रमज़ान रहमत का महिना है | Ramzan Rahmat Ka Maheena Hai | Hindi dastak

रमज़ान रहमत का महिना है | Ramzan Rahmat Ka Maheena Hai |  Hindidastak

अल्लाह ने मनुष्य को कई विशेष गुणों के साथ संपन्न किया है और उस पर अनगिनत इनआम व इकराम किये हैं।
अल्लाह के महान नेमतों में से एक नेमत "रहमत" है। अल्लाह जिस को चाहता है उस को नेमत से नवाजता है। यह गुण केवल दयालु सेवकों पर प्रकट होता है।

 अल्लाह रहमान है, रहीम है, रहम करने वालों से  प्यार करता है, वह अपने सेवकों को धैर्य और दया के चरणों में मजबूती से पकड़ने का आज्ञा देता है, लेकिन अल्लाह के कुछ सेवक हैं जो इस धरती पर बस्ते हैं जो महान आशीर्वाद से वंचित हैं।  इस अभाव के कुछ कारण हैं, हमें उन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है, ताकि रमजान के इस धन्य और दयापूर्ण महीने में, हम भी भगवान की दया का आनंद ले सकें, और महरूमी का शिकार न हो सकें:  इन कारणों को मुखतसर नकल किया जा रहा है:
(1) गुनाहों की ज्यादती: यह एक ऐसा कार्य है जो दिल पर ऐसा ज़ंग लगाता है कि व्यक्ति अंधा हो जाता है। गुनाहों के अलावा उसे कुछ दिखाई भी नहीं देता बल्कि पत्थर से भी ज्यादा कठोर दिल हो जाता है। बनी इसराइल की इस सुरतहाल को कुरान ने बयान किया है:  कुरान कहता है:
’’ثُمَّ قَسَتْ قُلُوْبُکُمْ مِنْ بَعْدِ ذٰلِکَ فَہِيَ کَالْحِجَارَۃِ أَوْ أَشَدُّ قَسْوَۃً‘‘ (البقرۃ: ۷۴)
और जब बनी इसराइल ने खुदावंदी अहकाम मानने से इन्कार कर दिया, शरिअत के तईं सर कशी शुरू कर दी तो कुरान ने कहा:
’’فَبِمَا نَقْضِہِمْ مِّیْثَاقَہُمْ لَعَنَّاہُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوْبَہُمْ ‘‘
 (المائد: ۱۳)
यानी जब बनी इस्राएल ने अपना वचन  तोड़ा, तो हमने उन्हें अपनी दया से वंचित कर दिया और उनके दिलों को कठोर कर दिया।
(२) धन का घमंड: धन की ज्यादती,  और उसके कारण अहंकार,नीज सर कशी और तकबबुर भी इन्सान को रहमत से दूर रखता है इसी को कुरान ने कहा है :
’’کَلاَّ إِنَّ الْإِنْسَانَ لَیَطْغٰی أَنْ رَّآہُ اسْتَغْنٰی‘‘۔ (العلق: ۶،۷)

