Ramzan: समय को बचाने का सबसे अच्छा जरिया | hindidastak


Ramzan: समय को बचाने का सबसे अच्छा जरिया | hindidastak


जीवन को समाप्त होने में देर नहीं लगती, दिन और रात के लमहात गुजर जाते हैं, मनुष्य को यह भी महसूस नहीं होता है, एक अरबी कवि कहता है: "मनुष्य के दिल की धड़कन, उस को इस बात की खबर देती है कि जीवन कुछ मिनटों और सेकंडों का नाम है, इसलिए मृत्यु से पहले जीवन के किरदार को बलंद कर लो, अल्लाह को याद रखें! क्योंकि स्मरण मनुष्य के लिए दुसरे जीवन का नाम है, यह  इसलिए, मनुष्यों को सावधान रहने की जरूरत है, जो खेल और कूद में अपना जीवन बर्बाद करते हैं और बिना किसी मकसद के आगे बढ़ते रहते हैं, कियामत के दिन अल्लाह तआला उनसे बड़ा सख्त हिसाब करेंगे, उनकी जिंदगी के एक एक लम्हे के बारे में पुछ ताछ होगी, कुरान कहता है,!
 ’’قَالَ کَمْ لَبِثْتُمْ فِي الْأَرْضِ عَدَدَ سِنِیْنَ قَالُوْا لَبِثْنَا یَوْمًا أَوْ بَعْضَ یَوْمٍ فَاسْأَلِ الْعَادِّیْنَ قَالَ إِنْ لَبِثْتُمْ إِلاَّ قَلِیْلاً لَوْ أَنَّکُمْ کُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ أَفَحَسِبْتُمْ أَنَّمَا خَلَقْنَاکُمْ عَبَثًا وَأَنَّکُمْ إِلَیْنَا لاَ تُرْجَعُوْنَ فَتَعَالَی اللّٰہُ الْمَلِکَ الْحَقُّ لاَ اِلٰہ إِلاَّ ہُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْکَرِیْمِ ‘‘۔ (المؤمنون: ۱۱۲، ۱۱۶)

