रमज़ान उल-मुबारक का आख़िरी अशरा चल रहा है, माह-ए-मुबारक जो बहुत सारी ख़ुशीयों और नेअमतों के साथ जल्वा-फ़गन था जल्द ही हमसे रुख़स्त हो जायेगा , ये अल्लाह की क़ज़ा व कदर है जिस पर किसी इन्सान का इख़तियार व बस नहीं है, अल्लाह ने सिर्फ अपने फ़ज़ल से हमको ये मुबारक महीना अता फ़रमाया, इस महीने में इबादत भी उसी की तौफ़ीक़ से अंजाम पाती है, ख़ुशनसीब है वो शख़्स जिसके साथ तौफ़ीक़ एज़दी शामिल-ए-हाल रही और उसने इस महीने से ख़ातिर-ख़्वाह फ़ायदा उठा लिया और अपने को तबाह व बर्बाद होने वालों की सूची से निकाल कर नेक लोगों व अल्लाह के क़रीबी लो में अपना नाम दर्ज करा लिया, अल्लाह हमको भी इसी फ़हरिस्त में शामिल फ़र्मा ले। आमीन
वैसे तो पूरा रमज़ान भाँत भाँत की विशेषताओं का हामिल है, लेकिन इस का आख़िरी अशरा ( आखिर के दस दिन ) कुछ अलग ही स्वभाव है, इस दशक में कुछ अल्लाह के द्वारा कुछ विशेष उपहार और आशीर्वाद दिए गए हैं जिनसे आदमी बहुत जल्द ही अल्लाह के क़रीब आ सकता है, इसी लिए हज़रत आईशा रज़ी अल्लाह अनहा की एक रिवायत में है की आपﷺ रमज़ान के अंतिम दस दिनों में जितनी कोशिश इबादत-ओ रियाज़त करते थे उतनी पहले दो अशरों में नहीं करते थे,(मुस्लिम शरीफ़ दूसरी रिवायत में है कि जब आख़िरी अशरा शुरू होता तो आपﷺ रातों का (इबादत से अहया फ़रमाते थे, और घर वालों को जगाते थे और अपनी लुंगी मज़बूत बांध लेते थे( कमर कस लेते थे )।(बुख़ारी व मसलम (यानी इबादत का ख़ूब एहतिमाम फ़रमाते थे और अजवाज-ए-मतहरात (बीवियों) से दूर रहते थे ؛ इसी अशरा में ''एतिकाफ़' की सुन्नत अदा की जाती है जिस पर आपﷺ ने हमेशा अमल फ़रमाया है, उसी अशरा में ''लैलतुल क़द्र' है जो अपने अंदर वो विशेषताएं रखती है जिससे दूसरी रातें ख़ाली हैं, ख़ुद क़ुरआन ने इस की बहुत ज़्यादा एहमीयत व फ़ज़ीलत बयान फ़रमाई है, चह जाये कि खास तौर से अहादीस उस की फ़ज़ीलत व खुसुसियत में नक़ल की गई हैं
’’शब-ए-क़द्र की फ़ज़ीलत में खास तौर से अल्लाह-तआला ने पूरी एक सूरत नाज़िल फ़रमाई है जो क़ुरआन-ए-क्रीम का जुज़ बन कर हमेशा के लिए इस रात की एहमीयत व फ़ज़ीलत की सबसे बड़ी दलील बन गई , इस सूरत में अल्लाह ने इस रात की विभिन्न विशेषताएं बयान फ़रमाई हैं, इसलिए मुनासिब मालूम होता है कि सूरत का ख़ुलासा पेश कर दिया जाये , ताकि इसकी फ़ज़ीलत खुलकर सामने जाये
अल्लाह ने इरशाद फ़रमाया ’’यक़ीनन हमने क़ुरआन जैसी अज़ीम व पवित्र किताब को ''शब-ए-क़द्र मैं उतारा, उस रात में क़ुरआन का नुज़ूल उस की अज़मत व पवित्रता की बहुत बड़ी दलील है, ए नबीﷺ ! आपको उस की फ़ज़ीलत की कुछ ख़बर भी है? ये रात ऐसी है कि इस में इबादत व रियाज़त करना और इस को ज़िंदा करना हज़ार महीनों से अफ़ज़ल है, जिनके तक़रीबन 83/ साल होते हैं, यानी जो इस रात में इबादत करलेगा वो गोया कि हज़ार महीनों तक मुस्तक़िल इबादत में मशग़ूल रहा, उस रात में अल्लाह के हुक्म से फ़रिश्ते और हज़रत जिबरईल अलैहिस-सलाम हर ख़ैर का हुक्म लेकर ज़मीन पर उतरते हैं, ये रात सरापा सलामती वाली है, और ये अनवार व फ़ज़ाइल शुरू रात से लेकर आखिर रात यानी तुलू-ए-सुब्ह सादिक़ तक रहते हैं।'
