हिन्दी : आसिम ताहिर आज़मी
रमजान के इस महीने में, ईमान वालों के लिए दया के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, यही वजह है कि हर मुस्लिम अपने निजी स्वार्थ और मश्गूलियत के अनुसार, इस पवित्र महीने के दौरान विभिन्न धार्मिक समारोहों में भाग लेने की कोशिश करता है। इन प्रार्थनाओं में एक महान इमानी लाभों में से एक "तोबा" है। इस महीने में रब की तरफ मोमिन की इनाबत व तवजजुह में एजाफा हो जाता है। वो अपनी जात का मुहासबा करता है और अपने कामों का मजमोई जाएजा भी लेता है कि उन की कैफ़ियत में एजाफा हुवा है या कमी? तोबा का दरवाजा खुला हुवा रब की नवाजिशात हर इन्सान के लिए आम हैं उस के इहसानात का कोई खास समय नहीं सुबह व शाम हर समय उस की नेमातैं बरसती रहती हैं। इन सब के बावजोज रब खुद अपने गुनहगार और मगफेरत के तलबगार तोबा करने वाले की तवजजुह अपनी तरफ करता और ये एलान भी करता है। ''
قُلْ یَا عِبَادِيَ الَّذِیْنَ أَسْرَفُوْا عَلٰی أَنْفُسِہِمْ لاََتَقْنَطُوْا مِنْ رَّحْمَۃِ اللّٰہِ إِنَّ اللّٰہَ یَغْفِرُ الذُّنُوْبَ جَمِیْعًا، إِنَّہُ ہُوَ الْغَفُوْرُ الرَّحِیْمُ'' (الزمر: ۵۳)
ऐ मेरे बंदो! जिन लोगों ने खुद पर ज़ुल्म किया है, अल्लाह की रहमत से रहमत से मायुस न हों, अल्लाह तमाम गुनाहों को माफ़ कर देगा, वो माफ करने वाला रहम करने वाला है, इसलिए रमज़ान का ये महीना माफ़ी का मौसम है। हां, माफी का महीना है, इसका वक्त हर दूसरे की तुलना में अधिक मूल्यवान हैं, इसकी घड़ियां हर अच्छी चीज की तुलना में अधिक हैं, पैगंबर ने कहा:।
’’إِنَّ اللّٰہَ یَبْسُطُ یَدَہُ بِاللَّیْلِ لِیَتُوْبُ مُسِیْئُ النَّہَارِ، وَیَبْسُطُ یَدَہُ بِالنَّہَارِ لِیَتُوْبَ مُسِیْئُ اللَّیْلِ حَتّٰی تَطْلُعَ الشَّمْسُ مِنْ مَغْرِبِہَا ‘‘
अल्लाह रात में अपना हाथ फैलाते हैं है" ताकि दिन का पापी तोबा करे, और दिन में अपना हाथ फैलाते हैं ताकि रात का पापी तोबा करे। हमारी गलतियाँ और पाप बहुत हैं, लेकिन अल्लाह की महिमा इससे अधिक क्षमा कर सकती है। हमारे गुनाह बहुत बड़े बड़े हैं, लेकिन रब की क्षमा का कोई ओर नहीं।वो बे हद व बे इन्तेहा है।इर्शाद है :।
’’وَالَّذِیْنَ إِذَا فَعَلُوْا فَاحِشَۃً أَوْ ظَلَمُوْا أَنْفُسَہُمْ ذَکَرُوْا اللّٰہَ، فَاسْتَغْفَرُوْا لِذُنُوْبِہِمْ، وَمَنْ یَّغْفِرُ الذُّنُوْبَ إِلاَّ اللّٰہَ، وَلَمْ یُصِرُّوا عَلٰی مَا فَعَلُوْا وَہُمْ یَعْلَمُوْنَ ‘‘ (آل عمران: ۱۳۵)
यानी जो लोग पाप करते हैं या फिर अपनी जात पर जुल्म करते हैं तो भला फिर अल्लाह के सिवा उन्हें क्षमा कौन दे सकता है? नीज़ उनका तरीका ये नहीं होता कि वह अपने गुनाहों पर जिद करने लगें।पापों पर जिद न करने वालों का आलम यह होता है कि वो पाप के बाद उसे कबूल करते हैं, बुराई के बाद अफसोस करते हैं उन्हीं गुनहगार बंदों को खेताब करते हुए अल्लाह फरमाते हैं :।
’’یَا عِبَادِيْ إِنَّکُمْ تُذْنِبُوْنَ بِاللَّیْلِ وَالنَّہَارِ، وَأَنَا أَغْفِرُ الذُّنُوْبَ جَمِیْعًا، فَاسْتَغْفِرُوْنِيْ أَغْفِرْلَکُمْ ‘‘