Ramzan: समय को बचाने का सबसे अच्छा जरिया

किसी अल्लाह वाले ने ठीक कहा है: “जीवन बहुत कम है, इसलिए इसे उपेक्षित करके इसे और कम न करें, लेहाजा लापरवाही से गुजार कर इस में और कमी न करें, क्योंकि गफलत और लापरवाही समय में कमी पैदा करती है। और रातों को जाए कर देती है एक हदीस में पैगंबर ने खाली समय को गुजारने वाले को नुकसान का कारण करार दिया है। फरमाया!
’’نِعْمَتَانِ مَغْبُوْنُ فِیْہِمَا کَثِیْرٌ مِنَ النَّاسِ الصِّحَّۃُ والفَرَاغُ ‘‘
यानी दो नेमातैं ऐसी हैं कि अधिक लोग उन के हवाले से नुकसान में रहते हैं एक तो तंदुरुस्ती है और दूसरे फारिग रहना और वाकिया भी यही है कि
कहा गया है कि दूत लेने से हानि होती है, दूर की माया!  स्वास्थ्य के संदर्भ में कई नुकसान हैं, एक स्वास्थ्य है और दूसरा स्नातक है और तथ्य यह है कि मुआशरह में भी बहुत से सेहतमंद, फारिग लोग ऐसे हैं कि उनके समय बिला किसी मकसद के गुजर जाते हैं, लेकिन वो फायदा उठाना जानते भी नही, इसी लिए एक दूसरी हदीस में अल्लाह के रसूल ने इस हवाले से अपनी उम्मत जागरूक किया है, फरमाया!
 ’’لاَ تَزُوْلاَ قَدْمَا عَبْدٍ یَوْمٍ الْقِیَامَۃِ حَتّٰی یُسْأَلَ عَنْ أَرْبَعٍ وَذَکَرَ عُمُرَہُ فِیْمَا أَبْلاَہُ ‘‘
यानी कियामत के दिन, बंदे के कदम रब के सामने उस समय तक नहीं बढ़ सकते, जब तक कि उससे चार बातें नहीं पूछी जातीं, जिनमें से एक "आयु" है।  यह भी सवाल है कि उसने इसे कहां खर्च किया है। यह तथ्य है कि उसका जीवन किसी खजाने से कम नहीं है, जिसे वह अल्लाह की आज्ञा मानने में खर्च करेगा।  वह उस दिन अपना पुरस्कार प्राप्त करेगा जब धन और बच्चे उसके किसी काम के नहीं आएंगे, और यदि वह लापरवाही पाप और खेल कूद में अपना जीवन बिताता है, तो उसे उसी पश्चाताप का सामना करना पड़ेगा जैसे कि उसे अफसोस के अलावा कुछ भी हासिल न होसकेगा।  उसकी ज़ुबान से!
’’یا حسرتنا علی ما فر طنا فیہا ‘‘
के अल्फाज जारी होंगे
दिन और रात मनुष्य के लिए  एक सवारी के मानिंद हैं, अब यह आदमी पर निर्भर है कि वह इस सवारी को अपना कर सआदत व नेक बखती की मंजिल तलाश करे या शकावत व बदबखती और खसारे की,
 हमें अपने पूर्वजों के जीवन पर एक नज़र डालने की ज़रूरत है, ताकि हम जान सकें कि उन्होंने अपने समय की सुरक्षा कैसे की।
 इसलिए, जब हम इसकी खोज करते हैं, तो हमें अजीब और सभी प्रकार के वाकेआत मिलते हैं। हज़रत जुनैद बिन मुहम्मद का वाकेआ है कि वह अपनी मृत्यु से कुछ क्षण पहले मृत्यु की स्थिति में है कुरान का पाठ कर रहे हैं, इतने में आप के लड़के सवाल करते हैं कि: आप खुद को इतनी परेशानी में क्यों डाल रहे हैं, तो फरमाया कि अपने आप को मुशककत में डालने का मुझसे ज्यादा किसी का अधिकार नहीं। असवद बिन यजीद एक ताबई गुजरे हैं!
आप ज्यादातर रात  में नमाज़ अदा करते थे, तो आपके शागिर्दौ ने कहा: हज़रत, थोड़ा आराम कर लिया करें! फरमाया! आखिरत में राहत व आराम के लिए ही इस दुनिया में परीशानी बर्दाश्त कर रहा हूं, सुफियान सौरी हरम में बैठे कुछ लोगों से बात कर रहे थे, कि अचानक एक साहब घबरा कर यह कहते हुए उठे! हाए अफसोस हम बैठे रह गए और दिन तो अपना काम कर रहा है काश,
 हमारे पूर्ववर्तियों में कुछ लोग ऐसे गुजरे हैं जिन्होंने हर काम के लिए अलग समय निर्धारित किया था! जैसे कि नमाज, तेलावत, जिक्र, तहसील ए इल्म, तलाब ए मआश और सोने के लिए उनके यहां अलग अलग समय निर्धारित थे, लेकिन! कुर्बान जाइये कि खेलने के लिए कोई समय निर्धारित नहीं था,।
यह हमारे पूर्वजों का पवित्र जीवन था। इसके विपरीत, आज यह सामान्य ज्ञान है कि सामान्य रूप से लोग समय बर्बाद करने वाले हैं।  लापरवाही, बेरोजगारी, बेकारी, अधिक सोना खेल कूद में इसराफ एक आम बात होगइ है बिला मकसद की बैठकें, इधर-उधर की मुलाकातें भी कुछ कम नही, अगर किसी काम हकीकतन गुनाह न हो तो इस तरह वक्त गुजारी से गुनाह आ ही जाता है
 इसलिए, पाँच दैनिक प्रार्थनाओं की पाबंदी करके हमें अपने समय और अपने जीवन को मुनजजाम तौर पर गुजारने की जरूरत है फजर के बाद हिफज व तेलावत और जिक्र का वक्त हो, ज्वाल से जुहर तक तलाब ए मआश और तहसील ए इल्म का वक्त हो, जुहर के बाद वक्त मुतालेऐ के लिए खास हो, असर के बाद लाइब्रेरी और तहकिक ए मसाएल का वक्त हो।
मग़रिब के बाद, दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने का समय हो, ईशा के बाद, परिवार के लिए, सोने के लिए, फिर तहज्जुद के लिए, गुरुवार का दिन आराम व राहत और तफरीह के लिए हो, शुक्रवार को पहले सुबह उठना, कपड़े धोना, नहाना, खुशबु लगाना, जुमा की तैयारी करना, जिक्र व अजकार में मशगूल होजाना ये एक तखमीनी निजामुल औकात है हर इन्सान अपने मशागिल सामने रख कर हसब ए जरूरत तब्दीली कर सकता है,
 रमजान का महीना समय को बेहतर करने के लिए बहुत अच्छा है, अगर कोई व्यक्ति इस महीने में एक निजामुल औकात तै कर ले और फिर जिंदगी के कीमती लमहों से फायदा उठा कर जिंदगी को कीमती बनाए, और अपने रब का कुरब हासिल करे, नीज ये काम ये काम इस महिने में कुछ मुश्किल भी नहीं।
रोजह दार इबादत के लिए दिन में खाली रहता है, खाना खाने, खाने की तययारी वगैरह कामों में जो औकात खरच होते हैं इन्सान इस माह में उससे महफूज हो जाता है पस सारा वक्त इबादत और आमाल ए सालेहा ही के लिए तो है आज की इस दुनिया में कुछ लोगों का हाल तो ये है कि उन्हें रोजह का माना भी नहीं मालूम, ऐसे लोग बहुत बड़ी गफलत और रात को यों ही बेमकसद ज़ाय कर दिया, ऐसे लोगों को अरबी की ये नसीहत याद रखनी चाहिए! ऐ वो लोगो! जो उम्र के लमहात ज़ाए कर देते हो याद रखो! कि उसका बदल नसीब न होसकेगा, और जिंदगी के मामले में माफात की तलाफी भी नही है, उम्र को खसारे में गुजारने वालों को उस की हक़ीक़त और कीमत का इल्म तो बाद में होगा।
खुदाया! हमारी नजरों में हमारी जिंदगियों को कीमती बना! अपनी फरमांबरदारी की तोफीक मरहमत फरमा! _____आमीन


हिन्दी: आसिम ताहिर आज़मी

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