Ramzan : आपसी भाईचारे और मुहब्बत का मौसम है


Ramzan : आपसी भाईचारे और मुहब्बत का मौसम है


सभी मुसलमान एक हाथ, एक दिल, बल्कि एक साँचा हैं! कुरान के अनुसार, सभी मुसलमान एक शरीर की हैसियत रखते हैं भाईचारा और एकता इस्लाम की पहचान है:
 ’’وَأَلَّفَ بَیْنَ قُلُوْبِہِمْ، لَوْ أَنْفَقْتَ مَافِي الْأَرْضِ جَمِیْعًا مَا أَلَّفْتَ بَیْنَ قُلُوْبِہِمْ وَلٰکِنَّ اللّٰہَ أَلَّفَ بَیْنَہُمْ إِنَّ اللّٰہَ عَزِیْزٌ حَکِیْمٌ ‘‘ (الانفال: ۶۳)
इस्लाम में ज़ुबान, खून, रंग, नसल व नसाब, या वतन की बुनियाद पर इततेहाद का पैगाम नहीं दिया जाता, बल्कि मुसलमानों को उनका दीन एक प्लेट फार्म पर जमा करता है,
’’لاالہ الا اللّٰہ محمدرسول اللّٰہ‘‘
 का इल्म उन्हैं एक साए में रखता है, तकवा मुसलमानों का इम्तियाजी वसफ है, इल्म शरफ व फजीलत की दलील है, कुरान ने बड़े साफ तौर पर कहा है :
’’یَا أَیُّہَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاکُمْ مِنْ ذَکَرٍ أَوْ أُنْثٰی وَجَعَلْنَاکُمْ شُعُوْبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوْا إِنَّ أَکْرَمَکُمْ عِنْدَ اللّٰہِ أَتْقَاکُمْ، إِنَّ اللّٰہَ عَلِیْمٌ خَبِیْرٌ ‘‘۔ (الحجرات:۱۳)
इस्लाम के पैगाम ए मुहब्बत व उखुववत का प्रमाण और क्या चाहिए, जब आप ने दावत का आगाज़ किया तो हबशा से मुअज़्ज़िन ने "लबेक अल्लाहुममा लबेक" की आवाज लगाते हुए आया, सलमान फारसी के मतअललिक आप ने खुद फरमाया है:
’’سلمان منا آل البیت‘‘
 हज़रत सोहेब ने रोम से "अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर" कहा, जबकि उनके अपने देश और जनजाति के लोग पीछे रह गए, जिसमें वलीद बिन मुगीरा, अबू जहल, अबू लहब का नाम लिया जा सकता है। एक हदीस में पैगंबर ने कहा:
 ’’یَا بَنِی ہَاہِم لَیَأْتِیَنَّ النَّاسُ یَوْمَ الْقِیَامَۃِ بِأَعْمَالِہِمْ وَتَأْتُوْنِي بِأَنْسَابِکُمْ ‘‘
यीनी ऐ बनू हाशिम, लोग कियामत के दिन तो अपने आमाल के साथ हाजिर होंगे जब कि तुम लोग अपने नसब के साथ आओगे, एक और हदीस में आप ने फरमाया :
 ’’مَنْ أَبْطَأَبِہٖ عَمَلُہُ لَمْ یُسْرِعْ بِہٖ نَسَبُہُ ‘‘
यानी जिस ने अपने अमल में ताखीर की उसका नसब उसके साथ जल्दी नहीं कर सकता, मतलब ये है कि जिसने अमल नही किया तो नसब उसके साथ काम न आसकेगा, एक अरबी शाइर कहता है,
यदि आपको अपने पूर्वजों की शरीयत पर गर्व है, तो यह बेहतर है, लेकिन वे (अपने कामों की परवाह किए बिना, केवल वही जो शरीयत पर गर्व करते हैं) सबसे खराब संतों की सूची में शामिल हैं।एक और अरबी कवि ने कहा है: बहादुर वह नहीं है जो कहता है कि मेरे पिता बहादुर थे, लेकिन बहादुर वह है जो कहता है कि लो!  अब मेरी बहादुरी देखो।
सभी मुसलमान एक महान समुदाय हैं, हर धर्मनिष्ठ मुसलमान इस समुदाय का सदस्य है, इस्लाम किसी भी राष्ट्र के लिए विशेष नहीं है, इस्लाम अरब, भारत, पाकिस्तान, तुरकिसतान और अफ्रीका  बल्कि पूरी दुनिया के लिए है, हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ एक क़ुरैशी थे, हज़रत बिलाल एक हबशी थे, हज़रत सोहेब रोम के थे, हज़रत सलमान फारस के थे, सुल्तान मुहम्मद फातेह तुर्की के थे, इकबाल भारत के थे, और सलाहुद्दीन अयूबी कुर्दिश जनजाति के थे, लेकिन वे सभी "ला ​​इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूलुल्लाह" के बैनर तले जमा थे।
रमज़ान का महीना इस एकता की एक बड़ी अभिव्यक्ति है, क्योंकि महीना एक है, एक ही प्रकार का रोजह है, एक ही क़िबला है, और एक ही तरीका भी, हम सभी एक इमाम के मार्गदर्शन में प्रार्थना करते हैं।  और अल्लाह हमारे मुतअललिक कहते हैं:
’’وَارْکَعُوْا مَعَ الرَّاکِعِیْنَ ‘‘ (البقرۃ: ۴۳)
  एक अन्य स्थान पर फरमाते हैं
’’وَقُوْمُوْا لِلّٰہِ قَانِتِیْنَ ‘‘ (البقرہ: ۲۳۸)
अल्लाह तआला हम सब एक सेगा में शामिल फरमां कर रोजे का हुक्म दिया है :
’’یَا أَیُّہَا الَّذِیْنَ آمَنُوْا کُتِبَ عَلَیْکُمْ الصِّیَامُ کَمَا کُتِبَ عَلَی الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِکُمْ لَعَلَّکُمْ تَتَّقُوْنَ ‘‘ (البقرہ: ۱۸۳)
हमारा हज भी एक है, हज का वक्त भी एक है, और स्थान भी एक ही,:
’’فَإِذَا أَفَضْتُمْ مِنْ عَرَفَاتٍ فَاذْکُرُوْا اللّٰہَ عِنْدَ الْمَشْعَرِ الْحَرَامِ وَاذْکُرُوْہُ کَمَا ہَدَاکُمْ ‘‘ (البقرہ: ۱۹۸)
अल्लाह तआला ने हमें अपनी रस्सी मजबूती से पकड़ने और इखतेलाफ व इनतेशार के खात्मे का पैगाम दिया है:
’’وَاعْتَصِمُوْا بِحَبْلِ اللّٰہِ جَمِیْعًا وَلاَ تَفَرَّقُوْا، وَاذْکُرُوْا نِعْمَۃَ اللّٰہِ عَلَیْکُمْ إِذْ کُنْتُمْ أَعْدَائً فَأَلَّفَ بَیْنَ قُلُوْبِکُمْ فَأَصْبَحْتُمْ بِنِعْمَتِہٖ إِخْوَانًا‘‘ (آل عمران: ۱۰۳)
मुनाजअत और मुखतलिफ से मना फरमाया है :
 *’’وَلاَ تَکُوْنُوْا کَالَّذِیْنَ تَفَرَّقُوْا وَاخْتَلَفُوْا مِنْ بَعْدِ مَا جَائَ ہُمُ البَیِّنَاتُ، وَأُوْلٰئِکَ لَہُمْ عَذَابٌ عَظِیْمٌ ‘‘۔ (آل عمران: ۱۰۵)*
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने तवाजो का हुक्म दिया है एक दूसरे जुल्म से भी रोका है, फरमाया!
’’إِنَّ اللّٰہ أَوْحٰی إِلَيَّ أَنْ تَوَاضَعُوْا حَتَّی لاَ یَبْغِيَ أَحَدٌ عَلٰی أَحَدٍ، وَلاَ یَفْخَرَ أَحَدٌ عَلٰی أحدٍ‘‘
 एक कवि कहता है: अगर हमारा नासब मुखतलिफ और अलाहदा है तो कोई बात नहीं हमारे पिता आदम एक ही हैं और अगर नीचे नासब में इखतेलाफ है तो भी कोई बात नहीं, दीन हमारे दरमियान इततेहाद पैदा कर देगा, दीन ही को हम पिता के दरजे में रख लेंगे।
एकता  की तालीम देते हुए आप ने फरमाया!
’’اَلْمُؤْمِنُ لِلْمُؤْمِن کَالْبُنْیَانِ یَشُدُّ بَعْضُہُ بَعْضًا‘‘
अन्य स्थान पर तमाम मुसलमानों को एक दूसरे का भाई करार दिया है,
’’اَلْمُسْلِمُ أَخْوْا الْمُسْلِمِ، لاَ یَظْلِمُہُ وَلاَ یَخْذُلُہُ وَلاَ یَحْقِرْہَ بِحَسَبِ الْمُسْلِمِ مِنَ الشَّرِّ أَنْ یَحْقِرَ أَخَاہُ الْمُسْلِمَ، کُلُّ الْمُسْلِمِ عَلٰی الْمُسْلِمِ حَرَامٌ، دَمُہُ، وَمَالُہُ، وَعِرْضُہُ ‘‘
आपसी भाईचारे और प्रेम की आवश्यकता यह है कि एक मुसलमान दूसरे मुसलमान की दशा और भलाई के बारे में पूछताछ करता रहे, यहाँ तक कि उससे मुलाकात भी करे।बीमारी के वक्त अयादत भी करे, मुलाकात के वक्त सलाम भी करे, हर वक्त खंदा पेशानी से पेश आए, छींक का जवाब दे, दावत को कबूल करे, जनाजे में शिरकत करे ना होने की सुरत में उसके लिए दुआ करे, उसकी जरूरत पूरी करे, उसकी मुवाफकत करे, उस पर जुल्म किया जाए तो मदद करे, उसके साथ भलाई का मामला करे, इनके अलावा और भी हुकूक हैं।
पृथ्वी पर हर मुसलमान हर दूसरे मुसलमान का ईमानी भाई है, जैसा कि अल्लाह तआला ने  इसके मुतअललिक हर मुसलमान को अहद व पैमान दिया है, और आप ने मोमिन की प्रशंसा की है। रमजान के इस धन्य महीने में, हम अपने दिल से हासद दुश्मनी और नफरत व कीना निकाल कर एक दूसरे के भाई और दोस्त बन जाएं, सवाब पर सवाब है ही मजीद जिंदगी की आसानियां भी,
खुदाया! हमारी सफों में इततेहाद पैदा फरमा! हमारे दिलों को नरम फरमां! _____आमीन

हिन्दी: आसिम ताहिर आज़मी

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