Ramzan: दावत व तब्लीग का मौसम है | hindidastak

Ramzan: दावत व तब्लीग का मौसम है

Ramzan: दावत व तब्लीग का मौसम है


दावत व तब्लीग पैगंबरौ की जिम्मेदारी रही है। प्रत्येक पैगंबर ने उपदेश और शिक्षण का कर्तव्य निभाया है, अल्लाह ने पैगंबरौ को उपदेश देने का हुक्म देते हुए फरमाया है!
 ''اعْبُدُوْا اللّٰہَ مَا لَکُمْ مِنْ إِلٰہٍ غَیْرِ'' (ہود: ۸۴)
और पैगंबर अपनी कौम से फरमाया करते!
''مَا أَسْأَلُکُمْ عَلَیْہِ مِنْ أَجْرٍ''
यानी हम यतीम से इस दावत का बदला नही चाहते, अल्लाह तआला ने तबलीग के समय नरमी का पहलु इख्तियार करने को कहा है, फरमाया!
''أُدْعُ إِلٰی سَبِیْلِ رَبِّکَ بِالْحِکْمَۃِ وَالْمَوْعِظَۃِ الْحَسَنَۃِ وَجَادِلُہُمْ بِالَّتِی ہِیَ أَحْسَنُ ''(النحل: ۱۳۵)
नीज दीन पर बसीरत भी होनी शर्त है,:
''قُلْ ہٰذِہٖ سَبِیْلِيْ أَدْعُوْ إِلٰی اللّٰہِ عَلٰی بَصِیْرَۃٍ أَنَا وَمَنِ التَّبَعَنِيْ وَسُبْحَانَ اللّٰہِ، وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِکِیْنَ''(یوسف: ۱۰۸)
इस आयत में बसीरत से मुराद :फायदा देने वाला इल्म और नेक अमल है, दूसरे स्थान पर दावत व तबलीग को एक पसंदीदा अमल करार दिया है,:
''وَمَنْ أَحْسَنُ قَوْلاً مِّمَنْ دَعَا إِلَی اللّٰہِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَقَالَ إِنَّنِيْ مِنَ الْمُسْلِمِیْنَ ''(فصلت: ۳۳)
दावत व तब्लीग के पाँच आदाब, पाँच तरीके और पाँच फायदे हैं, नीचे तीनों तरतीब के साथ जिक्र किये जा रहे हैं।
*दावत व तब्लीग के पाँच आदाब*
(१)इखलास: ये नेक काम सिर्फ अल्लाह के लिए करना, इस अमल में सच्चाई का पहलु हाथ से नही जाना चाहिए! इसी लिए अल्लाह फरमाते हैं,
’’وَمَا أُمِرُوْا إِلاَّ لِیَعْبُدُوْا اللّٰہَ مُخْلِصِیْنَ لَہُ الدِّیْنَ ‘‘ (البینۃ: ۵)
नीज अल्लाह के रसूल फरमाते हैं!
’’مِنْ أَوَّلِ مَا تُسَعَّرُ بِہِمُ النَّارُ ثَلاَثَۃٌ وَمِنْہُمْ عَالِمٌ تَعَلَّمَ الْعِلْمَ لِیُقَالَ عَالِمٌ وَقَدْ قِیْلَ‘‘ (الحدیث )
यानी जहन्नुम की आग सबसे पहले जिन तीन लोगों से दहकाइ जाएगी, उनमें से एक आलिम भी होगा, जिसने इल्म इस वजह से सीखा कि उसे आलिम कहा जाए, सो कहा जा चुका (अब उसका कोई फायदा नहीं)
(२) अमल: दावत देने वाला जिस चीज की तरफ दावत दे उस पर अमल भी करे, क्योंकि कौल व अमल में मुखालफत रुसवाई और आर का सबब है, अल्लाह ने उससे मना किया है,!
’’أَتَاْمُرُوْنَ النَّاسَ بِالْبِرِّ وَتَنْسَوْنَ أَنْفُسَکُمْ وَأَنْتُمْ تَتَلُوْنَ الْکِتٰبَ أَفَلاَ تَعْقِلُوْنَ‘‘ (البقرہ: ۴۴)
