रमज़ान अल्लाह की मुहब्बत में एजाफे का कारण है | Ramzan Allah ki Mohabbat men izafe ka Sabab hai |Hindidastak

रमज़ान अल्लाह की मुहब्बत में एजाफे का कारण है |

हिन्दी:आसिम ताहिर आज़मी

रमजान वह महीना है जिसमें रब की आज्ञाकारिता सबसे अधिक तोर पर जाहिर होती है, प्रत्येक मोमिन का जीवन अतीत की तुलना में कुछ हद तक बदल जाती है, रब की आज्ञाकारिता रब के लिए प्रेम पैदा करती है  हां, रमजान में रोजे इस प्रेम में एजाफा का सामान पैदा करते हैं। रोजह दार का दिल इबादत की वजह से अल्लाह की मुहब्बत से धीरे-धीरे भर जाता है। अल्लाह से मुहब्बत की  दस संकेत हैं, यदि  अगर ये संकेत मौजूद हैं, तो इसका मतलब है कि अल्लाह के लिए सच्चा प्यार है, न कि कुछ ऐसा जो सिर्फ एक दावा है। नीचे दिए गए दस संकेतों का उल्लेख है।

(१) ईश्वर के वचन से प्रेम:

 यह वह कलाम है जिसके द्वारा ईश्वर ने अपने प्राणियों को संबोधित किया था और प्यारे पैगंबर मुहम्मद पर इस को उतारा। ईश्वर के कलाम का अर्थ है।  इसके पाठ के लिए जोश और जुनून दिल में मौजूद होना चाहिए, उस में गौर व फिक्र किया जाना चाहिए, इसकी शिक्षाओं और निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए, और कुरान के निर्देशों के बगीचे में चलने से दिल को सकून व आनंद मिलता है। ताकि रात में, प्रार्थना और शब बेदारी उस का मशगला हो, जीवन के सभी मामलों में कुरान की आवश्यकताएं, ईश्वरीय आदेश और ईश्वरीय निर्णयों पर उस को मानने में बोझ का इहसास न होता हो।
(2) अल्लाह के रसूल से प्यार
 बंदे के दिल में हो आप की पैरवी में उस को लुत्फ मिलता हो, कसरत से आप पर दरूद भेजता हो, और आप ही को नमूनाए अमल बनाता हो, यही मुतालबा कुरान का भी है :।
’’لَقَدْ کَانَ لَکُمْ فِيْ رَسُوْلِ اللّٰہِ أُسْوَۃٌ حَسَنَۃٌ لِمَنْ کَانَ یَرْجُوْا اللّٰہَ وَالْیَوْمَ الْآخِرَ وَذَکَرُ اللّٰہَ کَثِیْرًا‘‘(احزاب: ۲۱)
आप की सुन्नत ही उस की मुकतदा हो, आप के तरीके को ही रहनुमा बनाता हो, और इस बाबत किसी किस्म की तंगी और तजबजुब का शिकार न हो, इसी लिए अल्लाह फरमाते हैं :।
’’ فَلاَ وَرَبَّکَ لاَ یُوْمِنُوْنَ حَتّٰی یُحَکِّمُوْنَ فِیْمَا شَجَرَ بَیْنَہُمْ، ثُمَّ لاَ یَجِدُوْا فِيْ أَنْفُسِہِمْ حَرَجًا مِمَّا قَضَیْتَ وَیُسَلِّمُوْا تَسْلِیْمًا‘‘۔ (النسائ:۶۵)
(३) अल्लाह की मर्यादाओं का सम्मान करना: मोमिन की शान ये होनी चाहिए कि अल्लाह की मर्यादाओं का सम्मान करे, मुहररमात से बचना चाहिए, इस्लामी संस्कारों का अनादर उसके लिए असहनीय होना चाहिए,बिदआत व खुराफात और रस्म व रवाज से उस का दिल तडपता हो, तो उसे अपने दिल, ज़ुबान और हाथों के माध्यम से जितना संभव हो सके इस्लाम के धर्म को मजबूत करे, ईश्वरीय आज्ञाओं को लागू करने और उस पर अमल करने से पीछे न हटे, बल्कि उसी में उस को लज्जत व कुव्वत मिलती हो।

