आँगन तेरी यादों का महकता ही रहेगा : वफ़ात हज़रत मौलाना नूर आलम ख़लील अमीनी


maulana Noor Aalam Khaleel Ameeni


 दारुल उलूम देवबंद 

वफ़ात हज़रत मौलाना नूर आलम ख़लील अमीनी 
(١٩٥٢- ए-/ १३७२ हिजरी २०२१-ए-/ १४४२ हिजरी 

अबैदुल्लाह शमीम क़ासमी 

२०  रमज़ान उल-मुबारक १४४२ हिजरी  ब-वक़्त सह्र ये अन्दोहनाक ख़बर मिली कि एशिया की अज़ीम दीनी दरसगाह दार-उल-उलूम देवबंद के अरबी अदब के उस्ताज़ और माहनामा अलदाई के चीफ़ ऐडीटर उस्ताज़ मुहतरम हज़रत मौलाना नूर आलम ख़लील अमीनी  साहिब ने तक़रीबन ७०/साल की उम्र में दाई-ए-अजल को लब्बैक कहा और इस दारे  फ़ानी से दार आ ख़िरत को रुख़स्त हुए,إنا لله وإنا إليه راجعون، إن لله ما أخذ وله ما اعطى وكل عنده بأجل مسمى فلتصبر ولتحتسب

इस दुखद ख़बर ने आपके हज़ारों छात्रों,बच्चो और  दार-उल-उलूम की रूह को बेक़रार, दिल को मुज़्तरिब और दिल  को ग़मनाक कर दिया
ये दुनिया चंद दिन की  है जो भी यहां आया है उसे मौत का मज़े चखना है, इस से किसी को बचना  नहीं, अल्लाह पाक फरमाते हैं :  كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ ثُمَّ إِلَيْنَا تُرْجَعُونَ﴾ [العنكبوت: 57] ﴿

ज़िंदगी का  यही वो वाहिद सच्च है जिससे इनकार की कोई सूरत नहीं, गुज़रता हुआ हर लम्हा हमें खात्मे  के इस एहसास से भरता है, ज़िंदगी की तमाम चमक दमक फ़ना की तरफ़ रवाँ-दवाँ है

वो लोग बड़े ही खुश नसीब  हैं जिन पर इस दुनिया की सच्चाई खुल कर सामने आ गई, और उन्होंने गुनाहों  की ज़िंदगी से मुंह मोड़ लिया , जिसका दिल भी इस दुनिया की चंद दिन  की हक़ीक़त जान गया उस के दिल से लालच और दुश्मनी और धोका सब कुछ निकल जाता है

मौत एक ना क़ाबिल तरदीद हक़ीक़त है, हर निखरती हुई सुबह और हर ढलती हुई शाम किसी ना किसी के लिए ज़िन्दगी के खात्मे का पैग़ाम लाती है, शाम व सुबह के बदलने के बावजूद मौत का नाच हर-तरफ  जारी है, हर-रोज़ अनगिनत लोग मौत के घाट  उतर रहे हैं  और मनों मिट्टी के नीचे समा जाते हैं और किसी को ख़बर भी नहीं होती, मगर कुछ हस्तियाँ ऐसी होती हैं कि जिनकी रुख़स्त पर सदीयां और ज़माने अशकबार होते हैं, वजह ये है कि ऐसे लोग बहुत कमयाब और न के बराबर होते हैं
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
और मुतनब्बी ने कहा था

مَضَتِ الدُهورُ وَما أَتَينَ بِمِثلِهِ
وَلَقَد أَتى فَعَجَزنَ عَن نُظَرائِهِ

उन्हीं  शख़्सियात में हज़रत उस्ताद  मौलाना नूर आलम ख़लील अमीनी  रहिमहुल्लाह  की ज़ात गिरामी थी

हज़रत मौलाना के इंतिक़ाल से एक अह्द का ख़ातमा हो गया जिसने तक़रीबन चालीस साल से दार-उल-उलूम देवबंद में अरबी ज़बान व अदब की बिसात बिछा रखी थी, और वहीद ुज़्ज़मा कैरानवी के इंतिक़ाल के बाद इस विरासत को सँभाले हुए थे। और आप उस के तन्हा अमीन थे
पढ़ने  के साथ साथ दार-उल-उलूम के अरबी तर्जुमान माह नामा दाई  की इदारत का फ़रीज़ा भी अंजाम दे रहे थे

