The night of Reward |इनाम की रात | hindidastak


The night of Reward |इनाम की रात  |

 The night of Reward |इनाम की रात

उर्दू लेख: ओबैदुल्लाह शमीम क़ासमी अल-ऐन

हिन्दी: आसिम ताहिर आज़मी

    रमजान के पवित्र महीने के अंत में आने वाली रात, यानी ईद अल-फितर की रात, लैलातुल-जाएज़ा, जिसे चांद की रात भी कहा जाता है, विशेष आशीर्वाद, दया, क्षमा और महान फजीलत की हामिल है, जिसमें अल्लाह तआला इस धन्य महीने की सभी रातों की तुलना में अपने बंदों को अधिक मगफेरत फरमाता है। हदीस में, इस रात, यानी ईद की रात को "लैलातुल-जाएज़ा" (इनआम की रात) कहा जाता है। जिस में ईमान व एहतेसाब के साथ सवाब की नियत से इबादत करने वालों के लिए के लिए बहुत खुशी और अच्छी खबर है जो लोग इस पवित्र महीने में अपनी इबादात और रोजों के माध्यम से इस पवित्र महीने की बरकात व फजाइल से लाभान्वित होए हैं, अल्लाह की दया और क्षमा  को अपने लिए बरहक बनाया हो। नर्क से छुटकारा का परवाना प्राप्त किया और इस प्रकार अल्लाह तआला की  तजललियात, अनवारात, और इनआमात के हकदार ठहरे।
इनआम की रात पर फरिश्तों में भी खुशी की धूम मची होती है और अल्लाह तआला उन पर तजल्ली फरमा कर पूछते हैं उस मजदूर की उजरत क्या है जिसने अपनी मजदूरी पूरी करली? तो फरिश्ते कहते हैं कि उसे पूरी पूरी मजदूरी मिलनी चाहिए, उस पर अल्लाह तआला इरशाद फरमाते हैं कि ऐ फरिश्तो! तुम गवाह रहो, मैं ने उम्मत मुहम्मदिया के रोजह दारौं को उजरत दे दी, यानी रोजह दारौं को बख्श दिया, अहादीस में इस रात की बड़ी फजीलत आई है,
हज़रत अबु हुरैरा रजी अल्लाहु अनहु से रेवायत है कि हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:"मेरी उम्मत को रमज़ान शरीफ के बारे में पाँच चीजें मखसूस तौर पर दी गई हैं जो पहली उम्मतों को नही मिली,
(१)  ये कि उनके (रोजे दार के) मुंह की बु अल्लाह के नजदीक मुशक से ज्यादा पसंदीदा है
(२)  ये कि उनके (रोजह दार के) लिए मछलियां तक दुआ करती हैं और रोजह खोलने तक करती रहती हैं
(३)  जन्नत हर दिन उनके लिए सजाई जाती है फिर अल्लाह तआला फरमाते हैं कि करीब है कि मेरे नेक बंदे दुनिया की परेशानियों को अपने उपर से हटा कर मेरी तरफ आएं,
(४) इस महीने में शैतान बंद कर दिए जाते हैं,
(५) रमज़ान की आखिरी रात में रोजे दारों की मगफिरत कर दी जाती है, सहाबा ने अरज किया " क्या ये मगफिरत की रात है "शबे ए क़दर" है आप ने फरमाया नही बल्कि अल्लाह का दस्तूर ये है कि मजदूर का काम खत्म होने के वक्त उसे मजदूरी दे दी जाती है, (मुसनद अहमद,)
लैलातुल-जाएज़ा, जिसका अर्थ है ईद अल-फ़ित्र की रात, विशेष तौर पर इबादत में मशगूल रहने की रात है, ।  नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा है:
*"من قام ليلتي العيدين محتسبا لله لم يمت قلبه يوم تموت القلوب"*
