हिन्दी:आसिम ताहिर आज़मी
इस दुनिया में अहले इमान की कोई कमी नहीं है, लेकिन हर किसी का इमान समान नहीं है। कुछ का मजबूत इमान है, तो कुछ काकमजोर है, और कुछ के कर्मों में अच्छे काम हैं। तो कुछ मैं बुरे, इमान अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञाकारिता से मजबूत होता है अच्छे कार्य को न करने और बुरे कार्य को करने से कमजोर होता है नमाज से इमान में एजाफा होता है और फितना व फसाद से इमान में कमजोरी होती है सेबात और इसतेकामत से इमान को तकवियत मिलती है और इनहेराफ से इमान जोअफ का शिकार होता है, अल्लाह तआला का इर्शाद है :।
’’وَالَّذِیْنَ اہْتَدَوْ زَادَہُمْ ہُدًی وَآتَاہُمْ تَقْوَاہُمْ ‘‘ (محمد: ۱۷)
रमजान में इमान मजबूत होता है यकीन में एजाफा होता है, नीज़ रब से बंदे के कुरब की वजह से रमज़ान में जज्बा ए तौहीद नुमाया होता है, और इस्लाम का एक बड़ा रकन है रब से कुरबत का जरिया है, मोमिन और गुनाहगार में फर्क पैदा करता है बंदे और दोजख के दरम्यान दूरी कर देता है इस लिए नीचे कुछ ऐसे आमाल बतलाए जा रहे हैं जो मोमिन के इमान में एजाफा और यकीन में तकवियत का साबब हैं,।
(१)खुशुअ व खुजुअ और गोर व फिक्र के साथ नमाज बा जमात :
’’إِنَّ الصَّلاَۃَ کَانَتْ عَلٰی الْمُؤْمِنِیْنَ کِتَابًا مَوْقُوْتًا‘‘ (النسائ: ۱۰۳)
नमाज जमात के साथ दूरी को खत्म करती है 'दिल में अल्लाह का खौफ और खशिययत पैदा करती है, छोटे बड़े हर तरह के गुनाह से दूर रखती है, इर्शाद रब्बानी है :
’’إِنَّ الصَّلاَۃَ تَنْہَی عَنِ الْفَحْشَائِ وَالْمُنْکَرِ، وَلَذِکْرُ اللّٰہِ أَکْبَرُ وَاللّٰہُ یَعْلَمُ مَا تَصِفُوْنَ ‘‘(العنکبوت: ۴۵)
(२) कुरान की तिलावत: बशर्ते कि गौर व फिक्र मलहूज हो,मोमिन रमजान में कुरान के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करता है, और उसकी शिक्षाओं का पालन करता है।
’’کِتَابٌ أَنْزَلْنَاہُ إِلَیْکَ لِیَدَّبَّرُوْا آیَاتِہِ وَلَیَتَذَکَّرَ أُوْلُوْ الْأَلْبَابِ‘‘ (ص:۲۹)
यानी कुरान हम ने मुहम्मद पर इस लिए नाजिल फरमाया कि उस की आयतौं में गोर व फिक्र क्या जाए, अक्लमंद लोग इससे नसीहत हासिल करें इसी तरह दिल ज़ुबान और अंगो के जरिए अल्लाह का जिक्र करना उस की तसबीह व तकबीर करना सुबह व शाम अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगना इमानी कुव्वत में एजाफा का साबब है, अल्लाह खुद फरमाते हैं :।
’’فَاذْکُرُوْنِيْ أَذْکُرُکُمْ ‘‘ (البقرۃ: ۱۵۲)
तुम मेरा जिक्र करो! मैं तुम्हें याद रखूंगा,।(३) इलमे नाफे प्राप्त करना: धर्म में समझ पैदा करने के लिए, विद्वानों और अल्लाह के लोगों की संगति करना, उनसे सवालात करते रहना, अल्लाह तआला फरमाते हैं :।
’’فَاسْأَلُوْا أَہْلَ الذِّکْرِ إِنْ کُنْتُمْ لاَ تَعْلَمُوْنَ ‘‘(النحل: ۴۳)
’’فَاعْلَمْ أَنَّہُ لاَ إلَہَ إلاَّ اللّٰہُ، وَاسْتَغْفِرْ لِذَنْبِکَ ‘‘ (محمد: ۱۹)
