हिन्दी :आसिम ताहिर आज़मी
औलाद माता-पिता के पास अल्लाह की अमानत होते हैं, उनकी तरबयत माता-पिता का कर्तव्य है, रमजान एक ऐसा महीना है जिसमें हमारी तरबयत का असर बच्चों पर प्रकट होता है, सच्ची और ईमानदार तरबयत का असर यह है कि वे प्रार्थना,रोजह और तेलावत में रुचि लेते हैं, अन्यथा रमजान की तरह धन्य महीना भी हमारी ही लापरवाही और कोताही के कारण बर्बाद हो जाता है। पूर्वजों की विधि यह थी कि इस महीने में, जहाँ वे स्वयं संगठित थे और कर्मों की पुस्तक को वजनदार बनाने के बारे में चिंतित थे, उन्होंने कभी अपने बच्चों की उपेक्षा नहीं की। औलाद पर उनकी निगाह बराबर रहती थी, यही नहीं बल्कि उन्हें रोजह रखने की आदत डालते, तेलावत ए कुरान यहां तक रातों में इबादत की मशक भी कराते, माता-पिता को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमने अपने बच्चों को बचपन में जिस रुख पर लगाया।
उन्हैं जिस चीज की आदत डाली वही पसंद करेंगे और यह उनके भविष्य के जीवन में उनका मार्गदर्शक होगा। तो क्यों न रमजान के इस महीने में हम अपने बच्चों पर ध्यान दें? प्रशिक्षण के तरीकों को अपनाकर अपने बच्चों के भविष्य को रोशन बनायें; इसके बाद की जिंदगी की भी तैयारी करें। नीचे हम दस रेसिपी लिख रहे हैं जिनका उपयोग माता-पिता अपने बच्चों को बेहतरीन इस्लामी तरबियत के साँचे में ढाल सकते हैं।
2) पिता को अपने जीवन के हर पहलू में अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल होना चाहिए, क्योंकि बच्चे अपने पिता को कई कोणों से देखने की सलाहियत रखते हैं। कभी वो आपको अपना पिता मानते हैं और आपकी हरकत को देखते हैं। कभी-कभी, आपको एक शिक्षक और संरक्षक के रूप में देखते हुए, अल्लाह तआला ने हज़रत ज़कारिया के बारे में कहा था:
’’فَأَصْلَحْنَا لَہُ زَوْجَہُ، إِنَّہُمْ کَانُوْا یُسَارِعُوْنَ فِيْ الْخَیْرَاتِ وَیَدْعُوْنَنَا رَغْبًا وَرَہْبًا وَکَانُوْا لَنَا خَاشِعِیْنَ ‘‘۔ (الأنبیائ:۹۰)
(२) घर के वातावरण में बच्चा जो सुनता और देखता है उसका बच्चे के जीवन और भविष्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। यदि घर में इमान और कुरान का तजकरा होगा नमाज, रोजह आदि का एहतेमाम होगा। आज्ञाओं का पालन और अवज्ञा से बचना होगा, फिर बच्चा अपने आप इन चीजों का पाबंद हो जाएगा, उसे किसी की चेतावनी की जरूरत नहीं होगी और भविष्य में वह सीधे रास्ते पर रहेगा। शरीयत पर प्रतिबंध होगा, लेकिन अगर घर में माहौल इन चीजों के खिलाफ होगा, तो कुरान के बजाय गानों की समाअत होगी, नमाज रोजह और इबादत के बजाय खेल कूद शरीयत की तोहीन और उसका मजाक होगा तो बच्चे के जेहन में यही चीजें पैवस्त हो जाएंगी, और किसी भी सुरत में वो शरियत पर अमल न कर सकेगा इलला माशाअललाह।(३) माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों को अल्लाह की किताब से रब्त व जब्त पैदा करें. उन्हें कुरान याद करने का काम सौंपना चाहिए, और उन्हें तजवीद की रेआयत के साथ तेलावत का पाबंद बनाएं। क्योंकि बच्चों के लिए बचपन बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह सीखने का सबसे लाभदायक अवसर होता है। यदि यह सुनहरा अवसर खो गया और ये खूबसूरत पल यों ही बर्बाद हो गया, तो यकीन जानिए कि बच्चे के बड़े हो जाने के बाद माता-पिता को दुख का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