हज़रत मौलाना का नाम सबसे पहले आपकी मक़बूल आम किताब हर्फ़-ए-शीरीं पर देखा, किताब देखने की ग़रज़ से उठाया और पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता चला गया, ये १९९८-ए-की बात है इस वक़्त मदरसा  अरबिया रियाज़ उल-उलूम गौरीनी में अरबी सोम का तालिब-इल्म था, उसी वक़्त से हज़रत मौलाना की ज़यारत और तलम्मुज़ का शौक़ था, फिर जब २००१-ए-में दार-उल-उलूम देवबंद में साल हफ़तुम में दाख़िला हो गया तो हज़रत मौलाना को अहाता दार-उल-उलूम में आते हुए देखा करता, आप ज़ुहर के बाद शशुम  सानिया और तकमील अदब में पढ़ाते थे

आपसे बाक़ायदा शागिर्दी का शरफ़ २००३-ए-में हासिल हुआ जब तकमील अदब में दाख़िला हुआ। मगर पूरा साल सिर्फ दरस में हाज़िरी होती उस के इलावा कभी मुलाक़ात का शरफ़ हासिल नहीं हुआ, वजह ये थी कि हज़रत मौलाना उसूल  के बहुत पाबंद थे, आपसे मुलाक़ात के लिए पहले से मालूम करना पड़ता था कि आप किस वक़्त ख़ाली हैं, दार-उल-उलूम देवबंद की पूरी तालिब इलमी छः साल के अरसा में सिर्फ एक-बार आपके दौलत ख़ाना पर हाज़िरी की सआदत मिली


maulana Noor Aalam Khaleel Ameeni


आपसे ताल्लुक़ात की इबतिदा उस वक़्त से हुई जब हमारे ख़ुसर हज़रत मौलाना अबद उल-हक़ साहिब आज़मी रामतुल्लाह  ३०/दिसंबर २०१६-ए-को इंतिक़ाल हो गया तो हज़रत-ए-शैख़ की वफ़ात पर हज़रत मौलाना को मज़मून लिखना था और आपकी आदत शरीफा ये थी कि जिस शख़्सियत पर आप मज़मून लिखते उस की ज़िंदगी के पूरे अहवाल इस में लिख डालते, किन  असातिज़ा से पढ़ा, उनकी वफ़ात कब हुई, ये सारी बातें इस में दर्ज होती हैं, जैसा कि आपकी कई  किताबों के देखने से मालूम होता है
इसी ग़रज़ से एक मर्तबा हमारे करम मौलाना अंज़र कमाल साहिब क़ासिमी मउवी ने फ़ोन किया कि हज़रत मौलाना नूर आलम ख़लील अम्मीनी साहिब आपसे बात करना चाहते हैं, मैंने उनसे नंबर लिया और हज़रत के यहां फ़ोन किया और तआरुफ़ के बाद तफ़सीली बात हुई, हज़रत मौलाना ने फ़रमाया फिर जब भी ज़रूरत पड़ेगी में फ़ोन करूँगा
इस के बाद जब मज़मून तैयार हो गया तो हज़रत ने मेरे यहां इ मेल किया, उस के बाद से ख़ैरीयत मालूम करने के लिए कभी कभी  फ़ोन करता रहता था
हज़रत-ए-शैख़ पर लिखा हुआ मज़मून जब माहनामा अलदाई में शाय हुआ तो हज़रत ने पता  मांग कर दो नुस्खे़ डाक से भिजवाए
और बाद में जब वही मज़मून उर्दू तर्जुमा हो कर और इज़ाफ़ा के साथ माहनामा दार-उल-उलूम देवबंद में शाय हुआ तो हज़रत ने इत्तिला दी और इस के भी दो नुस्खे़ डाक से भिजवाए, आपका ये शफ़क़त का मुआमला खुर्दों के साथ आपके बुलंद अख़लाक़ का सुबूत है 

इस के बाद तो हज़रत के पास हफ़्ता अशरा में फ़ोन करने का मामूल बनालिया, २०१७-ए-में एक मर्तबा देवबंद हाज़िरी हुई तो हज़रत के यहां फ़ोन करके हाज़िर हुआ और अस्र के बाद बेहतरीन ज़याफ़त फ़रमाई और मुख़्तलिफ़ मौज़ूआत पर गुफ़्तगु होती रही
और जब जुलाई २०१८-ए-में मेरा इमारात अब्बू ज़बी का सफ़र हो गया तो हज़रत को इत्तिला दी आपने काम की नौईयत वग़ैरा मालूम की
गालिबन  दो साल क़बल जब आपको दिल का दौरा आया था तो उस वक़्त फ़ोन से ख़ैरीयत मालूम की तो हज़रत ने दुआ के लिए कहा कि अभी बहुत काम बाक़ी है, दुआ करो अल्लाह-तआला जलद सेहत दे