यानी ऐ मेरे बन्दो!तुम दिन-रात पाप करते हो और में भी सारे पाप माफ कर देता हूँ, तो मुझसे क्षमा मांगें! मैं तुम्हारी क्षमा कबूल करूंगा। पाप तो हर इंसान के स्वभाव में होता है। हां, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो रब से क्षमा चाहते हैं और क्षमा चाहने वाले कम हैं। हममें से कुछ लोगों की स्थिति यह है कि वो पापों पर जमे रहते हैं, पाप छोड़ने का ख्याल कभी हिशिया ए ख्याल में भी नहीं आता है ऐसे लोग यकिनन राहे हेदायत से दुर और खसारे मैं है लेकिन रमज़ान उनके लिए नवीद ए सुबह की हैसियत रखता है वो उस की कदर करके पाक व साफ और मुजलला व मुसफफा कर सकते हैं। हदीस कुदसी में वारिद है अल्लाह इर्शाद फरमाते हैं :।
’’یَا ابْنَ آدَمَ، إِنَّکَ مَا دَعَوْتَنِيْ وَرَجَوْتَنِيْ إِلاَّ غَفَرْتُ لَکَ عَلٰی مَا کَانَ مِنْکَ وَلاَ أُبَالِيْ ‘‘
यानी ऐ मनुष्य! यदि तु मुझे पुकारे गा, या मुझसे कोई आशा आशा रखेगा, तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूंगा, मुझे तुम्हारे पापों की कोई परवाह नहीं है।रोजह दारों को इस हदीस की तरफ तवजजुह करनी चाहिए, पाक परवरदगार के इस रहीमाना और मुशफिकाना खेताब को कान लगा कर सुनने की जरूरत है, ये है उस रहीम जात की रहमत व मगफिरत की वुसअत का हाल पैगंबर की जात ऐसी अजीम जात है कि महशर के मैदान में जब कोई नबी अपनी उममत का परसाने हाल न होगा आप अपनी उममत की फिक्र मैं डुबे होंगे ज़ुबान मुबारक से "या रबबी उममती" "या रबबी उममती" के कलिमात जारी होंगे, भला नबी का मैदान महशर मैं ये आलम हो वो दुनिया में क्यों न अपनी उममत के सामने राहे रास्त की वजाहत करे,? क्यों कि अपनी उममत के गुनाहगारों के गुनाहों की माफी का तरीका बताए इसी लिए तो इर्शाद फरमाय :।
’’ رَغِمَ أَنْفُ مَنْ أَدْرَکَ رَمَضَانَ فَلَمْ یُغْفَرْلَہُ ‘‘
कि बदबखत है वो शख्स जो रमज़ान जैसा महिना पाए और और अपनी मगफेरत का परवाना हासिल न कर सके, इबादत पर ध्यान न दे सके तेलावत की तरफ मुंह न मोड़े, गुनाहों से तोबा न करे, रमज़ान तो ऐसा मोका है जो बार बार हाथ नहीं आता, हर इंसान की तमन्ना होती है कि वो अगला रमज़ान पाए, लेकिन ऐसे खुश नसीबों की तादाद कम होती है 'गुनाह तो इनसान पुरे साल करता है बाज तो तोबा तक नहीं करते' कबाइर का भी इरतेकाब करते हैं ऐसों में तोबा के लिए रमज़ान से अच्छा मोका और कब मिल सकता है,।ये गनीमत के दिन हैं, जीवन के ये लम्हे खुदा जान आगे मिलें या न मिलें,काबिले रश्क हैं वो लोग जो इन पलों को महत्व देते हैं, इसलिए प्रत्येक मनुष्य को तोबा में पहल करनी चाहिए। इससे पहले कि हम अपने जीवन की अंतिम सांस लें और हमारी आत्मा को मौलिक अपने पास बुला ले।
यहां तक कि सबसे छोटे पापों को भी हल्का नहीं समझना चाहिए, क्योंकि कर्मों में तो ऐतबार अंतिम का ही है, प्रत्येक मनुष्य को अपना मुहासबा करना चाहिए, गिर्द व पेश का ध्यान दिया जाना चाहिए कि थोड़ी देर के लिए हमने सोचा कि जब यह धन्य महीना पिछले साल आया था, हमारे शहर में कुछ लोग थे, जिनके साथ हमने रोजह रखा था और प्रार्थना की थी। लेकिन आज और इस साल उन्हें यह धन्य महीना नहीं मिल सका, इस वर्ष का यह धन्य महीना उनके भाग्य में नहीं था, वह इस दुनिया से विदा हो गए, अपने कर्मों को अपने साथ ले