इस्लाम का सातवां पाठ | 7th Lesson Of Islam

इस्लाम का सातवां पाठ | 7th Lesson Of Islam

बहुत ही अहम् बात :

इंसान जब तक अपने दींन पे चलता है तो उसके लिए रोज़ आना के दीनी और अच्छे काम करना आसान हो जाता है|  लेकिन जब दींन से  हट-ता है तो इस दुनिया में भी उसे परेशानियां झेलनी पड़ती हैं और आख़िरत में तो उसका बदला ज़रूर मिलेगा इस लिए जितना वक़्त  मिले अपने दींन की फ़िक्र करते रहना  चाहिए क्या पता कब अल्लाह का फैसला आ जाये और सब छोड़ कर जाना पड़ जाये इसी लिए वक़्त रहते आख़िरत की फ़िक्र कर लेनी चाहिए  अल्लाह से  दुआ है कि वह हमारी इस छोटी सी कोशिश को कुबूल फ़रमाये-आमीन !

तो आइये आजका  सबक़ पढ़ते हैं :
तालीमुल इस्लाम भाग (2) का पहला शोबा
जिसका मशहूर नाम है तालीमुल ईमान या इस्लामी अकीदे
بسم الله الرحمن الرحيم
"बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम"
यानी: शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम वाला है।
सवाल : इस्लाम की बुनियाद कितनी चीजों
पर है?
जवाब : इस्लाम की बुनियाद पांच चीजों पर है।
सवाल : वे पांच चीजें जिन पर इस्लाम की बुनियाद है, क्या क्या हैं?
जवाब : वे पांच चीजें ये हैं:- (1) कलिमा तैयिबा या कलिमा शहादत के मतलब को दिल से मानना और जबान से इकरार करना। (2) नमाज़ पढ़ना (3) ज़कात देना (4) रमजान शरीफ के रोजे रखना (5) हज करना।
सवाल : कलिमा तैयिबा क्या है और इसके माने क्या हैं?
जवाब : कलिमा तैयिबा यह है:
لاۤ اِلٰـہَ اِلَّا اللّٰہُ مُحَمَّدٌ رَّسُوْلُ اللّٰہِ
"ला इला ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह"
और इसका मतलब यह है:- "अल्लाह तआला के सिवा और कोई इबादत के लायक नहीं और हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुदा के भेजे हुए रसूल हैं।"

सवाल : कलिमा शहादत क्या है और इसके क्या माने हैं?
जवाब : कलिमा शहादत यह है:
اَشْہَدُ اَنْ لَّاۤ اِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ وَاَشْہَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُہٗ وَرَسُوْلُہٗ
"अश-हदु अंल्ला इला ह इल्लल्लाहु व अशहदु अन न मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहु।" और इसका मतलब यह है:- "गवाही देता हूं मैं इस बात की कि खुदा तआला के सिवा और कोई इबादत के लायक नहीं और गवाही देता हूं मैं इस बात का कि  हज़रत मुहम्मद  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुदा तआला के बन्दे और रसूल हैं।"

सवाल : क्या बगैर माने और मतलब समझे हुए सिर्फ ज़बान से कलिमा पढ़ लेने से आदमी मुसलमान हो जाता है?
जवाब : नहीं! बल्कि माने समझकर दिल से यकीन करना और जुबान से इकरार करना ज़रूरी है|

सवाल : दिल से यकीन और जुबान से इकरार करने को क्या कहते हैं?
जवाब : ईमान लाना कहते हैं।

सवाल : गूंगा आदमी ज़बान से इकरार नहीं कर सकता तो उसका ईमान लाना कैसे मालूम होगा?
जवाब : उसके लिए कुदरती मजबूरी की वजह से इशारा कर देना काफी समझा जाएगा। यानी वह इशारे से यह जाहिर कर दे कि खुदा तआला एक है और हज़रत मुहम्मद सलअम खुदा तआला के पैग़म्बर हैं।

सवाल : मुसलमानों को कितनी चीजों पर ईमान लाना ज़रूरी है?
जवाब : सात चीज़ों पर, जिनका बयान इस ईमान मुफस्सल में है:
ﺁﻣَﻨْﺖُ بِاللّٰهِ وَ مَلٰئِكَتِهٖ وَ ﮐُﺘُﺒِﻪٖ وَ رُسُلِهٖ وَاﻟْﻴَﻮْمِ الْآﺧِﺮِ وَاﻟْﻘَﺪْرِ ﺧَﻴْﺮِﻩٖ وَ ﺷَﺮِّهٖﻣِﻦَاللّٰهِ ﺗَﻌَﺎلیٰ وَاﻟْﺒَﻌْﺚِ ﺑَﻌْﺪَ اﻟْﻤَﻮْتِ"
"आमन्तु बिल्लाहि व मलाइ-क तिही व कुतुबिही व रूसुलिही वल यौमिल आखिरि-वलकद्रि खैरिही व शर्रिही मिनल्लाहि तआला वल्बअसिं बअ-दल मौत।"
 इसके माने यह हैं:- "ईमान लाया मैं अल्लाह पर और उसके फ़रिश्तों पर उसकी किताबों पर और उसके रसूलों (पैगम्बरों) पर और कयामत के दिन पर और इस बात पर कि दुनिया में जो कुछ अच्छा या बुरा होता है सब तकदीर से होता है और इस बात पर कि मरने के बाद फिर जिन्दा होना है।"
Dosto ! इस दुनिया में इंसान को बस चंद दिन की ज़िन्दगी गुज़ार कर आख़िरत के लिए  जाना ही है इस लिए जितनी भी कोशिश हो सके must करनी चाहिए,यह दीनी फ़रीज़ा है और हाँ वहां कोई उज़्र कबीले क़ुबूल नहीं होंगे So इस लिए इसे Importants दीजिये और अल्लाह से दुआ कीजिये की बिना हिसाब किताब जन्नत नसीब फरमाए अमीन |  

इस Link पर click कीजिये  : शाह फैसल और मौलाना अबुल हसन अली  नदवी र.ा के दरमियान गुफ्तुगू 

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