जब आपको सदर जमहूरीया ऐवार्ड से नवाज़ा गया तो आपके यहां फ़ोन करके मुबारकबाद पेश की तो बहुत ख़ुश हुए
हज़रत मौलाना की जहां बहुत सारी ख़सुसीआत थीं वहीं एक ख़ास चीज़ जो मुझे महसूस हुई वो ये कि आपको अपने असातिज़ा से बे इन्तहा  मुहब्बत थी
कभी कभी फ़ोन करके मैं दुआ के लिए कहता तो फ़रमाते कि आप तो हमारे उस्ताज़ के रिश्तेदार हैं, और असातिज़ा और उनके रिश्तेदारों के लिए में हर नमाज़ में दुआ करता हूँ

हज़रत मौलाना का शुमार हिन्दोस्तान की उन बड़ी शख़्सियात में होता था जिन्हों ने अरबी ज़बान व अदब  की ख़िदमत के लिए अपनी ज़िंदगी को वक़्फ़ कर दिया था

अरबी ज़बान व अदब के हवाले से आपने ऐसे लाज़वाल कारनामे अंजाम दिए जो हमेशा बाक़ी रहेंगे
आप अरबी और उर्दू दोनों ज़बानों के मुसल्लम अदीब थे, बर-ए-सग़ीर हिंद व पाक और आलमे अरब के तमाम बड़े उल्मा आपकी तहरीरों के क़दर दान थे। यही वजह थी कि आपकी कोई भी किताब छपकर आती तो उस के एडीशन बहुत जल्द ख़त्म हो जाते थे

नीचे  हज़रत मौलाना की मुख़्तसर सवानिह और ख़िदमात पर एक सरसरी नज़र डाली गई है

नाम व नसब
नूर आलम ख़लील जमीनी 
वालिद साहिब का नाम हाफ़िज़ ख़लील अहमद था, सिलसिला नसब इस तरह है नूर आलम बिन  ख़लील अहमद बिन रशीद अहमद बिन मुहम्मद फ़ाज़िल बिन करामत अली सिद्दीक़ी
आपकी कुनिय्यत अब्बू उसामा नूर है, चूँकि आपकी फ़राग़त मदरसा अमीनिया दिल्ली से थी इसलिए उस की तरफ़ निसबत करते हुए जमीनी  लिखते थे और ये निसबत इतनी ज़्यादे मशहूर हुई कि गोया आपके नाम का जुज़-बन गई थी

तारीख़-ए-पैदाइश
18 दिसंबर 1952 -ए मुताबिक़ एक रबीउल अव्वल १३७२ हिजरी।  याद रहे कि अरबी तारीख़-ए-पैदाइश हज़रत ने कुछ स्टूडेंट्स  को लिखवाई थी और फ़रमाया था कि किताबों में अरबी तारीख़ सही नहीं है
आपका वतन असली (दधियाल राईपूर RAIPUR) अभी  ज़िला सीतामढ़ी पहले का  ज़िला मुज़फ़्फ़र पूर बिहार  था। और जाये पैदाइश नन्हियाल हरपूर बेशी HARPUR BESHI)ज़िला मुज़फ़्फ़र पूर बिहार  है
आप सिर्फ तीन माह के थे कि वालिद का साया सर से उठ गया, उस के बाद आपकी वालिदा का निकाह सानी हुआ मगर शौहर सानी का भी इंतिक़ाल हो गया और तक़रीबन पैंतीस साल की उम्र में दुबारा बेवा हो गईं, आपकी परवरिश आपकी वालिदा और नाना ने की

तालीम-ओ-तर्बीयत
क़ायदा बग़्दादी की शुरूआत नाना-जान से की, इस के बाद राय पूर में मौलवी इबराहीम उर्फ़ मौलवी ठगन के मकतब में इबतिदाई तालीम हासिल की
इस के बाद मदरसा  इमदादिया  दरभंगा में ग़ालिबन मुहर्रम १३८० ह मुताबिक़ जून 1960ए-  दाख़िला लिया, जहां दर्जा हिफ़्ज़, सात पारे हिफ़्ज़ के बाद १३८१ह मुताबिक़1961ए- में दर्जा शशुम  उर्दू में दाख़िल हुए
(मदरसा इमदादिया दरभंगा में मौलाना उवैस राय पूरी, मौलाना तस्लीम क़ासिमी सिधोलवी  वगैरह  आपके असातिज़ा थे