(३) अधिक भोजन करना: जब कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा खा लेता है, तो वह नेमत की ना शुकरी के जाल में फंस जाता है, मगरूर और मतकबबिर होजाता है  इसीलिए रोजह की मशरूइयत में से एक स्वार्थी इच्छाओं को खत्म करना है। लोगों के बीच सबसे रहमत व मुहब्बत का जज़्बा रोजह दारों में होता है, क्योंकि वो भूख और प्यास को सहन करते हैं और कठिनाइयों को झेलने की वजह से मुसलमानों के प्रति दिल नरम हो जाता है, हर एक के साथ रहमत और मुहब्बत के साथ पेश आने का शौक पैदा होता है।
 प्रत्येक मुसलमान को दया की विशेषता के साथ संपन्न होना आवश्यक है। एक मुसलमान को अन्य मुसलमानों के साथ दया और प्रेम का व्यवहार करना चाहिए। जिम्मेदार लोगों को चाहिए कि अपनी रेआया के साथ रहम व कर्म का मामला करे, उनके साथ दया और सौम्यता से पेश आए एक दूसरे के साथ रहम व कर्म का मामला करने वालों के लिए अल्लाह के रसूल ने दुआ की है, फरमाया:*
’’اللّٰہُمَّ مَنْ وُلِّيَ مِنْ أَمْرِ أُمَّتِيْ شَیْئًا فَشَقَّ عَلَیْہِمْ، فَاشْفُقْ عَلَیْہِ وَمَنْ وُلِّيَ مِنْ أَمْرِ أُمَّتِيْ شَیْئًا فَرَفَقَ بِہِمْ فَارْفُقْ بِہٖ‘‘
 खुदाया!  जिस शख्स को मेरी उम्मत का कोई मामला दिया गया, फिर वह लोगों के साथ दया का व्यवहार करता है, तो आपको भी उसके साथ दया का व्यवहार करना चाहिए! और जिस शख्स को मेरी उम्मत की कोई जिम्मेदारी दी गई, तो उसे लोगों के साथ नरमी का मामला किया तो, तु भी उसके साथ नरमी का मामला फरमा! एक दूसरी रेवायत में अल्लाह के रसूल ने फरमाते हैं :
’’مَنْ وَلاَّہُ اللّٰہُ أَمْرًا مِنْ أُمَّتِيْ فَاحْتَجَبَ دُوْنَ حَاجَتِہِمْ وَخُلَّتِہِمْ وَفَقْرِہِمْ، اِحْتَجَبَ اللّٰہُ دُوْنَ حَاجَتِہٖ وَخُلَّتِہِ وَفَقْرِہِ یَوْمَ الْقِیَامَۃِ‘‘
यानी जिस व्यक्ति के कंधे पर मेरी उम्मत की कोई जिम्मेदारी सौंपी गई, उसने लोगों की जरूरतों का ख्याल रखा गुरबत और फकीरी में उनके काम आया तो अल्लाह तआला केयामत के दिन उसकी हाजत रवाई फरमाएंगे
 विद्वानों को अपने छात्रों के साथ दयालुता का व्यवहार करना चाहिए, उनके साथ नरमी से पेश आएं, आसान तरीन और उम्दा लब व लहजे में उन से मुखातिब हों, ताकि छात्र उनसे मुहब्बत करें, उनके कलाम से फाएदा उठा सकें, ऐसे लोगों को अल्लाह बहुत सवाब से नवाजते हैं अल्लाह तआला ने अपने पैगंबर को भी इस की नसीहत की थी।
’’فبما رحمۃ من اللہ لنت لہم ولو کنت فظا غلیظ القلب لا نفضوا من حو لک ‘‘
इमाम को चाहिए कि मुकतदीयों के साथ रहम व करम का मामला करे, उनके लिए परीशानी का कारण न हो, बल्कि मुहब्बत व हिकमत और मेहरबानी के साथ पेश आए, अल्लाह के रसूल का इरशाद है :
’’مَنْ أَمَّ مِنْکُمْ بِالنَّاسِ فَلْیُخَفِّفُ فَإِنَّ فِیْہِمُ الْکَبِیْرَ وَالْمَرِیْضَ وَالصَّغِیْرَ وَذَا الْحَاجَۃِ‘‘