  जो शख्स सवाब की नियत करके दोनों ईदौं (ईदुलफितर ईदुलअजहा) में जागे और इबादत में मशगूल रहे उसका दिल उस दिन मुर्दा नहीं होगा जिस दिन सब के दिल मुर्दा हो जाएंगे (यानी फितना व फसाद के वक्त और क़यामत के दहशतनाक दिन भी महफूज़ रहेगा)
 (इब्न माजह हदीस 1782)
अगरचे हदीस कमजोर है लेकिन तिबरानी व दूसरी रेवायात से इसकी ताईद होती है,
एक और हदीस में जो हजरत माज़ बिन जबल से मरवी है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
*"مَنْ أَحْيَا اللَّيَالِی الْخَمْسَ، وَجَبَتْ لَهُ الْجَنَّةُ :  لَيْلَةَ التَّرْوِيَة، وَلَيْلَةَ عَرَفَةَ، وَلَيْلَةَ النَّحْرِ، ولَيْلَةَ الْفِطْرِ، وَلَيْلَةَ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ."*
*منذری، الترغيب والترهيب،(١٨٢/١)*
 वह जो पाँच रातों में (इबादत के लिए) उठता है।  स्वर्ग उसके लिए अनिवार्य हो जाएगी (वे पांच रातें हैं
 (१) लैलातुल-तरवियाह(८ जिल-हिज्जाह की रात)
(२) लैलातुल अरफा ( ९ जिल- हिज्जाह की रात)
(३) लैलातुल नहर ( १० जिल- हिज्जाह की रात)
(४) लैलातुल जाएज़ा (ईद-उल-फ़ित्र की रात)
 (५)  शबे बरअत (शाबान की पंद्रहवीं रात)
यही कारण है कि हजरात सहाबा ए केराम, ताबईन, तबे ताबईन और हमारे पूर्वजों ने इन रातों को महत्व दिया और इसमें इबादत, जिक्र व अजकार का विशेष ध्यान दिया। फुकहा ने भी ईदैन की रातौं में जागना मुसतहब लिखा है, शेख अबदुलहक मुहददिस देहलवी इमाम शाफई से नकल किया है कि "पाँच रातैं" दुआ की कबूलियत की हैं जिन में शब ए जुमा और ईदैन की रातैं भी हैं।
 "इनआम की रात" अल्लाह तआला के नजदीक बहुत फजीलत वाली रात है जो अल्लाह तआला की तरफ से आप की उम्मत को एक खास तुहफा है जिसकी उसके बंदों को बेहद क़दर करनी चाहिए और इस मुबारक रात के किमती लमहात को फजूल कामों में ज़ाए करने के बजाय तोबा, जिक्र व अजकार, नवाफिल और दुआओं में गुजारने चाहिए, आम तौर पर लोग इस रात में जाग कर इबादत का कोई खास इहतेमाम नही करते, जो बड़ी महरूमी की अलामत है, बल्कि इस रात को घुमना-फिरने होटलों में खाने-पीने और बाजारों में खरीदारी की नजर कर देते हैं, लेहाजा पूरी कोशिश करें कि ये मुबारक रात किसी भी तरह ज़ाए न होने पाए,।
हम ने महीने भर अल्लाह के साथ जो तअललुक बनाने की कोशिश की, उसे अल्लाह तआला से माफी, मगफेरत, और जहन्नुम से आजादी के परवाने हासिल करने में सर्फ करें, कहीं ऐसा न हो कि महीने भर की हमारी मेहनत और कोशिश जो हम ने अपने रब से अपने टुटे हुए रिश्तों को बनाने में सर्फ की है और अब जब कि हमारा रब हमसे राजी हो रहा है अपने मोमिन बंदों पर इनआमात की बारिश बरसाने वाला है हमारे किसी मामूली ना फरमानी वाले अमल से कहीं ज़ाए न हो जाए, लेहाजा ईदुलफितर की रात को अल्लाह तआला से उसकी आफियत व सलामती, मगफेरत और रहमत मांगते हुए अल्लाह तआला की याद में गुजारना चाहिए

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