रमज़ान में फुजूलखर्ची और उम्मत का हाल | Ramzan men fuzool kharchi aur ummat ka haal | hindidastak


रमज़ान में फुजूलखर्ची  और  उम्मत का हाल |

हिन्दी: आसिम ताहिर आज़मी

इस्लाम में फुजूलखर्ची  की मनाही है, इसके बावजूद बहुत सी कौमैं इसका शिकार हुईं, और आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिनकी कोइ भी हरकत बिना फालतू के पूरा नहीं होती, अल्लाह तआला बहिष्कार से मना करते हुए कहते हैं :
’’وَلاَ تُسْرِفُوْا إِنَّہٗ لاَ یُحِبُّ الْمُسْرِفِیْنَ‘‘ (الأعراف: ۳۱)
फुजूलखर्ची  उन लोगों का काम होता है जिन के नजदीक खुदाई इनआमात का एकराम नही होता, अल्लाह की नेमातैं जिन के यहां बे हैसियत होती हैं इसी लिए फरमाया :
’’وَلاَ تُبَذِّرُ تَبْذِیْرًا، إِنَّ الْمُبَذِّرِیْنَ کَانُوْا إِخْوَانَ الشَّیَاطِیْنَ وَکَانَ الشَّیْطَانُ لِرَبِّہٖ کَفُوْرًا‘‘ (الاسرائ: ۲۶، ۲۷)
आज उममत में फुजूलखर्ची  की ज्यादती का ये हाल है कि लोग रमज़ान जेसे बा बरकत महीने में फुजूलखर्ची को फुजूलखर्ची  नहीं बल्कि अच्छा काम समझते हैं, उन का जेहन इस जानिब नहीं होता कि हमारा मुआशरह फुजूलखर्ची  की बहुत सी शकलौं का शिकार है तरह तरह से लोग फुजूलखर्ची  करते हैं उस की कुछ शकलैं लिखी जा रही हैं ताकि हमारे लिए उससे बचना आसान होजाए।
फुजूलखर्ची : १

 फुजूलखर्ची  का एक रूप यह है कि इन्सान जरूरत से अधिक भोजन कर बैठे, कुछ लोग अधिक भोजन करने के आदी होते हैं, ऐसे लोग रमजान, इफ्तारी और सेहरी में  कई प्रकार के स्वादिष्ट भोजन तैयार करते हैं।  एक तरफ, तथ्य यह है कि सभी चीजें जो उनके हाथों पर हैं, वे आवश्यकता से अधिक हैं, नतीजतन वह बच जाती हैं, फिर उन्हें फेंक दिया जाता है, ऐसे मालदारौं और भोजन के शौकीन लोगों को फुजूलखर्ची  से बचना बहुत जरूरी है।  मुसलमानों में गरीबों, जरूरतमंदों और बेसहारा लोगों की कोई कमी नहीं है। होना ये चाहिए कि जरुरत से जाएद चीजें इन्हीं गरीबों को दे दी जाएं। तकसीम करना हमेशा ज्यादाती का कारण होता है ये धन्य अमल आखिरत के लिए जखिरह बनेगा, और उस समय इस प्रकार काम आएगा कि इन्सान को इहसास भी न होसकेगा, अल्लाह को खर्च करने वाले बंदे बहुत पसंद हैं।
’’وَیُطْعِمُوْنَ الطَّعَامَ عَلٰی حُبِّہٖ مِسْکِیْنًا وَیَتِیْمًا وأَسِیْرًا، إِنَّمَا نُطْعِمُکُمْ لِوَجْہِ اللّٰہِ، لاَ نُرِیْدُ مِنْکُمْ جَزَائً وَلاَ شُکُوْرًا، إِنَّا نَخَافُ مِنْ رَّبِّنَا یَوْمًا عَبُوْسًا قَمْطَرِیْرًا‘‘ (الانسان: ۸، ۹، ۱۰)
दूसरी तरफ हदीस में उन लोगों के बारे में है जो खर्च नहीं करते हैं कि अल्लाह तआला फैसले के दिन उनसे पूछेंगे: ऐ इन्सान! मुझे भूक लगी; लेकिन तुमने मुझे खिलाया नहीं: खुदाया, मैं तुम्हें कैसे खिलाता, आप तो दुनिया के पालनहार हैं,अल्लाह तआला कहेंगे! क्या तुम नहीं जानते कि मेरा फुलां बंदा भूखा था और तुमने उसे खाना नहीं दिया, अगर तुम  उस को खिलाते, तो आपको आज इसका इनाम मिलता।

