Ramzan : सुन्नत को ज़िंदा करने का ज़बरदस्त अवसर है । Hindi dastak

Ramzan : सुन्नत को ज़िंदा करने का ज़बरदस्त अवसर है


हज़रत  मोहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शरीयत आखिरी और अबदी शरीयत है।  दुनिया व आखिरत की नेक बखती का राज आप की पैरवी में छुपी हुई है कामयाबी आप ही के तरीका ए कार में है:इरशाद खुदावंदी है!
*’’اَلَّذِیْنَ یَتِّبِعُوْنَ النَّبِيَّ الْأُمِّيَ أَلَّذِيْ یَجِدُوْنَہُ مَکْتُوْبًا عِنْدَہُمْ فِيْ التَّوْرَاۃِ وَالْإِنْجِیْلِ، یَأْمُرُہُمْ بِالْمَعْرُوْفِ وَیَنْہَاہُمْ عَنِ الْمُنْکَرِ وَیُحِلُّ لَہُمُ الطَّیِّبَاتِ وَیُحَرِّمُ عَلَیْہِمُ الْخَبَائِثَ‘‘*
यदि कोई व्यक्ति दुनिया में सुकून व इत्मीनान की जिंदगी और मरने के बाद जन्नत का खाहीशमंद है तो नबी के तरीका के बगैर चारह नहीं, सुन्नत नबवी की मिसाल नूह की कश्ती के मानिंद है कि हजरत नूह की कश्ती में जो व्यक्ति दाखिल हुवा उसे नेजात मिली, और जो इस में दाखिल होने से रह गया, हलाकत व बर्बादी उस का मुकद्दर बन गइ,
’’لَقَدْ کَانَ لَکُمْ فِيْ رَسُوْلِ اللّٰہِ أُسْوَۃٌ حَسَنَۃٌ لِمَنْ کَانَ یَرْجُوْ اللّٰہَ وَالْیَوْمَ الْآخِرَ وَذَکَرَ اللّٰہَ کَثِیْرًا ‘‘ (الأحزاب: ۲۱)
इसी लिए नबी ने उम्मत को अपनी सुन्नत पर अमल करने और बिदआत से दूर रहने का हुक्म दिया है,
’’عَلَیْکُمْ بِسُنَّتِيْ وَسُنَّۃِ الْخُلَفَائِ الرَّاشِدِیْنَ مِنْ بَعْدِيْ، عَضُّوْا عَلَیْہَا بِالنَّوَاجِذِ، وَإِیَّاکُمْ وَمُحْدَثَاتِ الْأُمُوْرِ فَإِنَّ کُلَّ مُحْدَثَۃٍ بِدْعَۃٌ، وَکُلَّ بِدْعَۃٍ ضَلاَلَۃٌ‘‘
एक दुसरी हदीस में सुन्नत से उदूल करने वालों से बरअत का इजहार किया गया है, फरमाय!
’’مَنْ رَغِبَ عَنْ سُنَّتِيْ فَلَیْسَ مِنِّيْ ‘‘
एक और जगह सुन्नत से हट कर जिंदगी गुजारने वालों के आमाल व अफआल को मरदूद करार देते हुए फरमाया!
’مَنْ عَمِلَ عَمَلاً لَیْسَ عَلَیْہِ أَمْرُنَا فَہُوَ رَدٌّ ‘‘
नबी की ये तसरीहात और आप के फरमूदात मुसलमान को दावत ए फिक्र दे रहे हैं साथ ही कुरान भी अल्लाह और उसके रसूल के बताए हुए रास्तों और फैसलों से एराज को ना जाएज करार देता है:
’’وَمَا کَانَ لِمُؤْمِنٍ وَلاَ مُؤْمِنَۃٍ إِذَا قَضَی اللّٰہُ وَرَسُوْلُہُ أَمْرًا أَنْ یَکُوْنَ لَہُمُ الْخِیَرَۃُ مِنْ أَمْرِہِمْ ‘‘ (الأحراب: ۳۶)
इसी तरह कुरान ने एक दूसरे मौके पर अल्लाह और रसूल के अलावा किसी और के तरीका को अपनाने के लिए खुले अल्फाज में मना किया है, नीज तकवा का भी हुक्म दिया है, फरमाया!
 ’’یَا أَیُّہَا الَّذِیْنَ آمَنُوْا لاَ تُقَدِّمُوْا بَیْنَ یَدَيِ اللّٰہِ وَرَسُوْلِہٖ، وَاتَّقُوْا اللّٰہَ إِنَّ اللّٰہَ سَمِیْعٌ عَلِیْمٌ ‘‘ (الحجرات: ۱)
रमजान का महीना सुन्नत पर अमल करने के लिए सबसे अच्छा समय है। यदि कोई व्यक्ति चाहे, तो वह इस धन्य महीने में खुद पर पैगंबर के तरीके लगा सकता है, और अपने घर और समुदाय में भी।  पैगंबर की कुछ सामान्य परंपराएं हैं  जिन से हमारा समाज एराज करता है एक रोजह दार, बल्कि हर मुसलमान हर समय इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।  एक हदीस में आप ने फरमाया: प्रकृति से संबंधित दस चीजें हैं, जैसे कि मोंछ काटना, दाढ़ी बढ़ाना: नाक की सफाई करना, नाखुन काटना, जोड़ों को धोना, और बगल के बालों को उखाड़ना,नाफ के नीचे के बालों की सफाई करना, कम पानी इस्तेमाल करना, एक अन्य हदीस में, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अज़ार को लटकाने से मना करते हुए कहा कि अल्लाह तआला उस व्यक्ति पर शफकत की नजर नहीं डालेंगे, जो अपने कपड़ों को घमंड से घसीटता है। (मुस्लिम)
एक अन्य जगह पर फरमाया!
 कि जिस व्यक्ति के कपड़े टखनों से नीचे होगा, वह नर्क में होगा। पवित्र पैगंबर की शिक्षाएं और निर्देश बहुत व्यापक हैं।  ये अपने दामन में असरार ए हिकम रखती हैं उनका लुत्फ वही व्यक्ति उठा सकता है जो उन पर अमल पैरा हो, आप की सुननातैं इसी पर तमाम नही होतीं आप ने इन्सानी फितरतौं का पास व लेहाज किया है हजरत आनस की रेवायत है कि आप ने खड़े होकर पानी पीने से मना फरमाया है, (मुस्लिम, अबू दाऊद, तिरमिजी) हजरत जाबिर की रेवायत है कि आप ने दाएं हाथ से जाकर छूने से मना किया है।
हज़रत अबू सईद फरमाते हैं: पैगंबर ने आपको एक चप्पल या जुर्राब में चलने से मना किया। (मुसनद अहमद)हजरत सुहैल बिन साद की रेवायत है कि आप ने पानी में फूंक मारने से मना फरमाया है (तिबरानी) हज़रत अनस का कहना है कि पैगंबर  सोने और चांदी के बर्तन में खाने-पीने से मना फरमाया है।
 इसी तरह, निसाई और मसनद अहमद और कई अन्य रेवायतों के अनुसार, पैगंबर ने पुरुषों के लिए सोने और रेशम के कपड़ों की मनाही की और महिलाओं के लिए अनुमति दी।  पैगंबर  ने एक मौके पर सोने की अंगूठी पहनने से मना फरमाया। तिबरानी की एक रेवायत में है कि पैगंबर ने इशा से पहले सोने से मना फरमाया है और नमाज इशा के बाद बात करने से मना फरमाया है इसी तरह मुखतलिफ रेवायतों में आप ने नौहा करने से, सफेद बाल उखाड़ने और सिर्फ जुमा के दिन रोजह रखने से, गूंधने और गुधवाने से भी मना किया है।
ये वो रेवायतैं थीं जिनमें पैगंबर ने विभिन्न मामलों से उम्माह को मना किया है। इस तरह के प्रामाणिक कथन हदीस की किताबों में बिखरे हुए हैं। हमें इन रवायतों को सामने रख कर उम्मत का अपने मुआशरा और माहौल का जाएजा लेने की जरूरत है उनके पहलु ब पहलु कुछ उमूर ऐसे भी हैं जिनका आप ने हुक्म दिया है, जब कि वो चीजें आप के मामूलात में दाखिल थीं, चुनानच मिसवाक आप की सुन्नत है एक हदीस में आप इरशाद फरमाते हैं!
''لَوْ أَنْ أَشُقَّ عَلٰی أُمَّتِيْ لَأَمَرْتُہُمْ بِالسِّوَاکِ عِنْدَ کُلِّ صَلاَۃٍ''
यानी अगर मुझे इस बात का इहसास न होता कि मैं अपनी उम्मत को मुशककत में डाल दूंगा, तो हर नमाज के वक्त लोगों को मिसवाक का हुक्म दे देता।
एक अन्य रेवायत में उन्होंने मिसवाक के बारे में फरमाया!

