हिन्दी:आसिम ताहिर आज़मी
सच्चे दिल और ईमानदारी के साथ रोजह रखने वाले रमज़ान के इस महिना मैं बहुत सी खूबियों के मालिक बन जाते हैं, उनके दिल में आजज़ी व इनकेसारी पैदा होती है, जज़्बा ए शफकत व मुहब्बत में एजाफा होता है रोजह दार की शफकत व मेहरबानी सबसे अधिक हकदार उस के करीबी होते हैं, रमजान हर तरह के रिश्तों को मुस्लिमों को याद दिलाता है, यहां तक कि वो करीब के हों या दूर के हों, हर मुस्लिम को इस धन्य महीने में अपने रिश्तेदारों के साथ तअललुक पैदा करना चाहिए, उनसे प्यार का इजहार करे, सिला रहमी में कोई कमी न हो; क्योंकि रमजान स्वयं के बजाय अच्छे कर्मों का मौसम है इसके अलावा, निकट और दूर, सभी प्रकार के रिश्तों का विचार: "नूरू अला नूर" है।
लेकिन जो लोग सिला रहमी के बजाय रिश्तों को तोड़ते हैं रब्त व तअललुक के बजाए दूरी के पहलु को अपनाते हैं, वे अल्लाह की दृष्टि में नापसंद और अस्वीकार्य हैं। बहुत कठोर लहजे में, अल्लाह ऐसे लोगों पर एक अभिशाप भेजते हैं। फरमाते हैं :
’’فَہَلْ عَسَیْتُمْ إِنْ تُفْسِدُوْا فِي الْأَرْضِ وَتُقَطِّعُوْا أَرْحَامَکُمْ، أُوْلٰئِکَ الَّذِیْنَ لَعَنَہُمُ اللّٰہُ فَأَصَمَّہُمْ وَأَعْمٰی أَبْصَارَہُمْ‘‘ (محمد: ۲۲، ۲۳)
यकीनन रिश्तों को तोड़ना बहुत ना पसंदीदा हरकत है बहुत बड़ा गुनाह और क़ाबिल लानत जुर्म है जब कि रिश्तों को जोड़ना बहुत बड़ी नेकी और आमाले सालेहा में बड़ा मकाम है, एक हकीम अरबी कवि ने कहा, "मेरे और मेरे रिश्तेदारों के बीच का रिश्ता बहुत अलग है, उनकी शर्त यह है कि वे मेरे सम्मान का उल्लंघन करते हैं और मैं उनका सम्मान करता हूं।" वो मेरी शराफत व बुजुर्गि की एमारत गिराते हैं, और मैं उनके सम्मान और महानता का संपादन करता हूं, मुझे उनके प्रति किसी भी प्रकार का कोई कीना और हसद नहीं है, जब उनके कार्य उनके खिलाफ हैं, भला कौम का सरदार वो शख्स कैसे बन सकता है, जिस के दिल में अपनी ही कौम के तईं कीना और हसद भरा होवा है।जो लोग सिला रहमी नहीं करते, उनके बारे में अल्लाह के रसूल का संदेश।
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा,
''لا یدخل الجنۃ قاطع رحم ''
ऐसा व्यक्ति स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकेगा, यहां तक कि उसकी बुद्धि भी। उसने कहा, "अल्लाह किसी चीज़ को इतना महत्व देता है कि वह उसे जोड़ने की आज्ञा देता है और आदमी उसे तोड़ देता है। भला ऐसा व्यक्ति स्वर्ग में क्योंकर प्रवेश होगा?" नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा:
’’لَمَّا خَلَقَ اللّٰہُ الرَّحِمَ تَعَلَّقَتْ بِالْعَرْشِ فَقَالَتْ ہٰذَا مَقَامُ الْعَائِذِ بِکَ مِنَ الْقَطِعَۃِ قَالَ: اٰلاَ تَرْضَیْنَ أَنْ أَصِلَ مَنْ وَصَلَکِ وَأَقْطَعَ مَنْ قَطَعَکِ قَالَتْ: بَلٰی، قَالَ: فَذٰلِکَ لَکِ ‘‘
यानी अल्लाह ने रिश्ते को बनाने के बाद उनसे एक प्रश्न पूछा: कि क्या तुझे ये नापसंद है कि मैं उस शख्स से रब्त रखूँ जो तुझ से रब्त रखे, और उससे रिश्ता खत्म करुं जो तुझ से रिश्ता खत्म खत्म करे तो "रिश्ता दारी" ने उस पर रजामंदी का इजहार किया।इसी तरह, एक अन्य हदीस में, एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल के पास आए और कहे, "ऐ अल्लाह के रसूल, मेरे कुछ ऐसे रिश्ते दार हैं जिनसे मैं रब्त व तअललूक रखना चाहता हूं।" लेकिन वे मुझसे रिश्ता तोड़ते हैं, मैं उनके साथ अच्छा व्यवहार करता हूं, वे मेरे साथ बुरा व्यवहार करते हैं, इसलिए पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जवाबन फरमाया: अगर ऐसा है, तो ये अमल खुद उनके तकलीफ दह होगा। चिंता न करें, अल्लाह आपका सहायक है, इसलिए प्रत्येक मुसलमान को इस संबंध में अल्लाह के रसूल के जीवन का अध्ययन करना चाहिए। क्या आपके रिश्तेदारों ने आपको घर से बाहर नहीं निकाला था? क्या आप पीड़ित नहीं थे, क्या आपने मुसीबतों और उत्पीड़न का पहाड़ नहीं तोड़ा? या आप से लड़ाई नहीं की? लेकिन अल्लाह ने जब उन्हें अधिकार दिया, आप को ताकत अता फरमाई तो उन्होंने तुरंत उनके लिए माफी की घोषणा की। बदला लेने और दंड के बारे में उनकी ज़ुबान से एक भी जुमला नहीं निकला।