ईद-उल-फ़ित्र के लिए अत्यधिक तैयारी, कपड़े, खेल और अन्य कार्यक्रमों पर बहुत पैसा खर्च करना भी फालतू का एक रूप है। कुछ लोगों का हाल ये होता है कि इस तरह के फजूल और ला यानी कामों में खूब दिलचस्पी लेते हैं जबकि अच्छे कामों से दूर रहते हैं, जिन्हें अल्लाह ने माल व दौलत से नवाजा है, उन्हें अपने मुआशरे पर भी नज़र रखनी चाहिए। हमारे शहर और गांवों में अनाथ हैं, पड़ोस में गरीब और जरूरतमंद हैं, हमें यह देखना होगा कि क्या हम कभी भूखे को खाना खिलाते हैं, जरूरतमंदों को कपड़ा पहनाते हैं? अल्लाह के घर के निर्माण में दिलचस्पी लेते हैं? क्या आप कभी अलग होने वालों से संपर्क करना चाहते हैं? और क्या आप कभी संकट में किसी की मुसीबत को दूर करते हैं? हम में से प्रत्येक को अपने अंदर देखने की जरूरत है।  आज रोजह दारों का ये हाल है कि यह है कि वो यहाँ और वहाँ की बैठकों में बहुत समय बिताते हैं, बिना किसी रुचि और लाभ के कई बैठकें करते हैं, एक-दूसरे से मिलते हैं, यह भी याद रखें! कि ये भी फुजूलखर्ची  में दाखिल है क्योंकि यह जीवन के केवल अनमोल क्षणों को बर्बाद करता है, रमजान के धन्य समय लापरवाही के कारण बर्बाद हो जाते हैं, जबकि परिणाम अफसोस के अलावा कुछ भी नहीं है।  कहीं ऐसा न हो कि जब होश में आएं तो
’’یَا حَسْرَتَنَا عَلٰی مَا فَرَّطْنَا فِیْہَا"
 हमारा कर्तव्य बन चुका हो।
फुजूलखर्ची  (२ )
 फुजूलखर्ची  का एक ये रूप भी है इन्सान खेल कूद में शांत और संतुष्ट महसूस करे, गणित के खेल और गेंद आदि में रुचि लेता है, इबादत जिक्र व तेलावत हसूले इल्म दअवत व तबलीग अमर बिलमारूफ और नहीं अनिल मुनकर के समय घूमने फिरने में बर्बाद कर कर देते हों, बाज लोग तो वक्त के बर्बाद के ऐसे आदी होते हैं कि वक्त के खत्म होने का उन्हें एहसास नहीं होपाता। उन की सूरतहाल देख कर तो ये एहसास होता है कि कब्र में पहुंच कर उन्हें होश में आएगा। अल्लाह हम सब की हेफाजत फरमाए, आमीन ।
अहले इमान याद रखें!

 कि अगर तकवा व खशिययत का तोशा साथ न लिया और मौत के बाद आप ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जिसके हाथ में भय और  ईमानदारी है, तो उस व्यक्ति को शुभकामनाएँ। और पछतावा होगा कि काश हम भी इसी तरह यहां आने से पहले तययारी कर लेते, हम तो यहां तययारी के बग़ैर आ गए,।
लोगों की परिस्थितियों के आधार पर, फुजूलखर्ची  के कई रूप होते हैं । कुछ लोग पाप में फुजूलखर्ची  करते हैं। ये फुजूलखर्ची  मृत्य का कारण है बल्कि बहुत ज्यादा नुकसान दह है और इससे आगे बढ़ कर ये फुजूलखर्ची  की सबसे बदतरीन किस्म है। इन अपव्यय से मृत्यु हो जाती है;
 कुछ लोग समय में फुजूलखर्ची  से काम लेते हैं, इसे तरह उड़ाते  और बिखेरते हैं कि वे इसे जानते भी नहीं हैं, उन्हें हिसाब के दिन सबसे अधिक पछतावा उन्हीं को होगा।
कुछ लोगों का हाल ये है कि उन्हें खाने पीने और कपड़ों में फुजूलखर्ची  से रुचि रखते हैं, जबकि कुछ लोग खेल और अवकाश गतिविधियों में फुजूलखर्च  करते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है कि वास्तविक अर्थ  मैं वो अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं, बल्कि अपना शीश महल अपने हाथों से खुद गिरा रहे हैं।
’’اللہم لا تجعلنا منہم ‘‘
रमज़ान का महीना एक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की हैसियत रखता है। यदि कोई व्यक्ति इस महीने के दौरान अच्छे कर्म करने का आदी हो जाता है, तो वह बाकी महिनों में भी उसस से नफा उठाएगा। वह चीज उस की जिंदगी का रुख बदलने के लिए काफी होगी। यदि फुजूलखर्ची  के इन पहलुओं पर ध्यान देते हैं, तो हम अपने पड़ोसियों के लिए और दूसरों के लिए फायदेमंद होंगे।

 अल्लाह तआला हमें हर मामले में उदारवादी बनाए।  आमीन

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