उसके बाद मशरिक़ी यूपी की मशहूर दीनी दरस गाए दार-उल-उलूम मऊ में1964 ए- मुताबिक़ १३८३ हिजरी  दर्जा अरबी अव्वल में दाख़िल हुए, जहां मुख़्तलिफ़ असातज़ह  से तालीम हासिल की, जिनमें हज़रत क़ारी मौलाना रियासत अली बहरा बादी , मौलाना अमीन साहिब अदरवी, मौलाना नज़ीर अहमद मउवी, मौलाना अबदुलहक़ आज़मी शेख़ सानी दार-उल-उलूम देवबंद, वगैरह  शामिल हैं

दार-उल-उलूम देवबंद में १६ शव्वाल  १३८७ हिजरी  मुताबिक़ 20 दिसंबर1967 ए- को दाख़िल हुवे, जहाँ  मुख़्तलिफ़ असातज़ह  से तालीम  की , जिनमें हज़रत मौलाना वहीद अल्ज़मां कैरानवी, मौलाना मुहम्मद हुसैन बिहारी, मौलाना मेराज उल-हक़ साहिब देवबंदी और मौलाना नसीर अहमद ख़ान साहब वगैरह  हैं

आपकी फ़राग़त  मदरसा अमीनिया दिल्ली से थी वहां आपके असतजह  में नुमायां हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद मियां साहिब देवबंदी का नाम है
पढ़ने की खिदमत 
तालीम से फ़राग़त के बाद आपने शिक्षा के मैदान में क़दम रखा और दार-उल-उलूम नदवातुल उलमा में तक़रीबन दस साल जून1972से1982ए- तक ख़िदमात अंजाम दी
इस के बाद १५/शवाल अलमकरम १४०२ह मुताबिक़६/अगस्त १९८२-ए को दार-उल-उलूम देवबंद अरबी अदब के उस्ताज़ की हैसियत से तक़र्रुरी हुई
जहां तक़रीबन चालीस साल तक से वफ़ात ३/मई २०२१-ए- मुताबिक़ २० रमज़ान उल-मुबारक १४४२ हिजरी  तक सिलसिला जारी रहा
अल्लाह-तआला ने हज़रत को ज़बान व बयान  की क़ाबिलियत  अता की  थी, आप उर्दू अरबी जिस ज़बान में भी लिखते आपके लेख की मदहोशी  ऐसी होती कि पढ़ने वाला उस  लेख  में खो जाता
आप वक़्त के बहुत पाबंद थे, कभी भी  मजलिस और जलसे वग़ैरा में नहीं जाते थे और अपने इलमी काम  में मसरूफ़ रहते, आपको यूं तो तमाम ही अकाबिर उलमाए देवबंद से हद दर्जा अक़ीदत-ओ-मुहब्बत थी मगर हज़रत मौलाना अशर्फ़ अली थानवी रहिमा अल्लाह के बहुत क़दर दान थे और फ़रमाते कि हज़रत हकीमुल उम्मत  के उसूल और जाब्ते को कुछ  हज़रात सख़्ती से बताते हैं  हालाँकि हज़रत उसूल के पाबंद थे
आप भी औक़ात की बहुत ज़्यादा क़दर  करते थे यही वजह थी कि बहुत सी तसनीफ़ात अरबी उर्दू ज़बान में, और इस के इलावा सैकड़ों मज़ामीन आपकी यादगार हैं