अलगरज: सिला रहमी उम्र में एजाफा और बरकत का कारण है, जिसके कारण जीवन एक महान बन जाता है; नीज सवाब में ज्यादती भी होती है सिला रहमी कमाल ए ईमान अल्लाह से डर, और कुरान की इताअत का ज़जबा पैदा करती है सिला रहमी इन्सान को बुरी जगहों से दूर रखती है, दुनिया व आखिरत में रुसवाई नीज बुरे काम से महफूज भी रखती है।
एक हदीस में है जिसमें अल्लाह के रसूल फरमाते हैं:
’’إِنَّ اللّٰہَ أَمَرَنِيْ أَنْ أَصِلَ مَنْ قَطَعْنِي، وَأَنْ أَعْفُوْا عَمَّنْ ظَلَمَنِيْ، وَأَنْ أُعْطِيَ مَنْ حَرَمَنِيْ ‘‘
यानी अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है कि रिश्ता खत्म करने वालों के साथ रब्त व तअललुक रखूं, अत्याचारियों को क्षमा करों और न देने वालों के साथ अता व बखशिश का मामला करूं, ”मनुष्य की सिला रहमी के सबसे बड़े मजहर उसके माता-पिता हैं। उनके साथ मुहब्बत से पेश आना उनका एकराम करना उनकी फरमांबरदारी करना और उनके लिए दुआ करना इन्सान पर वाजिब है इसी लिए कुरान ने माता-पिता के मुतअललिक औलाद को ये नसीहत की है :
’’وَقَضٰی رَبُّکَ أَلاَّ تَعْبُدُوْا إِلاَّ إِیَّاہُ وَبِالْوَالِدَیْنِ إِحْسَانًا، إِمَّا یَبْلُغَنَّ عِنْدَکَ الْکِبَرَ أَحَدُہُمَا أَوْ کِلاَہُمَا فَلاَ تَقُلْ لَہُمَا أُفٍّ وَلاَ تَنْہَرْہُمَا وَقُلْ لَّہُمَا قَوْلاً کَرِیْمًا وَاخْفِضْ لَہُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّجْمَۃِ، وَقُلْ رَّبِّ ارْحَمْہُمَا کَمَا رَبَّیَانِيْ صَغِیْرًا‘‘ (الإسرائ: ۲۳، ۲۴)
एक सहाबी अल्लाह के रसूल के पास आए और मालूम किये:ऐ अल्लाह के रसूल मेरे हुस्न व सलूक का सबसे ज्यादा हकदार कोन है? आप ने फरमाया! तुम्हारी माता:उन्होंने फिर पुछा कि उसके बाद कौन? आप ने फिर फरमाया :कि तुम्हारी माता उन्होंने फिर वही पूछा तो आप ने फरमाया :तुम्हारे पिताइसी तरह, ये किस्सा हमारे लिए एक अपने दामन में एक इबरत का सामान रखता है
कि एक नाफरमान लड़का था जिसने अपने पिता के साथ अन्याय किया,
उसकी तौहीन की उनके एहसानात का इन्कार किया, पिता रो पड़े और कविता में अपने बेटे को जवाब दिया, मेरा बेटे! तुम एक बच्चे थे, मैंने तुम्हें खाना दिया, तुम बीमार थे, मैंने तुम्हारा इलाज किया, यह एक रात की घटना है! तुम बीमारी से पीड़ित थे, और मैं आपकी बीमारी के कारण पूरी रात बेचैन था, मैं सो नहीं सका, चाहे आप आज किस उम्र के हैं, मुझे आपके प्रति मेरे रवैये की कोई उम्मीद नहीं था। हां, आपने मेरे एहसानात का बदला सख्ती से दिया, कठोरता से चुका दिया, यों मालूम होता है कि अच्छाई की बागडोर आपके हाथों में है।
रोजह अच्छे व्यवहार का एक महान अभिव्यक्ति है। रोजह सिला रहमी का दरस देता है रोजह अच्छाई और नैतिकता का कारण है। यह दया और करुणा का सहायक है। यह प्रेम की रस्सी है। रोजह रखने वाले व्यक्ति की आत्मा शुद्ध हो जाती है। दिल शुद्ध और स्पष्ट हो जाता है, एहसासात व जज़्बात में रिककत और फितरत व तबीयत में नरमी पैदा होती है, सिला रहमी के हवाले से कुरान व हदीस शिक्षाओं का पालन करना आवश्यक है। विशेष रूप से रमजान के इस महीने में, हमें अपने रिश्तेदारों के साथ शफकत और प्रेम से पेश आना चाहिए, हमें उनसे भी मिलना चाहिए, हमें उनके लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए! अल्लाह कभी किसी के अच्छे कामों का अजर ज़ाय नही करता, खुदाया! हमें दीन पर इसतेक़ामत नसीब फरमां, नबी की सुन्नत पर चलने वाला बना, सीधे रास्ते पर चला, आमीन
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