यानी इमाम को केरात कम करना चाहिए क्योंकि मुकतदीयों में बुढे और बीमार लोग भी होते हैं, छोटे और जरूरतमंद लोग भी होते हैं। एक बार हज़रत मआज ने एक लंबी केरात कर दी, तो आप ने उनसे कहा! मआज!  आपने लोगों को परेशानी में डाला ... मआज! आपने लोगों को परेशानी में डाला ...  एक रेवायत में है कि उसमान इब्न अबी अल-आस सकफी ने अल्लाह के रसूल से कहा हे अल्लाह के रसूल!  मुझे अपनी कौम का इमाम बना दिजीये! आपने उनसे कहा: आप अपने कौम के इमाम हैं, कमजोरों का ख्याल रखें: दाई व मुबललिग को चाहिए कि उम्मत के साथ रहम व कर्म का मामला करे, मुहब्बत से उन्हें दीन की बातें बताएं, किसी को रुसवा न करे, किसी पर तंकीद न करे, लोगों के सामने गुनाहगारों पर लान तान न करे, इसी लिए जब हारून अलेहिससालाम फिरऔन के पास अल्लाह तआला का पैगाम ले कर जा रहे थे, तो अल्लाह ने दोनों हजरात को नरम कलामी की नसीहत की थी :
’’فَقُوْلاَ لَہُ قَوْلاً لَیِّنًا، لَعَلَّہُ یَتَذَکَّرُ أَوْ یَخْشٰی‘‘ (طٰہ: ۴۴)
इसके अलावा, कुरान ने अल्लाह के पैगंबर को भी तबलीग के वक्त हिकमत और खुश कलामी की तलकीन की है, फरमाय!
’’أُدْعُ إِلٰی سَبِیْلِ رَبِّکَ بِالْحِکْمَۃِ وَالْمَوْعِظَۃِ الْحَسَنَۃِ وَجَادِلْہُمْ بِالَّتِيْ ہِيَ أَحْسَنُ ‘‘(النحل: ۲۵)
 कुरआन और हदीस के ये निषेध आज विद्वानों को आमंत्रित कर रहे हैं। हमें अपने आचरण पर मुहासबा करने की आवश्यकता है। हज़रत इमाम शफ़ीई कहते हैं: मुझे एकांत में नसीहत किया करो! जनता में नहीं!  क्योंकि लोगों में  नसीहत एक तरह की तौबीख है, और मैं इसे नापसंद करता हूँ: लेकिन अगर आप मेरी अवज्ञा करते हैं  यदि आप मेरी बात नहीं मानते हैं, तो जब आपके शब्द नहीं सुने जाएंगे तो घबराएं नहीं।
माता-पिता को अपने बच्चों के साथ रहम व कर्म से पेश आना चाहिए, क्योंकि उनके बच्चों के लिए माता-पिता का स्नेह और प्यार उनकी अच्छाई और सफलता में बहुत बड़ा दखल होता है और गंभीरता व सख्ती दोनों ही हानिकारक हैं।  अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा:
 ’’مَا کَانَ الرِّفْقُ فِيْ شَيئٍ إِلاَّ زَانَہُ، وَمَا نَزِعَ الرِّفْقُ فِيْ شَيئٍ إِلاَّ شَانَہُ ‘‘
कि नरमी जिस चीज में होगी उसे उम्दा बनाएगी, और जिस चीज से नरमी निकाल ली गई वो चीज ऐबदार होजाएगी,
ऐ रोजह दारो, तुमने भूख को सहन किया : (अल्लाह स्वीकार करे) लेकिन हजारों भूखे हैं और एक लुकमे के मुंतजिर हैं, क्या उन्हें खिलाने वाला कोई है?
 ऐ रोजह दारो! तुमने प्यास की शिद्दत को बर्दाश्तकी! हजारों प्यासे लोग पानी के एक घूंट के मुंतजिर हैं, तो किया है कोई है पानी पिलाने वाला?
ऐ रोजह दारो, तुम सुंदर वस्त्रों से सुशोभित हो! ऐसे हजारों लोग हैं जिनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं, वे कपड़े के एक टुकड़े की प्रतीक्षा कर रहे हैं: तो क्या है कोई: कपड़ा पहनाने वाला?
 खुदाया! हमें अपने दामन ए रहमत में ढाँप ले! हमारे पापों को क्षमा कर!  गलतियों को माफ कर ! लगजिशों पर पर्दा डाल दे  आमीन

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