 (४) अल्लाह की संरक्षकता: बंदा को अल्लाह की संरक्षकता से सम्मानित हो, बल्कि  उसके प्राप्त करने के प्रयास हों, अल्लाह ऐसे बंदों से बहुत प्यार करते हैं, अल्लाह उनकी बहुत प्रशंसा करता है।
’’ أَلاَ إِنَّ أَوْلِیَائَ اللّٰہِ لاَخَوْفٌ عَلَیْہِمْ وَلاَہُمْ یَحْزَنُوْنَ، الَّذِیْنَ آمَنُوْا وَکَانُوْا یَتَّقُوْنَ‘‘(یونس:۶۲)
अन्य स्थान पर फरमाया।
’’إِنَّمَا وَلِیُّکُمُ اللّٰہُ وَرَسُوْلُہُ وَالَّذِیْنَ آمَنُوْا یُقِیْمُوْنَ الصَّلاَۃَ وَیُؤْتُوْنَ الزَّکَاۃَ وَہُمْ رَاکِعُوْنَ، وَمَنْ یَّتَوَلَّ اللّٰہَ وَرَسُوْلَہُ وَالَّذِیْنَ آمَنُوْا فَإِنَّ حِزْبَ اللّٰہِ ہُمْ الْغَالِبُوْنَ‘‘۔(المائدہ: ۵۵، ۵۶)
(५) अच्छे की आज्ञा देना, बुराई की मनाही करना: इस्लाम के सेवक को ऐसा होना चाहिए कि इस्लाम धर्म के लिए हर समय  बलिदान के लिए  तैयार रहना चाहिए।  जिसकी कार्रवाई केवल और केवल इस्लाम हो, अगर अवसर पडे, तो यह इस्लाम की तलवार बन जाएगा, अगर जरूरत हुई तो यह इस्लाम का भाला बन जाए। यह बलिदान भी अल्लाह को भाता है:
’’ وَلْتَکُنْ مِّنْکُمْ أُمَّۃً یَدْعُوْنَ إِلَی الْخَیْرِ، یَأْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَیَنْہَوْنَ عَنِ الْمُنْکَرِ أُوْلٰئِکَ ہُمُ الْمُفْلِحُوْنَ‘‘۔ (اٰل عمران: ۱۰۴)
 रमजान का महीना मोमिन इस सुरत हाल में एजाफा करता है। रोज़ह दारों की सारी खैर खाही और उन की सारी भाग दौड़ अल्लाह के बंदौं के लिए खर्च होती है। और दुनिया व उस की रंगीनियों से बे नयाज होकर बदला की उम्मीद सिर्फ एक जात से होती है।
(६) सुलहा की संगत: धर्मी के लिए प्रेम, संतों की संगति के प्रति उदासीनता और उनकी बातों को सुनने की इच्छा एक मोमिन में मौजूद होनी चाहिए, और उनसे मिलने और देखने की इच्छा हो।  उनकी सम्मान और नामूस का रछक हो, यहां तक ​​कि उनमें से सबसे अच्छा उनके गुणों को बयान करे। इसी इमानी जज्बा को देखते हुए, अल्लाह ने सभी मुसलमानों को एक दूसरे का भाई घोषित किया है।
’’إِنَّمَا الْمُؤْمِنُوْنَ إِخْوَۃٌ (الحجرات: ۱۰)
और इसी का मुतालबा करते
’’وَاعْتَصِمُوْا بِحَبْلِ اللّٰہِ جَمِیْعًا وَلاَ تَفُرَّقُوْا ‘‘
(آل عمران: ۱۰۳)
भी फरमाय है
(७) नवाफिल के माध्यम से ईश्वर के करीब होना: एक मोमिन को नवाफिल के माध्यम से ईश्वर का कुरब एखतेयार लिए करना चाहिए, अच्छे कामों के जरिए अल्लाह की रजा जोइ करे, रोजह, हज, जकात, जिक्र व तेलावत और सिला रहमी वगैरा, कामों में दिलचस्पी ले और पूरा करे, ऐसे बंदों की अल्लाह ने तारीफ की है,।
इसी लिए फरमाया है।
 إِنَّہُمْ کَانُوْا یُسَارِعُوْنَ فِيْ الْخَیْرَاتِ وَیَدْعُوْنَنَا رَغَبًا وَرَہْبًا وَکَانُوْا لَنَا خَاشِعِیْن ‘‘(الانبیائ: ۱۰)
और हदीस कुदसी में अल्लाह तआला फरमाते हैं:
*’’مَا یَزَالُ عَبْدِيْ یَتَقَرَّبُ إِلَيَّ بِالنَّوَافِلِ حَتّٰی أُحِبُّہُ ‘‘*
यानी बंदा नवाफिल के माध्यम से मेरा कुरब एखतेयार करता रहता है यहां तक कि मैं उससे मुहब्बत करने लगता हुं।
(८) इस दुनियावी जिंदगी को संसार के बाद की दुनिया को प्राथमिकता देना: यह भी एक मोमिन की प्रकृति में प्रवेश होना चाहिए, अल्लाह से मिलने के लिए भी तैयार रहना चाहिए, वो यात्रा जिससे से  वापसी की  कोई उम्मीद नहीं है, इसके लिए प्रदान करना आवश्यक है, सबसे अच्छे से अच्छा प्रदान होना आवश्यक है, क्योंकि मृत्यु अल्लाह के बंदों के लिए एक मीकात की हैसियत है, जिसके आगे कोई मंजिल नहीं है।  हमें ऐसे राष्ट्र में दाखिला लेना चाहिए जिसमें यात्रा करने का साधन हो, ताकि हमें किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े।
(९) तोबा ए नुसूह: कुरान कहता है:
’’تُوْبُوْا إِلَی اللّٰہِ تَوْبَۃً نَصُوْحًا‘‘ (التحریم:۸)
 लेहाजा एक मोमिन की पहचान होनी चाहिए, गुनाहों को छोड़ देना चाहिए, बातिल परसतों से दूर रहना चाहिए, गाफिलों को दोस्त न बनाना चाहिए, इस सिलसिले में कुरान की ये नसीहत काबिले ध्यान है :
’’اَلْأَخِلاَّئُ یَوْمَئِذٍ بَعْضُہُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ إلاَّ الْمُتَّقِیْنَ ‘‘(الزخرف: ۶۷)
और यही खबर पैगंबर ने भी दी है, इरशाद फरमाया :
اَلْمَرْئُ یُحْشَرُ مَعْ مَنْ أَحَبَّ
(१०) शहादत का ज़जबा:
ईश्वर के मार्ग में साक्षीभाव रखने और अपने जीवन को बलिदान करने की इच्छा प्रत्येक मोमिन के दिल में होनी चाहिए।जिस दिन कि इन्सानी जानैं  भगवान के रास्ते में बलिदान करने पेश किए जाएंगे, फिर वह अल्लाह के लिए अपने जीवन, संपत्ति और बच्चों सब कुछ बेच देता है।  और अल्लाह इस कुर्बानी के बदले में उसे बहुत लाभ देता है।  इन्हीं मोमिनीन की तारीफ करते हुए कुरान गोया है :
’’إِنَّ اللّٰہَ اشْتَرَی مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ أَنْفُسَہُمْ وَأَمْوَالَہُمْ بِأَنَّ لَہُمُ الْجَنَّۃُ یُقَاتِلُوْنَ فِيْ سَبِیْلِ اللّٰہِ فَیَقْتُلُوْنَ وَیُقْتَلُوْنَ‘‘ (التوبۃ: ۱۱۱)
ये दस ऐसे सिद्धांत हैं कि अगर कोई व्यक्ति उन्हें अपने जीवन में लाता है, उन्हें अपना कर्तव्य बनाता है, तो वह अल्लाह का प्रिय बन जाता है। पृथ्वी पर कौन व्यक्ति उस व्यक्ति की तुलना में अधिक खुश होगा जिसे अल्लाह ने चुना है, यौं तो रमजान वैसे ही मूल्यवान है। अब, यदि अब कोई रमजान के मेहनत करके  प्रभु के प्रिय का प्रमाण पत्र प्राप्त करता है  तो वह निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है।  अल्लाह तआला हम सब को अमल की तोफीक मरहमत फरमाए। आमीन

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