गए, काश, हम इसे समझ पाते, सही हम इस तथ्य को अपने मन में महसूस कर सकते हैं। मौत का मुनादी तो हर रोज नेदा देता है कोन है जिस को इससे रसतगारी है और किस को उस के आने की खबर है, मौत कभी भी इलान करके नहीं आती है, अगर हमने सच्चे दिल, पुख्ता अजम व इरादे, दोबारा गुनाह न करने के अहद और अपनी कोताहियौं पर नदामत व शर्मिन्दगी के साथ इस रमजान में तोबा करली तो इस का मतलब ये है कि हमारा रोजह हमारी तरावीह हमारी तेलावत और हमारी इबादत रब को पसंद आगईं:।
हमारी ये संघर्ष रब के यहां शरफे कबूलियत से सरफराज होगइ वरना वो हमें तोबा की तोफीक भी न देता, तो भला क्यों न इन बा बरकत दिनों को अच्छा जान कर रब के सामने सर तस्लीम खम कर दें,। उस शान तो कुरान इन अल्फाज में बयान करता है।
’’ وَہُوَ الَّذِيْ یَقْبَلُ التَّوْبَۃَ عَنْ عِبَادِہِ، وَیَعْفُوْا عَنِ السَّیِّآتِ وَیَعْلَمُ مَا تَفْعَلُوْنَ ‘‘(الشوری: ۲۱)
यानी अल्लाह अपने बंदो की तोबा कबूल करता है, गुनाहों को माफ करता है उस को इन्सान की हरकत का बखूबी इल्म है उसी चीज की तरफ पैगंबर भी अपनी उममत की तवजजुह मबजूल कराते हैं :फरमाते हैं
’’وَالَّذِيْ نَفْسِيْ بِیَدِہ! لَوْلَمْ تُذْنِبُوْا لَذَہَبَ اللّٰہُ بِکُمْ وَلَجَائَ بِقَوْمٍ یُذْنِبُوْنَ فَیَسْتَغْفِرُوْنَ اللّٰہَ فَیَغْفِرُ لَہُمْ ‘‘
यानी कसम है उस जात की जि जिस के कब्जे में मेरी जान है अगर तुम गुनाह न करो, तो अल्लाह तुम्हे खत्म कर दें और फिर एक ऐसी कौम लाएं जो गुनाह करे और फिर मगफेरत तालब करे, तोबा करे तो अल्लाह उन की मगफेरत करे उन की तोबा कबूल करे समझ में ये नहीं आता कि भला जिस ने रमज़ान में तोबा न क्या वो कब तोबा करेगा,? जिस ने रमज़ान में अल्लाह की तरफ रुजोअ न क्या वो कब होश में आएगा, समझ में ये नहीं आता कि ऐसे लोग और किस मोका का इन्तजार करते हैं बाज रोजह दारों का तो ये हाल होता है कि रमज़ान में वो बिल्कुल दुरुस्त होते हैं उन की जिन्दगी का रुख रमज़ान में तब्दील हो जाता है उन की जिन्दगी पहले के मुकाबले में बहुत बेहतर होजाती है लेकिन रमज़ान के खत्म होते ही वही पहले वाला हाल होता है गुनाहों की एक नई दुनिया दोबारा आबाद करते हैं रमज़ान मैं पढहा लिखा सारा सबक भुल जाते हैं अल्लाह से किए हुए सारे अहद व पैमान फरामुश कर बैठते हैं, ऐसे लोगों को कुरान की आयत :।
’’وَلاَ تَکُوْنُوْا کَالَّتِيْ نَقَضَتْ غَزْلَہَا مِنْ بَعْدِ قُوَّۃٍ أَنْکَاثًا‘‘(النحل: ۹۲)
को ध्यान में रखना चाहिए! हमें अपने पूर्ववर्तियों को अपना मुकतदा बनाना चाहिए जो रमजान के खत्म होते ही रु पडते थे, हसरत व अफसोस और नदामत के आंसू थमने का नाम नहीं लेते, उन के दिल पाकीजह थे नुफूस रोशन और वो खुद नेक थे,।ऐ पाक रहमान ज़ात!
हमारे गुनाह बहुत ज्यादा हैं हम अपने गुनाहों से तोबा करते हैं, ऐ रब! हम अपने गुनाहों का शिकवा तुझ ही से कर रहे हैं इन गनाहो ने हमारी हस्ती को ऐब दार बना दिया है, खुदाया! हमें बख्श दे, हम तोबा करते हैं, हमें अपने नेक सालेह बंदों का तरजे अमल अपनाने की तोफीक दे, हमें सीधे मार्ग पर चला,आमीन।
एक टिप्पणी भेजें
Plz let me know about your emotion after reading this blog