इस सूरत में अल्लाह ने इस रात की चंद विशेषताओं का तज़किरा किया है जिसमें क़ुरआन का नुज़ूल, हज़ार महीनों से ज़्यादा उस की अफ़ज़लीयत, फ़रिश्तों और हज़रत जिबरईल अमीन का ख़ैर के साथ उतरना और सुबह तक रात को उन्ही ख़सुसीआत के साथ बाक़ी रहना है
हदीस पाक के अंदर विभिन्न प्रकार से इस की एहमीयत व फ़ज़ीलत बयान की गई और इस में इबादत करने के मुख़्तलिफ़ सवाब बताए गए हैं और इस से महरूम रह जानेवाले को हक़ीक़ी महरूम बतलाया गया है। हज़रत अब्बू हुरैरा रज़ी अल्लाहु अन्हु रिवायत बयां करते हैं कि जनाब रसूल अल्लाहﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
’’من قام لیلۃ القدر ایمانا واحتسابا غفر لہ ماتقدم من ذنبہ ‘‘
(मुस्लिम)
कि जो शख़्स शबे क़द्र में ईमान और सवाब की उम्मीद पर इबादत के लिए खड़ा हो उस के पिछले तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैंदूसरी रिवायत में शब-ए-क़द्र से महरूम रहने वालों को हक़ीक़ी महरूम लोगों में से शुमार किया गया है।हज़रत अनस बिन मालिक रज़ी अल्लाहु अन्हु रावी हैं कि एक मर्तबा रमज़ान मुबारक का महीना आया तो आपﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
’’ إن ہذا الشہر قد حضرکم، وفیہ لیلۃ خیر من الف شہر،من حرمہا فقد حرم الخیر کلہ، ولا یحرم خیرہا إلا محروم۔‘‘
(इबन माजा)
''तुम्हारे ऊपर एक महीना आया है जिसमें एक रात है जो हज़ार महीनों से अफ़ज़ल है जो शख़्स उस रात से महरूम रह गया गोया वो सारी ख़ैर व भलाई से महरूम रह गया और इस की ख़ैर व भलाई से वही शख़्स महरूम रहता है जो सच में महरूम ही होता है।'ऊपर जो हदीस बयां हुई है उस से शब-ए-क़द्र की एहमीयत व फ़ज़ीलत बिलकुल नुमायां होजाती है और यह बात भी वाज़िह होजाती है की इस अहम नेमत-ए-उज़मा से जो महरूम रह जाये उस को वाक़ई महरूम और बहुत बड़ा खसारे वाला कहा गया है
ये रात अल्लाह पाक की तरफ़ से ग़ैर मुतय्यन( तय नहीं ) है , अहादीस तय्यबा में ज़िक्र किया गया है कि अल्लाह ने इस रात को तय किया थी, लेकिन बाद में इस हुक्म को उठा लिया गया, यह रात जो की पहले तय थी इसको ख़त्म करने का असल सबब किया है ये तो अल्लाह ही को मालूम है, लेकिन ये चीज़ क़दर दानों के लिए बहुत ज़्यादा फ़ाइदामंद हो गई कि वो शब-क़द की एक रात को तलाश करने और इस में इबादत करने के लिए कई एक रातों में तलाश करेंगे जिसकी वजह से उनको बहुत ही ज़्यादह सवाब दिया जाएगा, अलबत्ता ये रात कब होती है और इस का ग़ालिब इमकान किया है? इस सिलसिले में बेशुमार अक़्वाल हैं जिनमें ख़ुद कई एक रातों के बारे में जनाब नबी करीमﷺ ने शब-ए-क़द्र होने के इमकान को बयान किया है,और उनमें इबादत करने की तरग़ीब दी है , इस लिए अहादीस से मालूम होता है कि ये रात रमज़ान में पाई जाती है, और रमज़ान में आख़िरी अशरा में , और आख़िरी अशरा में ताक़ रातों में, यानी21، 23، 25، 27 और29 वीं रात में.
