सहाबा से मोहब्बत इमां का तक़ाज़ा है

सहाबा से मोहब्बत इमां का तक़ाज़ा है

तहरीर :अनवार उल-हक़ क़ासिमी नेपाली


ख़ुदावंद क़ुद्दूस के सबसे महबूब विमकबूल ,सबसे बड़े ,आख़िरी नुमाइंदे, जिन पर हर आला वादिनी शैय को नाज़ और फ़ख़र है ,वो हज़रत मुहम्मद मुस्तुफ़ाई सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम की ज़ात अक़्दस है ,जिनकी ख़ातिर इस जहां को बसाया गया है
बारी तआला ने सरवर कौनैन मुहम्मद मुस्तुफ़ाई सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम को जहां दीगर बहुत सी अज़ीम और नुमायां ख़सुसीआत से सरफ़राज़ फ़रमाया है ,वहीं एक अज़ीम और बड़ी ख़ुसूसीयत ये देकर बहुत बड़ा इनाम फ़रमाया है कि" ख़ालिक़ कायनात ने जन्नते नुमाइंदे अपने लिए मुंतख़ब फ़रमाए हैं ,इतने ही तादाद में अपने महबूब और आख़िरी पैग़ंबर आक़ाए नामदार ताजदार मदीना अहमद मुजतबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम के वास्ते नुमाइंदे मुंतख़ब फ़रमाए हैं ,जिन्हें लोग सहाबी रसूल अल्लाह सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम के नाम से जानते हैं
सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन ने शाइर इस्लाम की बक़ा वतहफ़ज़ ,देन मतीन की पासबानी ,इशाअत इस्लाम और तब्लीग़ दीन के लिए जानी वमाली ,उल-ग़र्ज़ हर नौईयत की इन-गिनत ,बेशुमार और ला ताद वला तहसी क़ुर्बानियां, महिज़ रज़ाए इलाही और ख़ुशनुदी रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम के लिए पेश की हैं, जिन्हें फ़रामोश करना ,दर असल अपने दीन वाईमान से हाथ धो लेना है
इन ही सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की जोहद-ए-मुसलसल और सई-ए-पैहम के नतीजा में, आज हम तक ये दीन इस्लाम पहुंचा है, और हम मोमिन विमसलम हैं; वर्ना कहाँ हम और कहाँ ये दीन इस्लाम
इन ही सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की लाज़वाल मेहनतों के सदक़ा तुफ़ैल,आज दुनिया के कोने कोने से बिलानाग़ा सुबह विशामि, दिन-भर में पाँच दफ़ा अरबों खरबों; बल कि लातादाद मस्जिदों की मीनारों से " ही अली अलसला ही अली अलफ़लाह " की सदाएँ बुलंद होती हैं, फिर तमाम मुस्लमान हुक्म इलाही ""नमाज़" की तामील वतमसील के लिए मस्जिद का रुख करते हैं, और फिर बाजमाअत ""नमाज़ " अदा करते हैं , इसी तरह हरसाल माह रमज़ान उल-मुबारक में रोज़ा रखने का बाज़ाबता एहतिमाम करते हैं, और रोज़ा ना रखने वालों से हर शख़्स नफ़रत करता है, और मुआशरे में उनको हक़ीर नज़रों से देखा जाता है, अय्याम हज में फ़रीज़ा हज की अदायगी के लिए मक्का मुकर्रमा और मदीना मुनव्वरा कारिख करते हैं ,और अपने अम्वाल में से बतीब-ए-ख़ातिर सदक़ात वाजिबा ,नाफ़िला उनके मस्तहीन को देते हैं, जिनके ज़रीया ग़रीबों, यतीमों और मिस्कीनों की कफ़ालत होती हैं, नीज़ इन ही अम्वाल ज़कू के ज़रीया लाखों मदारिस इस्लामीया (जो दर असल दीन इस्लाम के क़िले हैं ,जहां से हर साल हुफ़्फ़ाज़ ,मुफ़स्सिरीन, मुहद्दिसीन, अइम्मा, फुक़हा-ए-, वाइज़ीन और मुसन्निफ़ीन उलूम दयनीय से बहरूर हो कर ,सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की तरह दुनिया के कोने कोने में मुंतशिर हो कर ख़िदमत देन का फ़रीज़ा बहसन ख़ूबी अंजाम देते हैं अपने मक़ासिद अज़मी हुसूल की जानिब रवाँ-दवाँ हैं
इन मुहिब्बीन वमख़लसीन सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की ख़िदमात जलीला का अहाता और शुमार ग़ैर मुम्किन है ,उन के हम पर बेशुमार एहसानात के बावजूद,हम में कावा शख़्स कितना ही बद इक़बाल होगा,जवीवमाफ़ीवमाबड़े ही क़र्रोफ़र और पूरी ताक़त वत्वानी के साथ चीख़ चीख़ कर हज़रत सय्यदना अमीर मुआवीया रज़ी अल्लाह अन्ना (जिन्हें " कातिब वही " होने का एक नुमायां शरफ़ हासिल है )की अज़मत शान को मजरूह और दाग़दार कर राहे,इस पर मुस्तज़ाद ये कि खुलेबंदों चंद अज़ीम शख़्सियात को नदवा के मैदान में मुबाहला की दावत भी दे रहा है