तसनीफ़ात बज़बान उर्दू
'' वो कोहकन की बात".. पस-ए-मर्ग ज़िंदा, फ़लस्तीन किसी सलाह उद्दीन के इंतिज़ार में, सहाबा रसूल इस्लाम की नज़र में, क्या इस्लाम पसपा हो रहा है?, आलम-ए-इस्लाम के ख़िलाफ़ सलीबी सहयोनी जंग.. हक़ायक़ और दलायल, हर्फ़-ए-शीरीं, ख़त रुक़ा कैसे लिखें रफ़्तगाँ ना रफ़्ता, छपने वाली हैं 
बिलकुल आख़िरी किताब ग़ालिबान प्रैस में थी, एक रोज़ फ़ोन करने पर किताब के मशमूलात के बारे में तफ़सील से बयान किया और फ़रमाया कि इस में हज़रत मौलाना अबद उल-हक़ साहिब आज़मी रहमतुल्लाह अलैह , हज़रत मौलाना मुफ़्ती सईद अहमद साहिब पालनपूरी रहिमहुल्लाह अलैह , और हज़रत मौलाना रियासत अली बिजनूरी रह के साथ साथ कुल  चौबीस तज़किरे हैं, और दो तज़किरे ऐसे हैं जिनमें इतने कसरत से ख़ुतूत हैं कि वो गोया मेरा ही तज़किरा हो
हज़रत ने फ़रमाया कि किताब तबा होने के बाद आपके पास भेजने की क्या शक्ल होगी, मैंने अर्ज़ किया कि हज़रत मैं ख़ुद देवबंद हाज़िर हूँगा, मगर ज़िंदगी ने वफ़ा नहीं की और इस से पहले ही आप राही आख़िरत हो गए, अल्लाह-तआला कामिल मग़फ़िरत फ़रमाए

अरबी किताबें जो हज़रत ने लिखीं 
مجتمعاتنا المعاصرہ والطریق الی الاسلام، المسلمون فی الہند، الدعوہ الاسلامیہ بین الامس والیوم، مفتاح العربیہ، دوجلدیں، العالم الھندی الفرید: الشیخ المقری محمد طیب، فلسطین فی انتظار صلاح الدین، الصحابۃ ومکانتہم فی الاسلام، من وحی الخاطر 
 पाँच जिल्दों में इश्राक़ा का मजमूआ है 

उर्दू से अरबी तर्जुमे 
तक़रीबन पच्चीस किताबों का उर्दू से आपने अरबी ज़बान में तर्जुमा किया है जिसमें से मशहूर ये किताबें हैं
१  अस्र-ए-हाज़िर में दीन की तफ़हीम-ओ-तशरीह (मौलाना सय्यद अबुलहसन नदवी
  التفسیر السیاسی للاسلام فی مرآۃ کتابات الاستاد ابی الاعلی المودودی والشھید سید قطب
२  पाकिस्तानीयों से साफ़ साफ़ बातें (मौलाना सय्यद अबुलहसन अली नदवी احادیث صریحۃ فی باکستان
३  मौलाना इलयास और उनकी दीनी दावत (मौलाना सय्यद अबुलहसन अली नदवी الداعیۃ الکبیر الشیخ محمد الیاس الکاندھلوی
४  हज़रत अमीर मुआवीया और तारीख़ी हक़ायक़ (मुफ़्ती तक़ी उसमानी سیدنا معاویہ رضی اللہ عنہ فی ضوء الوثائق الاسلامیہ 
५  ईसाईयत किया है? ماھی النصرانیہ (मुफ़्ती तक़ी उसमानी
६  उलमाए देवबंद का दीनी रुख  और मसलकी मिज़ाज (हकीम उल-इस्लाम क़ारी मुहम्मद तुय्यब साहिबعلماء دیوبند واتجاھم الدینی و مزاجھم المذہبی
७  मीनाजज़लूमात इला अन्नोर  (कृष्ण लाल ) ماساۃ شاب ھندوسی اعتنق الاسلام 
८  हिन्दोस्तान की तालीमी हालत अंग्रेज़ी सामराज से पहले और उनकी आमद के बाद (मौलाना हुसैन अहमद मदनी  الحالۃ التعلیمیہ فی الھند فیما قبل عھد الاستعمار الانجلیزی وفیما بعدہ
९  ईरानी इन्क़िलाब इमाम खुमैनी और शीअईत (मौलाना मंज़ूर अहमद नोमानी  الثورۃ الایرانیہ فی ضوء الاسلام
१०  बर-ए-सग़ीर में शेख़ मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब  नज्दी के ख़िलाफ़ प्रोपेगंडे के उलमाए हक़ पर असरात (मौलाना मंज़ूर अहमद नामानी دعایات مکثفۃ ضد الشیخ محمد بن عبد الوھاب النجدی 
११  दावत इस्लामी मसाइल-ओ-मुश्किलात (मौलाना अमीन अहसन इस्लाही الدعوۃ الاسلامیہ قضا یا و مشکلات 
१२  मक़ालात हिक्मत, व मजादलात मादिलत (हकीम उल-इस्लाम हज़रत मौलाना अशर्फ़ अली थानवी لآلی منثورۃ فی التعبرات الحکیمہ عن قضایا الدین و الاخلاق والاجتماع 
१३ इश्तिराकीयत और इस्लाम (डाक्टर ख़ुरशीद अहमद  الاشتراکیۃ والاسلام मौलाना सईद अल रहमान नदवी के साथ
१४  हज़रत मदनी के मुख़्तलिफ़ मज़ामीन का तर्जुमा  بحوث فی الدعوۃ والفکر الاسلامی