एक अरबी कवि ने कौल व अमल में मुखालफत रखने वाले मुबललिगीन को नसीहत की है, "ऐ दूसरों को तालीम देने वाले! क्या ये तालीम तुम्हारे अपने लिए नही है तुम बीमारों और कमजोरों के लिए नुस्खे तजवीज करते हो, हालांकि खुद बीमार पड़े हो, लेहाजा तालीम की शुरुआत अब अपनी जात से करो, उसको गुमराही से रोको! जब तुम्हारी जात गुमराही से दूर होजाए तो तुम हकीम हो,
(३)नरम कलामी: तबलीग के वक्त नरम कलामी का लेहाज भी बहुत जरूरी है:
’’فَقُوْلاَ لَہُ قَوْلاً لَیِّنًا لَعَلَّہُ یَتَذکَّرُ أَوْ یَخْشٰی‘‘ (طٰہ: ۴۴)
अन्य स्थान पर फरमाया:
’’فَبِمَا رَحْمَۃٍ مِنَ اللّٰہِ لِنْتَ لَہُمْ وَلَوْ کُنْتُ فَظًّا غَلِیْظَ الْقَلْبِ لاَنْفَضُّوْا مِنْ حَوْلِکَ‘‘ (آل عمران: ۱۵۹)
इसी लिए अल्लाह के रसूल ने सख्ती करने से रोकते हुए आसानी का हुक्म दिया है:
’’یَسِّرُوْا وَلاَ تُعَسِّرُوْا، وَبَشِّرُوْا وَلاَ تُنَفِّرُوْا ‘‘
(४) धीरे-धीरे निमंत्रण देना: निमंत्रण में  ध्यान रखना आवश्यक है, पहले उस का आदेश दें जो अधिक महत्वपूर्ण है, फिर उस का आदेश दें जो उसके बाद अधिक महत्वपूर्ण है।  यह पैगंबर का तरीका था।  चुनांच हजरत माज को यमन रवाना करते हुए आप ने फरमाया था।
''إِنَّکَ تَأْتِی قَوْلاً أَہْلَ کِتَابٍ فَلْیَکُنْ أَوَّلُ مَا تَدْعُوْہُمْ إِلَیْہِ شَہَادَۃُ أَنْ لاَ إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ، وَأَنِّي رَسُوْلُ اللّٰہِ، فَإِنْ ہُمْ أَجَابُوْکَ لِذٰلِکَ فَأَخْبِرْہُمْ أَنَّ اللّٰہَ قَدْ إِفْتَرَضَ عَلَیْہِمْ خَمْسَ صَلَوَاتٍ فِي الْیَوْمِ وَاللَّیْلَۃِ'' (الحدیث)
यानी अहल ए यमन के लिए अल्लाह के रसूल ने हजरत माज को ये हुक्म दिया था कि सबसे पहले उन्हें कलमा की तलकीन करो, जब ये मान लें तब जा कर उन्हें पाँचों वक्त की नमाजों की फरजियत से आगाह करो! (इस धीरे धीरे तब्लीग का फायदा ये होता है कि लोगों पर कोई चीज भारी नही पडती और वो रफता रफता तमाम अहकाम के आदी होजाते हैं)
(५) लोगों की स्थितियों की रेआयत करना: यानी, तब्लीग के समय, प्रत्येक राष्ट्र की स्थिति को देखते हुए, उनसे अनुनयपूर्ण तरीके से बात करना, जो भी उनके समाज को आवश्यकता महसूस होती हो।  यही कारण है कि शहर के लोगों से बात करने की नौईययत अलग होती है, कस्बों और गांवों के लोगों से भी बात करने की नौईययत अलग होती है, बल्कि इससे भी अधिक, पढे लिखे अनपढ़, झगड़ालू और बातूनी इन सब से बात करने का अलग अलग तरीका है, इसलिए इस स्थिति का पालन करने वालों की अल्लाह ने तारीफ की है:
’’وَمَنْ یُّوْتَ الْحِکْمَۃَ فَقَدْ أُوْتِيَ خَیْرًا کَثِیْرًا ‘‘۔ (البقرہ: ۲۶۹)
*दावत व तब्लीग के पाँच तरीके*