हज़रत आईशा रज़ी अल्लाहु अनहा रिवायत करते हुवे कहती हैं कि नबी अकरमﷺ ने इरशाद फ़रमाया
’’’’تحروا لیلۃ القدر في الوترمن العشر الأواخر من رمضان‘‘
’’कि शबे कार्डर को रमज़ान के अख़ीर अशरा की ताक़ रातों में तलाश करो' (बुख़ारी शरीफ़)
इस के इलावा और भी रिवायात हैं जिनसे उस के इलावा दीगर रातों में शब-ए-क़द्र के होने का तज़किरा किया गया है, जिसकी वजह से अक्सर उल्मा का इस पर इत्तिफ़ाक़ है कि ये रात ग़ैर मुतय्यन है और पूरे साल में दायर रहती है, इसलिए अपनी बिसात भर उस को हासिल करने की कोशिश करना चाहिए, लेकिन सबसे ज़्यादह क़रीब इस सिलसिला में यही है कि ये रात रमज़ान के आख़िरी अशरे में होती है, इस में भी ताक़ रातों में; इसलिए रमज़ान के अशर-ए-अख़ीरा की रातों को शब-ए-क़द्र की तलाश करने के लिए बहुत मुफ़ीद है, आपﷺ के आख़िरी अशरे में एतिकाफ़ की एक बड़ी ग़रज़ शबे क़द्र को तलाश करने की बतलाई गई है, अगर आदमी दस रातों को इबादत की ख़ातिर जागने का अज़म करले तो कोई बड़ी बात नहीं है; इसलिए बाहिम्मत अफ़राद के लिए दस रात इबादत में गुज़ारना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन अगर कोई उस की भी हिम्मत ना करसके तो ताक़ रातों में इस की कोशिश करे, अगर ये भी ना हो सकता हो तो कम-अज़-कम सत्ताईसवें रात को ज़रूर जागने का एहतिमाम करे, क्या पता वही शब-ए-क़द्र हो और जागने वाला अल्लाह के यहां क़बूल हो जाएगा
इस रात में जितनी भी इबादत व रियाज़त आसानी से हो सकती हो इस से गुरेज़ नहीं करना चाहिए, अगर पूरी रात का जागना नामुमकिन लग रहा हो तो कम अज़ कम शुरू और आख़िर के हिस्सों में ज़रूर जागना चाहिए , ये भी याद रखने की बात है कि इस रात में कोई ख़ुसूसी इबादत अहादीस में बयान नहीं की गई है, जो शख़्स भी हिम्मत करके आसानी के साथ कोई भी इबादत करसकता हो वो करना चाहिए, इसलिए इस रात में नवाफ़िल नमाज़ें, तिलावत क़ुरआन, ज़िक्र वज़ईफ़ ,सदक़ा व खैरात और तौबा व इस्तेग़फ़ार में को गुज़ारा जाये
इस रात में ख़ुसूसी तौर पर’’اللہم انک عفو تحب العفو فاعف عنی‘' का पढ़ना अहादीस से साबित है; इसलिए अख़ीर अशरे की रातों में इस का हर वक़्त विर्द रखना चाहिए
हज़रत आईशा रज़ी अल्लाहु अनहा फ़रमाती हैं मैंने रसूल अल्लाहﷺ से अर्ज़ किया मुझे बताईए कि अगर मुझे मालूम हो जाए कि कौन सी रात शब-ए-क़द्र है तो में इस रात अल्लाह से किया दुआ माँगु ? आपﷺ ने इरशाद फ़रमाया ये दुआ माँगो ’’اللہم انک عفو تحب العفو فاعف عنی‘ (तिरमिज़ी शरीफ़ तर्जुमा :ए मेरे अल्लाह तो बहुत माफ़ फ़रमाने वाला है, तुझे माफ़ करना पसंद है; इसलिए तो मुझे माफ़ फ़र्मा दे