क्या उसने सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की शान अक़्दस, उनकी शान में फ़रमान ख़ुदा और फ़रमान रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम का बग़ौर मुताला नहीं किया है? कि उसने तक़द्दुस सहाबी रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम को हदफ़-ओ-तन्क़ीद का निशाना बनालिया
तो आईए ज़रा देखें कि शान सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन के मुताल्लिक़, अल्लाह और उनके रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम का क्या फ़रमान है? ताकि इस गुस्ताख के वास्ते सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की अज़मत वतोकेर मज़ीद क़लब-ओ-दिमाग़ में मुस्तहज़र हो जाएगी
कोई भी ऐसी जमात नहीं, जिन के वास्ते बारी तआला ने अपनी रजामंदी का परवाना दोटूक लफ़्ज़ों में दुनिया ही में अता क्या हो ; मगर वाहिद एक सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन ही की ख़ुशनसीब वबा तौफ़ीक़ जमात है ,जिनके इख़लास भरे अज़ीम कारनामों से ख़ुदावंद क़ुद्दूस ख़ुश हो कर ,दुनिया ही में ,अपनी रजामंदी की बशारत मुज़्दा वख़ोश ख़बरी एक ऐसी किताब में दिया ,जो रहती दुनिया तक के लिए बरक़रार रहेगी, यानी अपनी मोजिज़ा किताब क़ुरआन-ए-करीम में दिया है; चनां चह फ़रमाते हैं :रज़ी अलल्ले अनीम-ओ-रिज़्वा अन्य, जिससे ,जन जमात से अल्लाह ख़ुश, तो रसूल अल्लाह सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम भी ख़ुश ,हर मुस्लमान ख़ुश ;हती कि चरिंद विप्र नद सब ख़ुश,और ये एक तयशुदा और अमर मुस्लिम हैकि सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की शान में गुस्ताख़ी वही शख़्स करता है, जिससे अल्लाह और उनके रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम सरासीमा और नाराज़ होते हैं
सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की अज़मत शान में, आक़ाए दो-जहाँ मुहम्मद मुस्तुफ़ाई सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम ने फ़रमाया :लातसबवा असहाबी ,मेरे सहाबा की शान में नाज़ेबा जुमला कभी ना कहना,अल्लाह के नबी ने ये नहीं फ़रमाया :मेरे सहाबा को गालियां ना देना ,गाली के लिए अरबी ज़बान में लफ़्ज़ ""शतम " है , नबी करीम सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम ने " सब" बोला है ,सब गाली को भी कहते हैं और नाज़ेबा कलिमा को भी कहते हैं, फ़रमाया :मेरे सहाबा किराम की शान में नाज़ेबा कलिमा कभी ना कहना ;उस की दलील ये दी है ""फॉन णनफ़क़ मिसल नहिद ज़ेब माबलग़ मुद्दे नौ नसीफ़े " अगर तुम अहद पहाड़ के बराबर सोना सदक़ा भी कर डालो ,तो तेरा अहद पहाड़ के बराबर सदक़ा करना,मेरे सहाबी के एक केलो "जो "के सदक़ा करने के बराबर भी नहीं है, इस का मतलब ये है कि हम जबल अहद पहाड़ के बराबर सोना ख़र्च कर डालें,हमें अज्र मिले ,हम उसे अक्सर अमला"कहेंगे,सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन मुट्ठी भर जो ख़र्च करे ,उसे अज्र मिले अहसन अमला "कहेंगे, ये है सहाबा किराम की अज़मत शान
सहाबा किराम रिज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन की अज़मत वतोकेर, बुलंदी मुक़ाम के सिलसिले में, कसरत से आयात करीमा और अहादीस शरीफा नाज़िल और वारिद हुई हैं ,जिनका अहाता उस मुख़्तसर मज़मून में इंतिहाई मुश्किल है
सहाबा किराम से मुहब्बत और उन काहतराम कमाल ईमान की अलामत और शनाख़्त है ,सहाबा किराम की अज़मत की पामाली ईमान के मस्लूब होने की पहचान है
अल्लाह तबारक-ओ-तआला तमाम उम्मत मुस्लिमा के काशा क़लब और जिगर पारों में सहाबा किराम की अज़मत वतोकेर मुस्तहकम फ़र्मा दें

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