साल-ए-नौ और गुज़श्ता बरस का एक सबक़

साल-ए-नौ और गुज़श्ता बरस का एक सबक़


इसी हिन्दुस्तान  की लरज़ती फ़िज़ा थी और इस पर छाई हुई ज़ाफ़रानी समेत, एक तरफ़ दम तोड़ती अप्पोज़ीशन के मिटते आसार थे, और दूसरी तरफ़ हिंदूतवादी इक़तिदार के बढ़ते क़दम.

हुकूमत के नशे में मस्त मोदी सरकार अवामी मुफ़ाद-ओ-मुज़र्रत से बेगाना अपने अमली मैदान में पेशक़दमी और सिर्फ पेशक़दमी पर यक़ीन रखती थी, अपनी इस अना के साये तले हिन्दुस्तान के तीस करोड़ मुस्लमानों की तक़दीर, सी ए ए की शक्ल में, अपने फ़िरऔनी  क़लम से रक़म कर चुकी थी। 

और उन्हें हालात के साथ कलेंडर तबदील हो रहा था,2019 अपनी मीयाद मुकम्मल कर के2020 के लिए जगह ख़ाली कर रहा था

लेकिन गुज़रते दिनों, हफ़्तों और महीनों की रोशनी में ये बात अयाँ होती रही कि हुकूमत का बदमसत हाथी अपनी चाल में मगन है, अवामी मुज़ाहिरे, दानिशवरों और क़लमकारों की मुख़ालिफ़त और तलबा-ओ-एक्टिविस्टों की सरफ़रोशी उस के लिए नाक़ाबिल-ए-इलतिफ़ात हैं। 

बल्कि उसने अपनी ताक़त के बलबूते पार्लिमेंट और कोर्ट की नाक के नीचे गुजरात और मुज़फ़्फ़र नगर की तारीख़ दोहरा कर ये बता दिया कि मुसलमानो अब तुम हिन्दुस्तान  के किसी खित्ते इलाक़े में महफ़ूज़ नहीं हो, इस से फ़र्क़ नहीं पड़ता कि हुकूमत बी जे पी की हो या किसी और पार्टी की.. हिन्दोस्तान का किसी दूर दराज़ इलाक़े का ग़ैर-आबाद ख़ित्ता हो या दिल्ली जैसा मुतमद्दिन शहर.. तुम्हें सबक़ सिखाने  के लिए सब बराबर है

आज भी बिअइनी यही हालात हैं, हिन्दुस्तान  की मस्मूम फ़िज़ा में हिंदूतवादी ज़हर अपना रंग दिखा रहा है, हुकूमती अफ़रीयत अवामी जज़बात से बेगाना अपने अज़ाइम की तकमील और अपनी अना की तसकीन में मस्त है

एक साल क़बल मुस्लमान उस के निशाने पर थे, आज किसान उस का हदफ़ हैं, कल हम सरापा एहतिजाज थे, आज ये सड़कों पर हैं
और साथ ही2020 ख़त्म हो रहा है, और एक नए साल की आमद आमद है

ख़ुलासा ये कि हमारा दुश्मन एक है, और निशाना हम सब..
तो आख़िर क्या वजह है कि हम सब मिलकर भी इस एक को पसपाई पर मजबूर नहीं कर पा रहे हैं, उस के पास ऐसी कौन सी ताक़त है कि जिसके बलबूते वो इतना कामयाब है

अगर इस सवाल पर ग़ौर किया जाय, तो इस का जवाब सिर्फ एक है.. हमारी अपनी कमज़ोरियाँ.

ये हम सबकी कमज़ोरियाँ ही हैं, जिसने उसे इतना ताक़तवर बना दिया है, ये कांग्रेस की कमज़ोरी ही है, कि उसने इक़तिदार के नशे और परिवार के मुफ़ाद में ये ना देखा कि जिस कुर्सी पर वो बैठे हैं, इस की बुनियाद खोखली हो चुकी है, जिस पार्टी को वो अपने सामने तिफ़ल-ए-मकतब समझ रही है, वो उस की मदहोशी से फ़ायदा उठा कर इक़तिदार ही नहीं, अदलिया और मीडीया पर भी क़ाबिज़ हो गई है

ये मुस्लमान और उनकी तन्ज़ीमों की कमज़ोरियाँ ही हैं, जिसके नतीजे में आर ऐस ऐस और ज़ाफ़रानी हर कारे सैकूलर मलिक को एक मुतशद्दिद मज़हबी रियासत में तबदील करने में कामयाब हो गए, सत्तर साल मुक़तिदरा की ज़ाहिरी हम-नवाई हासिल करने के बावजूद सिवाय कासा-ए-गदाई के मुस्लमानों के हाथ कुछ ना आया

और इसी का नतीजा है कि आज हमारी मेहनत-ओ-कोशिश भी हमारे हक़ में बार-आवर नहीं, साबिक़ा ग़लतीयों की बिना पर आज खून-ए-शहीदाँ भी बेरंग नज़र आता है, और महीनो चीख़ चिल्ला कर भी हम अकेले रह गए हैं
इसलिए कि हमने बुनियाद खो दी, हम सतह पर तैरते रहे, और उन्होंने जड़ों को सींचने पर निगाह रखी। 

ये गुज़रता साल इस बात की शहादत है कि वक़्त भी उन्हें का होता है, जो उसूल का पालन करते हैं, संख्या की तबदीली उन्हीं के हक़ में मुफ़ीद है, जो बुनियादी ख़ुतूत से दिलचस्पी रखें।

वर्ना साल-ओ-माह की तबदीली आवारा गर्दों के लिए कोई मतलब नहीं रखती, अपने पूर्वजों के सही राह  से हट कर मन-मानी ज़िंदगी अपनाने वालों के लिए गर्दिश-ए-दौरां के पास कोई वक़्त नहीं।

इबन मालिक अय्यूबी

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