इस आयत में कौल व अमल से पहले ज्ञान की चर्चा है।(४) सदका और अतया देना: यह भी इमान में वृद्धि का कारण है। अल्लाह के मार्ग में खर्च करने से मोमिन की इमानी शान को मजबूती मिलती है, उसकी आत्मा शुद्ध होती है और उसका रवैया दुरुस्त होता है।
(१) दुनिया में फैले संसार के भगवान के संकेतों में चिंतन: आकाश और पृथ्वी में बिखरे इसके प्रभावों का अध्ययन और प्राणियों में गौर भी मोमिन के इमान को बड़ाता है। कुरान कहता है:
’’وَیَتَفَکَّرُوْنَ فِي خَلْقِ السَّمٰوٰتِ وَالْأَرْضِ، رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ ہٰذَا بَاطِلاً سُبْحَانَکَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ‘‘ (آل عمران: ۱۹۱)
हमें इन सभी मामलों में सिक्के के दूसरे पहलू पर भी नजर रखनी चाहिए कि कुरान और सुन्नत से विचलन के कारण लोगों का इमान कमजोर हो जाता है। बहुत जल्द ही वे हिचकिचा जाते हैं, जो केवल मानव मन के बारे में सोचने के लिए संतुष्ट हैं, उनके पास मानव मस्तिष्क के आगे कोई मनजिल नहीं मजबूर व कमजोर इन्सानी मखलूक के जेहनी पैदावार व अफकार ही उन का मतमहे नजर होते हैं जो लोग इस राह के राही होते हैं वो बिला शुबह नाफे को छोड़ कर जार को तरजीह देने वाले हैं, उन की हलाकत और उनके खसारे के बारे में कोई शुबह नहीं, ये सब महज शैतानी गलबा की वजह से होता है।
’’أُوْلٰئِکَ حِزْبُ الشَّیْطَانِ، أَلاَ إِنَّ حِزْبَ الشَّیْطَانِ ہُمْ الْخَاسِرُوْنَ‘‘(المجادلۃ: ۱۹)
सच है कि यदि ज्ञान अच्छे कामों का जरिया न हो तो उस का नाम ज्ञान नहीं और अगर जेहन व दिमाग इन्सान को को गुमराही में डाल दें तो ऐसे जेहन व दिमाग का कोई फायदा नहीं,(२) खेल कूद और लापरवाही से भी इमान में कमी आती है। अल्लाह के उसूल से एराज करने वालौं, बातिल की हम नशीनी एखतेयार करने वालौं और शहवात व रजाइल के दाएरे में घूमने वालौं की सुहबत अहले इमान को घुन की तरह खा जाती है, इसी लिए अल्लाह फरमाते हैं।
*’’وَلاَ تُطِعْ مَنْ أَغْفَلْنَا قَلْبَہُ عَنْ ذِکْرِنَا وَاتَّبَعَ ہَوَاہُ وَکَانَ أَمْرُہُ فُرُطًا‘‘۔ (الکہف: ۲۸)*
(२) गुनाहों के लिए अंगों को छोड़ देना भी इमानी ताकत को कम कर देता है। दिल गुनाह की वजह से काला हो जाता है हम सब को ऐसी आंख से रबबुल इज्जत की पनाह मांगनी चाहिए। जो हराम की तरफ नजर उठाए। ऐसे कान से जो गानों को सुने। ऐसे दिल से जो शहवात में लज्जत महसूस करे। ऐसे हाथ से जो जुल्म करे। ऐसी शरमगाह से जो जो बुराई का इरतेकाब करे। ऐसे पेट से जो हराम भरे। जिस रोजह दार के लिंग नवाही से महफूज़ व मामून हों। उस के लिए रबबुल इज्जत की तरफ से अफव मगफेरत और जन्नत के ठेकाने का इलान है रययान से उस का दाखिला तै है। इन तमाम उमूर को सामने रख हम में से हर एक को अपनी जात का मुहासबा भी करना चाहिए। आय इस माह में हमारे इमान में कमी होइ या ज्यादती,।खुदाया! हमारे इमान को ताकत अता फरमा! यकीन में एजाफा फरमा! दीन पर इसतेकामत नसीब फरमा! आमीन
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