(3) बच्चों को बचपन में जितना संभव हो सके अपने साथ रखें, उन्हें अपनी निगरानी में रख कर बड़ों की सुहबत से दूर रखना चाहिए। क्योंकि बडों की सुहबत खारिश से ज्यादा नुकसान और दुश्मन से ज्यादा हलाकत खेज होवा करती है। इस ज़मीन पर ऐसे लोगों की कमी नहीं, जिंहों ने अपनी बुरी सुहबत के असर से सुलाहा को तबाह व बर्बाद किया है।इसी लिए अल्लाह के रसूल ने पहले उस को जानने और परखने की तलकीन की है। आप ने फरमाया :
''الْمَرْئُ عَلٰی دِیْنِ خَلِیْلِہٖ فَلْیَنْظُرْ أَحَدُکُمْ مَنْ یُخَالِلْ ''
और इसी लिए हुकमा का कहना है कि अगर किसी शख्स के अहवाल मालूम करने हों तो खुद उससे मालूम करने के बजाय उस के दोस्तों से तहकीक करनी चाहिए, क्योंकि इन्सान अपने दोस्त के तरीके पर चलता है।(६) माता-पिता को अपने बच्चों की इस प्रकार तरबयत करनीचाहिए कि उनके अंदर औसाफ व कमालात और खूबियों से मुहब्बत पैदा होजाए, उनके हुसूल के लिए मेहनत शौक और लगन का ज़जबा उन के अंदर इस तौर पर हो कि नफरत के कामों की तरफ आँख उठा कर न देखें। यही चीज अल्लाह को भी पसंद है आप ने इरशाद फरमाया :
''إِنَّ اللّٰہَ یَحِبُّ مَعَالِيَ الْأُمُوْرِ وَیَکْرَہْ سَفَاسِفَہَا ''
"माता-पिता को बच्चे के कपड़े, उसके आकार, रूप और स्थिति को भी देखना चाहिए,सुन्नत के तरीके से दूर न हों, उममते मुहम्मदीया के सुलाहा व उलामा और अतकिया का लेबास हो, न कि दुशमनान इस्लाम का, प कि उन से मिलना भी नहीं चाहिए, क्योंकि पैगंबर का इरशाद है :
''مَنْ تَشَبَّہَ بِقَوْمٍ فَہُوَ مِنْہُمْ ''
लेहाजा बच्चों को रेशम और सोने के कपड़ों से दूर रखें।(7) दीन और दीन से संबंधित सभी मामलों में बच्चे के दिल में सम्मान पैदा करना माता-पिता का कर्तव्य है। बच्चों की तरबियत ऐसी होनी चाहिए कि अल्लाह के अस्मा व सिफात और उस के अफआल की पाकी बयान करे, उयोब से उस को मुनजजह करार दे।
(8) प्रत्येक माता-पिता की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को धर्म के ज्ञान की ओर आकर्षित करें। यह ज्ञान फायदा मंद है।इस के अलावा अन्य ज्ञान नुकसान दह है माता-पिता के लिए कड़ी मेहनत और समर्पण पर नज़र रखना महत्वपूर्ण है। ज्ञान की तलाब में ईमानदारी होना भी महत्वपूर्ण है। हिफज व तकरार में भी रुचि बढ़ाता है। यह ज्ञान का कारण है। माता-पिता को इसके लाभों और परिणामों से अवगत कराएं, माता-पिता को अपने बच्चों को उपेक्षा के दायरे से बाहर रखने में मदद करती है।
(9) प्रत्येक प्रार्थना में बच्चों के लिए प्रार्थना करना उनकी तरक्की का कारण है। माता-पिता को इस संबंध में लगन से काम करने की आवश्यकता है। प्रार्थना करें, तहज्जुद और अन्य समय में, आजज़ी व इनकेसारी के साथ प्रार्थना करते रहें कि भगवान: हमारे बच्चों के दिलों में इमान को मजबूत कर दे! और उन्हें अपना विशेष समर्थन दें! अल्लाह तआला ऐसे माता पिता की तारीफ करते हुए कहते हैं:
’’وَالَّذِیْنَ یَقُوْلُوْنَ رَبَّنَا ہَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّیَّاتِنَا قُرَّۃَ أَعْیُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِیْنَ إِمَامًا‘‘۔(الفرقان: ۷۴)
बच्चों के साथ शफकत, प्रेम और दया का व्यवहार किया जाना चाहिए, और जितना संभव हो उतना हंसी मजाक करते रहना चाहिए। उन्हें लोगों के बीच कभी भी रुसवा नही करना चाहिए। अगर कोई गलत हरकत सरजद होजाए तो फिर सकून व इत्मीनान के साथ तंहाई में समझाना चाहिए। बच्चों के साथ उसी तरह पेश आना चाहिए जिस तरह रसूल पेश आते थे।
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