लिए आज्ञाकारिता की दौलत नसीब होती है,  और चीज इस दुनिया में और आखरत में मुसलमान के लिए बडी सआदत की बात है। 

 (२) दिल की संतुष्टी होती है, आनंद और खुशी के साथ  बहरा वर होता है।

 (३) अल्लाह की जानिब से बन्दे के ऊपर इल्म व मारफत और तकवा के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। 

 (४) मनुष्य गलतियों, गुनाहों और फितनो से सुरक्षित  और अल्लाह की पनाह में रहता है।

 (५) अल्लाह की तरफ से  विशेष ध्यान के रूप में  नूरे इमान अता क्या जाता है।

 जब भी रमजान का महीना आता है,  तो आंखें से भी रोजे का मुतालबा करता है। 

 भूख आंख की विद्रोह को समाप्त करती है और इसे कोई भी कदम उठाने से रोकती है।

 भूख नजर की शहवत को कमज़ोर कर के उसकी गर्मी को बुझा देती है।
कुछ लोग भूखे तो रहते हैं, लेकिन उपेक्षा के कारण वे हराम काम करते हैं और रोजे की वास्तविकता से वंचित रह जाते हैं।

 इसलिए, हम सभी को चाहिए कि जिस तरह भुक की शिद्दत को बर्दाश्त करते हैं उसी तरह अपनी आंखों की रक्षा करनी चाहिए, ताकि हमारी आत्माएं स्वस्थ रह सकें।  अल्लाह कहते हैं।
وَجَزَاہُمْ بِمَا صَبَرُوْا جَنَّۃً وَحَرِیْرًا، مُتَّکِئِیْنَ فِیْہَا عَلٰی الْأَرَائِکِ، لاَ یَرَوْنَ فِیْہَا شَمْسًاوَلاَزَمْہَرِیْرًا‘‘۔
(الدہر: ۱۳، ۱۴)
 अनुवाद: और उनकी पुखतगी के बदले में उन को स्वर्ग और रेशमी वस्त्र देगा, इस हालत में कि वो मसेहरियौं पर तकया लगाए होनगे न वहां तपिश पाएंगे और न ही ठंड। (ब्यान-उल-कुरान, खंड ३/४०४)

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