मज़ामीन-ओ-मक़ालात
हिन्दोस्तान-ओ-पाकिस्तान-ओ-मुख़्तलिफ़ अरबी ममालिक से शाय होने वाले उर्दू अरबी रसाइल में तक़रीबन पाँच सौ मज़ामीन-ओ-मक़ालात
इस मुख़्तसर मज़मून में आपकी ख़िदमात को बयान नहीं किया जा सकता

आपकी ज़िंदगी में अपने असातिज़ा का असर नुमायां तौर पर था और सबसे ज़्यादा हज़रत मौलाना वहीद अल्ज़मां साहिब कैरानवी और हज़रत मौलाना नज़ीर अहमद नामानी का ज़िक्र-ए-ख़ैर करते थे, यहाँ तक की  कई मर्तबा सुना गया कि आज जो कुछ हूँ इन्हें असातिज़ा का तुफ़ैल है, अभी जल्द ही हज़रत मौलाना नज़ीर अहमद नोमानी  का इंतिक़ाल हुआ तो वफ़ात पर ताज़ियत के लिए फ़ोन किया था इस मौक़े  पर उनके बहुत से औसाफ़ बयान किए, उम्मीद थी कि उनकी शख़्सियत पर तफ़सीली मज़मून आएगा मगर इस से पहले ही आप रुख़स्त हो गए

अलालत और वफ़ात
हज़रत मौलाना एक अरसा से शूगर के मरीज़ थे, जिसकी वजह से चलने फिरने में बहुत दुशवारी थी, यही वजह थी कि नमाज़ भी घर ही पर अदा करते थे, तक़रीबन दो साल दिल का दौरा पड़ा और  की सर्जरी हुई थी
अभी जल्द ही एक रोज़ फ़ोन करने पर बतलाने लगे कि कुछ-कुछ दिनों के बाद पैरों में ज़ख़म होजाता है, जिसकी वजह से बहुत दुशवारी का सामना करना पड़ता है। इसी के साथ अभी हफ़्ता अशरा क़बल आपको बुख़ार आगया था जिसकी वजह से मुज़फ़्फ़र नगर अस्पताल में दाख़िल कराया  गया मगर फिर डाक्टर के मश्वरे से घर ही पर ईलाज चल रहा था, और दो तीन रोज़ अचानक तबीयत ख़राब हो गई और मेरठ अस्पताल में भर्ती किया गया, आपके चाहने वालों में बहुत बेचैनी थी और दुनिया-भर में दुआएं जारी थीं, मालूम हुआ कि आप ठीक हैं और जल्द ही देवबंद आजाऐंगे। मगर अचानक २ मई को तबीयत ख़राब हो गई और आखिर कार ३/मई सह्र के वक़्त  सवा तीन बजे इलम का ये नूर जिससे हज़ारों अफ़राद रोशनी पा रहे थे हमेशा के लिए बुझ  गया। और बहुत जल्द ये ख़बर पूरी दुनिया में फैल गई और हर तरफ़ से ताज़ियती पैग़ाम का सिलसिला जारी हो गया
उसी  दिन ज़ुहर के वक़्त हज़रत मौलाना सय्यद अरशद मदनी साहिब सदरुल मुदर्रिसीन दार-उल-उलूम देवबंद की इक़तिदा में नमाज़ जनाज़ा पढ़ी गई और इस गंज गिरांमाया को मज़ारे  क़ासिमी में दफ़न कर दिया गया। رحمہ اللہ رحمة واسعة
बर-ए-सग़ीर की नामवर शख़्सियात के इंतिक़ाल पर आपके मज़ामीन का शिद्दत से इंतिज़ार रहता था, अब आप पर चंद सतरें लिख कर अपने दिल को सुकून दे हैं
अल्लाह-तआला आपकी मग़फ़िरत फ़रमाए दर्जात बुलंद फ़रमाए और आपकी ख़िदमात को क़बूल फ़रमाए और आपके घर वालों  को सब्र जमील अता फ़रमाए

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