واللہ الموفق وہو من وراء القصد وہو یہدی السبیل
इस के इलावा और भी रिवायात हैं जिनसे उस के इलावा दीगर रातों में शब-ए-क़द्र के होने का तज़किरा किया गया है, जिसकी वजह से अक्सर उल्मा का इस पर इत्तिफ़ाक़ है कि ये रात ग़ैर मुतय्यन है और पूरे साल में दायर रहती है, इसलिए अपनी बिसात भर उस को हासिल करने की कोशिश करना चाहिए, लेकिन सबसे ज़्यादह क़रीब इस सिलसिला में यही है कि ये रात रमज़ान के आख़िरी अशरे में होती है, इस में भी ताक़ रातों में; इसलिए रमज़ान के अशर-ए-अख़ीरा की रातों को शब-ए-क़द्र की तलाश करने के लिए बहुत मुफ़ीद है, आपﷺ के आख़िरी अशरे में एतिकाफ़ की एक बड़ी ग़रज़ शबे क़द्र को तलाश करने की बतलाई गई है, अगर आदमी दस रातों को इबादत की ख़ातिर जागने का अज़म करले तो कोई बड़ी बात नहीं है; इसलिए बाहिम्मत अफ़राद के लिए दस रात इबादत में गुज़ारना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन अगर कोई उस की भी हिम्मत ना करसके तो ताक़ रातों में इस की कोशिश करे, अगर ये भी ना हो सकता हो तो कम-अज़-कम सत्ताईसवें रात को ज़रूर जागने का एहतिमाम करे, क्या पता वही शब-ए-क़द्र हो और जागने वाला अल्लाह के यहां क़बूल हो जाएगा
इस रात में जितनी भी इबादत व रियाज़त आसानी से हो सकती हो इस से गुरेज़ नहीं करना चाहिए, अगर पूरी रात का जागना नामुमकिन लग रहा हो तो कम अज़ कम शुरू और आख़िर के हिस्सों में ज़रूर जागना चाहिए , ये भी याद रखने की बात है कि इस रात में कोई ख़ुसूसी इबादत अहादीस में बयान नहीं की गई है, जो शख़्स भी हिम्मत करके आसानी के साथ कोई भी इबादत करसकता हो वो करना चाहिए, इसलिए इस रात में नवाफ़िल नमाज़ें, तिलावत क़ुरआन, ज़िक्र वज़ईफ़ ,सदक़ा व खैरात और तौबा व इस्तेग़फ़ार में को गुज़ारा जाये
इस रात में ख़ुसूसी तौर पर’’اللہم انک عفو تحب العفو فاعف عنی‘' का पढ़ना अहादीस से साबित है; इसलिए अख़ीर अशरे की रातों में इस का हर वक़्त विर्द रखना चाहिए
हज़रत आईशा रज़ी अल्लाहु अनहा फ़रमाती हैं मैंने रसूल अल्लाहﷺ से अर्ज़ किया मुझे बताईए कि अगर मुझे मालूम हो जाए कि कौन सी रात शब-ए-क़द्र है तो में इस रात अल्लाह से किया दुआ माँगु ? आपﷺ ने इरशाद फ़रमाया ये दुआ माँगो ’’اللہم انک عفو تحب العفو فاعف عنی‘ (तिरमिज़ी शरीफ़ तर्जुमा :ए मेरे अल्लाह तो बहुत माफ़ फ़रमाने वाला है, तुझे माफ़ करना पसंद है; इसलिए तो मुझे माफ़ फ़र्मा दे
واللہ الموفق وہو من وراء القصد وہو یہدی السبیل
मोहम्मद सालिम सरियांवि
हिंदी : हामिद अख्तर
एक टिप्पणी भेजें
Plz let me know about your emotion after reading this blog