  मिसवाक से मुंह पाक व साफ रहता है और अल्लाह भी राजी रहता है, इसी तरह मस्जिद में दाखिल होने के बाद बैठने से पहले दो रकअत तहययातुल मस्जिद आप की सुन्नत है  मस्जिद में दाखिल होने के वक्त सब से पहले दायां पैर मस्जिद में डालना और निकलते वक्त बायां पैर निकालना चप्पल पहनते वक्त दायां चप्पल पहले पहनना और निकालते वक्त पहले बायां निकालना भी आप की सुन्नत है आप का एक तरीका ये भी है कि किसी के घर में दाखिल होने से पहले तीन मरतबा इजाजत तालब करते, अगर तीन मरतबा में इजाजत मिल गई तो दाखिल होते, वरना वापस लौट आते, ये तमाम सुननातैं सहीह हादीस से साबित हैं।
ये वो काबिल ए ध्यान मुद्दे हैं जिन से हर मुसलमान का रोजाना वास्ता पडता है  या किसी न किसी तरह से वो इन से गुजरता है रमजान के इस मुबारक महीना हम इन कामों की तरफ ध्यान दे कर अपनी जिंदगी पाकीजा बना सकते हैं क्योंकि इस मुबारक महीना जहां और बहुत से बुरे काम से रुक जाते हैं वहीं अच्छे कामों की आदत भी डाल लेते हैं, नीज कोइ बोझ भी नहीं होता, अगर हम इन तमाम बातों पर ध्यान दें अवामिर पर अमल और नवाही से इजतेनाब कर लें, तो यकीनन रमजान की बरकत से बकया और महीने भी सुन्नत नबवी के साए में बआसानी गुजर सकते हैं और अजर व सवाब उस पर मुसतजाद है
खुदाया! हमें सुन्नत पर अमल करने तौफीक मरहमत फरमां! बिदआत व खुराफात से हमारी हेफाजत फरमां! आमीन

आसिम ताहिर आज़मी

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