 (१) व्यक्तिगत निमंत्रण: कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी विशेष समस्या को देखते हुए, किसी व्यक्ति को लोगों की सभा के अलावा अलग दावत देने की आवश्यकता होती है।
 (२) सामान्य निमंत्रण: कोई खेताब या नसीहत करना हो तो ऐसी सूरत में लोग भी शामिल होते हैं, बस्ती, कबीला, और शहर से हर तरह के लोगों की तबलीग की जाती है,
 (३) दरस व तदरीस : यह भी उपदेश देने की एक विधि है कि छात्रों को पढ़ाने वाली मजलिस में आमंत्रित किया जाना चाहिए। बल्कि दरस व तदरीस खुद एक किस्म की तब्लीग है, और मुखतलिफ फुनून के हामिल उलमा ए इस्लाम की जिम्मेदारी है।
 (४) खत व किताबत: कभी-कभी दावत देने का कर्तव्य भी खत व किताबत के माध्यम से किया जाता है।
 (५) आधुनिक साधनों का उपयोग: ईश्वर शब्द के निमित्त संचार के आधुनिक साधनों को अपनाकर दावत का कर्तव्य भी पूरा किया जा सकता है।
*दावत व तब्लीग के पाँच लाभ*

 (१) पैग़म्बरों की विरासत: दावत व तब्लीग के नतीजे में मनुष्य पैगंबर का वारिस बन जाता है  क्योंकि तब्लीग पैगंबर का फरीजा रही है।  ये तारीख के सबसे बड़े मुबललिग शुमार होते हैं बल्कि दावत व तब्लीग की दुनिया में अंबिया एक बलंद और रौशन मनारे की हैसियत रखते हैं,।
 (२) दुआ ए मगफिरत: दावत व तब्लीग का फरीजा अंजाम देने लोगों को अच्छी बातें बताने की वजह से पूरी मखलूक दाई के लिए दुआ ए मगफिरत करती है, यहां तक कि एक हदीस के मुताबिक समुंदर की मछलियां भी दुआ करती हैं।
 (३) पुरस्कार व सवाब: दावत व तब्लीग की एक बरकत ये भी है कि जो इस काम के करने से अल्लाह तआला लोगों को सवाब देते हैं वही दाई को भी देते हैं हदीस में अल्लाह के रसूल फरमाते हैं :
’’مَنْ دَعَا سُنَّۃٍ حَسَنَۃٍ کَانَ لَہُ مِنَ الْأَجْرِ مِثْلَ أُجُوْرِ مَنْ تَبِعَہُ دُوْنَ أَنْ یُّنْقَصَ مِنْ أُجُوْرِہِمْ شَیْأً‘‘
अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को किसी नेक काम की तरफ बुलाता है तो बुलाने वाले और जिस को बुलाया गया दोनों को सवाब मिलेगा, बल्कि दोनों के सवाब में कुछ कमी नहीं होगी।
(४) फरीजा ए दावत व तब्लीग:  की अंजाम दही के नतीजे में दाई मदऊ के दायरे से निकल कर दाई की मंजिल हासिल कर लेता है उसका फायदा ये होता है कि अब ये मुअससिर बनता है मुतअससिर नही यानी कि दूसरे गलत और बातिल मुबललिगीन के जाल नही फंसता।
 (५) इमामत: इस तबलीग के नतीजे में लोग मुबललिग को अपना मुकतदा और रहबर मान लेते हैं अल्लाह इन्हीं सुलहा के मुतअललिक फरमाया! कि वो ये दुआ करते हैं :
’’وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِیْنَ إِمَامًا‘‘۔ (الفرقان: ۷۴)
 रमजान के इस महीने में, प्रचारकों और मुबललिगीन के ज़जबा ए दावत को को तो खूब अपना असर देखाना चाहिए मिमबर से एक मुबललिग की बात सुनने के लिए बतौर खास इस महीना में लोग बेताब होते हैं उन्हें बातें अच्छी भी लगती हैं हमें इस पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
 खुदाया! हमें दीन की समझ अता फरमा! इल्म और अमल ए सालेह की तोफीक मरहमत फरमा_आमीन
हिन्दी: आसिम ताहिर आज़मी


अपना कमेन्ट लिखें

Plz let me know about your emotion after reading this blog

और नया पुराने